इस विषय में मुझे राष्ट कवि ‘श्री त्रिपाठी कैलाश आजाद’ (सांगली) महाराष्ट निवासी की कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं, जो यहां इस विषय में बिल्कुल सत्य साबित होती हैं, यथा- एक दूसरे के लिए, रहें कृतज्ञ हम। प्रत्येक परिस्थिति में, रहें स्थितप्रज्ञ हम।। वेदों का सार ‘इदन्नमम्’ का भाव ले। सर्वोदय की भावना से, […]
महीना: जून 2017
पर्यावरण नियंत्रक सांस्कृतिक प्रकोष्ठ’ में कार्यरत व्यक्तियों के लिए आवश्यक हो कि वे संस्कृत के जानने वाले तो हों ही, साथ यज्ञ विज्ञान की गहराइयों को भी सूक्ष्मता से जानते हों। कौन सी सामग्री किस मौसम में और किस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त करने में हमें सहायता दे सकती है-इस बात को ये लोग […]
भारत के चौदहवें राष्ट्रपति का चुनाव निकट आता जा रहा है, हम सभी का ध्यान इस समय यह देखने में लगा हुआ है कि ‘रायसीना हिल्स’ पर इस बार पहुंचने की किसकी बारी है? यद्यपि भाजपा के प्रत्याशी श्री रामनाथ कोविंद का ‘रायसीना हिल्स’ पहुंचना लगभग निश्चित है, परंतु इसके उपरांत भी विपक्ष की प्रत्याशी […]
महर्षि दयानंद ने कहा था- ”यदि अब भी यज्ञों का प्रचार-प्रसार हो जाए तो राष्ट्र और विश्व पुन: समृद्घिशाली व ऐश्वर्यों से पूरित हो जाएगा।” इस बात से लगता है कि भारत सरकार से पहले इसे विश्व ने समझ लिया है। देखिये-फ्रांसीसी वैज्ञानिक प्रो. टिलवट ने कहा है- ”जलती हुई खाण्ड के धुएं में पर्यावरण […]
निष्पक्ष लेखनी की आवश्यकता प्रो. गोल्डविन स्मिथ का कहना है-”प्रत्येक राष्ट्र अपना इतिहास स्वयं ही उत्तम रूप से लिख सकता है। वह अपनी भूमि, अपनी संस्थाओं अपनी घटनाओं के पारंपरिक महत्व और अपनी महान विभूतियों के संबंध में सबसे अधिक ज्ञान रखता है। प्रत्येक राष्ट्र का अपना विशिष्ट दृष्टिकोण होता है, अपनी पूर्व घटनाएं, अपना […]
स्वार्थभाव मिटे हमारा प्रेमपथ विस्तार हो गतांक से आगे…. आज बुद्घ ने अप्रत्याशित बात कह दी, जो बुद्घ सबको गले लगाकर चलते थे। वह आज बोले-”नहीं, उसके लिए द्वार नहीं खोलने हैं क्योंकि वह अस्पृश्य है।” सिद्घांतप्रियता व्यक्ति को प्रेम साधना की ऊंचाई तक ले जाती है। उसे पता होता है कि सिद्घांतों की रक्षा […]
बिखरे मोती-भाग 189 गतांक से आगे…. ”जीना है तो दिव्यता में जीओ।” ”आत्मा की आवाज सुनो और आगे बढ़ो।” आत्मा की आवाज परमात्मा की आवाज होती है। आत्मा की बात को मानना भगवान की बात को मानना है। इस संदर्भ में भगवान राम ‘रामचरितमानस’ के उत्तरकाण्ड पृष्ठ 843 पर कहते हैं- सोइ सेवक प्रियतम मम […]
शब्द प्रकृति दो शब्दों से बनता है-प्र+कृति। ‘प्र’ का अर्थ है-उत्तमता से, पूर्ण विवेक से और ‘कृति’ का अर्थ है-रचना। इस प्रकार प्रकृति का अर्थ है एक ऐसी रचना जिसे उत्तमता से, नियमों के अंतर्गत रहते हुए और विवेकपूर्वक बनाया गया है, रचा गया है। प्रकृति अपने नियमों से बंधी है, और वह उनके बाहर […]
ईश्वर के प्रति कृतज्ञता अपनायें अब विचार करें कि उसे हम क्या दे रहे हैं? कदाचित ‘कुछ भी नहीं’ उसके प्रति कोई कृतज्ञता नहंी, कोई धन्यवाद नहीं। यही तो है नास्तिकता। यदि हम ईश्वर के प्रति भी कृतज्ञ होकर धन्यवाद करना और कहना सीख लें तो हमारे और शेष संसार के संबंध मानवीय ही नहीं, […]
कोई पदार्थ नष्ट नहीं होता विज्ञान का यह भारतीय सिद्घांत है कि कोई भी पदार्थ यथार्थ में कभी भी समाप्त नही होता, वरन उसका रूपांतरण ही होता है। संसार के अन्य लोग इस आत्मतत्व को आज तक नही समझ सके, वे लोग आज भी (जबकि विज्ञान का युग है) शरीर के अंत को ही आत्मा […]