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भारत का यज्ञ विज्ञान और पर्यावरण नीति, भाग-5

पर्यावरण नियंत्रक सांस्कृतिक प्रकोष्ठ’ में कार्यरत व्यक्तियों के लिए आवश्यक हो कि वे संस्कृत के जानने वाले तो हों ही, साथ यज्ञ विज्ञान की गहराइयों को भी सूक्ष्मता से जानते हों। कौन सी सामग्री किस मौसम में और किस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त करने में हमें सहायता दे सकती है-इस बात को ये लोग भली प्रकार समझते हों। इसके साथ ही ‘वृक्ष लगाओ अभियान’ को भी देश में निरंतर व्यापक गति मिलती रहनी चाहिए।
व्यक्तियों को घर-घर में हवन रचाने के लिए प्रेरित करना सरकारी नीति का एक अंग हो। राष्टरीय स्तर पर बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन हो, जिसमें हमारे गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठन भी अपना-अपना सहयोग प्रदान करें।
विदेशों में यज्ञशाला
पर्यावरण संतुलन को बनाये रखने में यज्ञों की भूमिका के महत्व को समझकर अमेरिका चिली, पोलैण्ड और जर्मनी आदि देशों में यज्ञ का प्रचलन बहुत बड़े स्तर पर चल रहा है। अमेरिका में साठ के दशक में ‘नया युग’ नामक एक आंदोलन चला। अमेरिका के पश्चिमी और पूर्वी तटवर्ती क्षेत्रों में अग्निहोत्र करने वालों की संख्या भी पर्याप्त है। अमेरिका विश्व का अकेला ऐसा देश है जो इस बात पर गर्व कर सकता है कि उसके देश में 9 सितंबर 1972 ई. से अखण्ड यज्ञ दिन-रात चल रहा है। ‘मेरीलैण्ड वाल्टीमोर’ में जिस जगह इस यज्ञ का आयोजन किया गया है उसका नाम ‘अग्निहोत्र प्रेस फार्म’ है।
इस प्रकार पश्चिमी देश प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए यज्ञ विज्ञान का सहारा भारत की अपेक्षा कहीं अधिक ले रहे हैं। यह अलग बात है कि वह भारत की इस अदभुत देन का लाभ तो उठा रहे हैं, पर उसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। ऐसे में भारत को भी अपनी इस अद्भुत थाती पर विशेष ध्यान देना चाहिए और इसका लाभ उठाना चाहिए। यदि भारत की सरकार पर्यावरण संबंधी यज्ञ विज्ञान के रहस्य को अपनी पर्यावरण नीति का एक अनिवार्य अंग बना ले तो कई समस्याओं से उसे सहज ही छुटकारा मिलना संभव है। यथा भारत में धर्मांतरण का राष्ट्र घाती खेल समाप्त हो सकता है, क्योंकि तब विदेशी उल्टे आपके धर्म के वैज्ञानिक स्वरूप को समझकर आपके साथ जुडऩे और काम करने को लालायित होते हुए दिखायी देंगे। अधिकतर धर्मांतरण इसलिए होते हैं कि हमारे लोगों को हमारे धर्म के विषय में यह बताया और समझाया जाता है कि इस धर्म में कोई वैज्ञानिकता नहीं है और यह केवल रूढिय़ों, अंधविश्वासों और कुपरम्पराओं पर टिका हुआ धर्म है।
आतंकवाद की समाप्ति भी होना संभव है, क्योंकि ऐसे वातावरण में हमारे ही नहीं अपितु अन्य धर्मावलम्बियों के विचारों में भी परिवर्तन आएगा। अहिंसा के वास्तविक अर्थों को संसार समझेगा और विश्वशांति की दिशा में सही कार्य करने के लिए विश्व समुदाय प्रेरित होगा। अग्रणी भारत को बनना होगा। उसे हिन्दुत्व की आत्मा यज्ञ के रहस्य और विज्ञान को संसार के समक्ष रखकर उसे समझाना होगा।
संसार की वृत्ति सात्विक बनाने के लिए यज्ञ, गाय, वेदमंत्र और उत्कृष्ट ज्ञान भारत की थाती है। अपनी थाती को विश्व समुदाय के समक्ष प्रस्तुत करने में कांग्रेसी हिचकिचाहट ने देश का बहुत बड़ा अहित किया है। उसका परिणाम राष्ट्र में हिंसक आंदोलन, आतंकवाद, उग्रवाद, धर्मांतरण और विखण्डनवाद के रूप में हमें दिखलाई दे रहा है।
अब समय आ गया है कि राष्ट्र मानवता के हित में हिंदुत्व से मुंह न मोड़ें। परिस्थितियों की पुकार है कि सारा संसार भारत के इस निर्णय का स्वागत करेगा। देखते हैं कि भारतीय नेतृत्व अपनी हिचकिचाहट को त्यागकर कब विश्व के नेतृत्व के लिए आगे आएगा और अपनी पुरानी संस्कृति तथा यज्ञ की परंपरा को पुन: लागू करेगा।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)
पुस्तक प्राप्ति का स्थान-अमर स्वामी प्रकाशन 1058 विवेकानंद नगर गाजियाबाद मो. 9910336715

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