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संपादकीय

सावधान: बाड़ खेत को खा रही है

महर्षि व्यास लिखते हैं – जात्या च सदृशा सर्वे कुलेन सदृशास्तथा। न चोद्योगे न बुद्घया वा रूपद्रव्येण वा पुन:। भेदोच्चैव प्रदानच्च भिद्यन्ते भिद्यन्ते निपुभिर्गणा।। (महा. शा. 107. – 30, 31) अर्थात जाति और कुल में सभी एक समान हो सकते हैं, परंतु उद्योग, बुद्घि, रूप, तथा सम्पत्ति में सबका एक सा होना संभव नही है। […]

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राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

देश की राजधानी दिल्ली और राज्यों की स्थिति

भारत देश का संवैधानिक नाम भारत संघ (इंडियन यूनियन) है। इसका कारण यह बताया जाता है कि भारत विभिन्न राज्यों का एक संघ है। यद्यपि इन राज्यों की संवैधानिक स्थिति कभी के सोवियत संघ के राज्यों की स्थिति के सर्वथा भिन्न है। इसके अतिरिक्त ये राज्य किसी भी स्थिति परिस्थिति में ‘राष्ट्र राज्य’ नही हो […]

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पर्यावरण भयानक राजनीतिक षडयंत्र भारतीय संस्कृति राजनीति संपादकीय

भारत का यज्ञ विज्ञान और पर्यावरण नीति, भाग-8

अकर्मण्यता हमारा लक्ष्य न हो प्रकृति अपना कार्य कर रही है, इतिहास अपना कार्य कर रहा है। कालचक्र अपनी गति से घूम रहा है। तीनों बातें भारत के पक्ष में हैं। किंतु इसका अभिप्राय यह कदापि नहीं है कि हम हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाएं या अकर्मण्यता को गले लगाकर अपने दुर्भाग्य की पटकथा […]

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मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

कश्मीर का दर्द, देश का मर्ज और मोदी

1947 में साम्प्रदायिक आधार पर देश के बंटवारे को अपनी सहमति देने वाले नेहरू-गांधी की कांग्रेस आज तक कहे जा रही है कि ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।’ कांग्रेस अपने सामने लगे तथ्यों के ढेर की उपेक्षा करके अपनी झूठी बात के महिमामंडन करते रहने की अभ्यस्त रही है। इसके सामने इतिहास गला […]

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पर्यावरण भयानक राजनीतिक षडयंत्र भारतीय संस्कृति राजनीति संपादकीय

भारत का यज्ञ विज्ञान और पर्यावरण नीति, भाग-7

विश्व में ईसाइयत और इस्लाम के मध्य उभरता अंतद्र्वन्द हमारा ध्यान इन जातियों के पतन की ओर दिलाता है। इतिहास ने ‘ओसामा बिन लादेन’ और ‘जार्ज डब्ल्यू बुश’ को पतन के मुखौटे के रूप में तैयार कर दिया है। इनके पश्चात इनके उत्तराधिकारी आते रहेंगे और पतन की दलदल में ये और भी धंसते चले […]

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आओ कुछ जाने भारतीय संस्कृति मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

समय की आवश्यकता है-शहरों के नामों का भारतीयकरण

विश्व में भारतवर्ष एक ऐसा देश है, जिसके धर्म, संस्कृति और इतिहास सर्वाधिक प्राचीन हैं। इस दृष्टिकोण से भारतवर्ष का धर्म वैश्विक धर्म है, भारत की संस्कृति वैश्विक संस्कृति है और भारत का इतिहास (यदि वास्तव में खोजकर तथ्यपूर्ण ढंग से लिखा जाए तो) विश्व का इतिहास है। विश्व के ऐतिहासिक नगरों, देशों की राजधानियां […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

औरंगजेब को सदा मिलती रहीं हिंदू वीरों की चुनौतियां

हमारे इतिहास के बारे म ेंहैनरी बीवरिज का मत भारत का इतिहास जिन लोगों ने विकृत किया है उन्हीं शत्रु इतिहास लेखकों के मध्य कुछ लोगों ने उदारता का परिचय देते हुए सत्य का महिमामंडन करने में भी संकोच नही किया है। ”ए काम्प्रीहैंसिव हिस्ट्री ऑफ इंडिया” (खण्ड-1 पृष्ठ 18) के लेखक हैनरी बीवरिज लिखते […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-63

स्वार्थभाव मिटे हमारा प्रेमपथ विस्तार हो गतांक से आगे…. स्वस्ति पन्थामनुचरेम् सूय्र्याचन्द्रमसाविव। पुनर्ददताअघ्नता जानता संगमेमहि।। (ऋ. 5/51/15) इस मंत्र में वेद कह रहा है कि जैसे सूर्य और चंद्रमा अपनी मर्यादा में रहते और मर्यादा पथ में ही भ्रमण करते हैं, कभी अपने मर्यादा पथ का उल्लंघन नही करते वैसे हमें भी अपने कल्याणकारी मार्ग […]

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बिखरे मोती

ताज टिका नहीं शीश पै, इसकी नींव जुबान

बिखरे मोती-भाग 190 गतांक से आगे…. कहने का अभिप्राय है कि जो व्यक्ति पैसे के लिए दूसरों का हक मारते हैं, उनका टेंटुआ दबाते हैं, उन्हें पाप-पुण्य अथवा धर्म-कर्म की चिंता नहीं, उन्हें तो पैसा चाहिए, पैसा। चाहे वह ईमानदारी के बजाए बेशक बेइमानी से आये, उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं। ऐसे लोग […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

क्यों कर रहा है किसान आत्महत्या?

भारत का ‘अन्नदाता’ इस समय आत्महत्या कर रहा है। जैसे-जैसे यह घटनाएं बढ़ती हैं, वैसे-वैसे ही विपक्षी पार्टियां चिल्लाती हैं कि सरकार किसानों के लिए कुछ नहीं कर रही है, और यह सरकार किसान विरोधी है। विपक्ष की इस चिल्लाहट के बीच सरकारें किसानों के कर्ज माफ कर रही हैं। पर देखा जा रहा है […]

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