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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

अफगानिस्तान का हिंदू वैदिक अतीत: दिल्ली सल्तनत और अफगानिस्तान

दिल्ली सल्तनत और अफगानिस्तान भा रत के वीर पराक्रमी शासकों, सेनानायकों और सैनिकों के सैकड़ों वर्ष के प्रतिशोध के पश्चात् तुर्क इस्लामिक आक्रामक भारत की राजधानी दिल्ली तक पहुँचने में सफल हो गए। 712 ई. से लेकर 12 जून, 1206 ई. तक हमारे कितने ही वीर बलिदानियों ने अपने बलिदान दे-देकर माँ भारती की सेवा […]

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अफगानिस्तान का हिंदू वैदिक अतीत *क्या कहते हैं कपिशा और बामियान के भग्नावशेष*

भा रतवर्ष के ग्रामों में आज भी हम देखते हैं कि एक ही कुल वंश के लोग सामान्यतया एक ही पट्टी या मोहल्ले में बसते हैं। इसी प्रकार कभी-कभी हम देखते हैं कि एक ही गोत्र के गाँवों की भी पट्टी बन जाती है, जिसमें दस-बीस या सौ- पचास ही नहीं कभी-कभी तो दो सौ […]

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भारत का कौन सा भाग कितनी देर परतंत्र या स्वतंत्र रहा

भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भाग-206 एक शोधपूर्ण प्रशंसनीय ग्रंथ मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी द्वारा ‘भारत हजारों वर्षों की पराधीनता एक औपनिवेशिक भ्रमजाल’ में बड़े शोधपूर्ण ढंग से हमें बताया गया है कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर मुस्लिम और ब्रिटिश शासन की अवधि कितने समय तक रही? इस सारणी को […]

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कंपनी के प्रति शिवाजी महाराज की देशभक्ति पूर्ण नीति

कंपनी के अत्याचारों का वर्णन कंपनी भारत में केवल लूट मचाने और अपनी भूख मिटाने के लिए आयी थी। उसके पास भारत के विषय में कोई संस्कार नहीं था, कोई विचार नहीं था कोई उपचार नहीं था। डा. रसेल लिखता है-”ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय शासन को आरंभ से ही जबरदस्त पापों ने रंग रखा […]

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अंग्रेजों ने राष्ट्रवाद और देशभक्ति को भारतीयों से सीखा

आरंभिक दिनों में अंग्रेजों की भारत में स्थिति प्रो. केडिया की पुस्तक ‘रूट्स ऑफ अण्डर डेवलपमेंट’ से हमें ज्ञात होता है कि जिस समय महारानी एलिजाबेथ के पत्र के साथ उसका प्रतिनिधि अकबर से (सन 1600 ई. में) मिला था, उस समय उसने बादशाह को 29 घोड़े भी उपहार स्वरूप भेंट किये थे। बादशाह ने […]

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अंग्रेजों के अत्याचारों को उन्हीं के विद्वानों ने एक अभिशाप माना

‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के नाम का रहस्य जिस समय मुगल साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था। उसी समय भारत में अंग्रेजों और कुछ अन्य यूरोपियन जातियों का आगमन हुआ। सन 1600 में भारत में अकबर का शासन था, तभी ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ की स्थापना हुई। इस कंपनी को ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ इसलिए कहा गया कि कोलंबस ने […]

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शंकराचार्य ने हमारे ब्रह्मतेज बल को कभी निस्तेज नहीं होने दिया

राजपूत शब्द ‘क्षत्रिय’ का सूचक राजपूत शब्द किसी जाति का सूचक नहीं हैं। यह उस वर्ण का सूचक है जिसे मनु महाराज ने ‘क्षत्रिय’ कहा है। इस प्रकार राजपूत शब्द के अंतर्गत सारे क्षत्रिय कुल और राजवंश समाहित हो जाते हैं। ‘अलबेरूनी का भारत’ के लेखक अलबेरूनी ने भारत में कहीं पर भी राजपूत जाति […]

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हमारे गोत्र हमें आज भी गौरवबोध और इतिहासबोध कराते हैं

गोत्रों में छिपा है हमारा गौरवभाव  भारत की गोत्र परंपरा भी अनूठी है। प्रत्येक गोत्र की उत्पत्ति किसी वीर क्षत्रिय से या किसी महाविद्वान के नाम से हुई है। अपने पूर्वजों के नाम को अमर बनाये रखने तथा उनके उल्लेखनीय कृत्यों की गौरवगाथा को अपने हृदय में श्रद्घा पूर्ण स्थान दिये रखने की भावना के […]

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शम्भाजी राजाराम और शाहू बने छत्रपति की विरासत के स्वामी

हमारा राष्ट्रीय जीवन और व्यक्तिगत जीवन हमारे व्यक्तिगत जीवन की भांति हमारा एक राष्ट्रीय जीवन भी होता है। जैसे हम व्यक्तिगत जीवन में कभी अपने शुभकार्यों के परिणाम के आने पर प्रसन्नता और अशुभकार्यों के परिणाम के आने पर अप्रसन्नता प्रकट करते हैं, वैसे ही हमारे राष्ट्रीय जीवन में भी कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं-जब […]

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हिन्दू और दुर्बल होती मुगल सत्ता के साथ आ धमके अंग्रेज

पुन: मेवाड़ की ओर अब हम एक बार पुन: राजस्थान के मेवाड़ के उस गौरवशाली राजवंश की ओर चलते हैं जिसकी गौरव गाथाओं को सुन-सुनकर प्रत्येक भारतवासी के हृदय में देशभक्ति मचलने लगती है। जी हां, हमारा संकेत महाराणा राजवंश की ओर ही है। जिसके राणा प्रताप के विषय में 1913 ई. में अपनी पत्रिका […]

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