-अशोक “प्रवृद्ध” वर्तमान में नवरात्र में अष्टभुजाओं वाली भगवती दुर्गा की प्रतिमा स्थापन, पूजन, आराधना की परिपाटी है। भगवती दुर्गा की प्रतिमा में हाथों की संख्या विभिन्न पुराणों में अलग-अलग अंकित है। वराह पुराण 95/41 में अंकित है कि माता वाराही अपनी बीस हाथों में अस्त्र-शस्त्र एवं धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीकों- शंख,चक्र, गदा, पद्म, शक्ति, महोल्का, हल,मूसल, […]
श्रेणी: धर्म-अध्यात्म
-अशोक “प्रवृद्ध” वैदिक मतानुसार वेद सब सत्य विधाओं की पुस्तक है। वेद अपौरुषेय हैं। वेद ईश्वर की वाणी है। वेद सब सत्य विद्याओं का मूल है। इसलिए केवल वेद विद्या पर ही विश्वास करना चाहिए। ईश्वर प्राप्ति का एकमात्र उपाय महर्षि पतंजलि प्रणीत यम ,नियम, आसान, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि है। महर्षि दयानंद सरस्वती […]
एक समय वह भी था जब सारे संसार का एक ही धर्म था-वैदिक धर्म।एक ही धर्मग्रन्थ था वेद।एक ही गुरु मंत्र था-गायत्री।सभी का एक ही अभिवादन था-नमस्ते।एक ही विश्वभाषा थी-संस्कृत।और एक ही उपास्य देव था-सृष्टि का रचयिता परमपिता परमेश्वर,जिसका मुख्य नाम ओ३म् है।तब संसार के सभी मनुष्यों की एक ही संज्ञा थी-आर्य।सारा विश्व एकता के […]
================== अपश्यं गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश्चरन्तम् | स सध्रीची: स विषूचीर्वसान आ वरीवर्ति भुवनेष्वन्त: || ऋग्वेद 1.164.31 शब्दार्थ : अनिपद्यमानम् = अविनाशी आ = सीधे = आगे च = और परा = उलटे, वापसी च = भी पथिभि: = मार्गों से चरन्तम् = विचरण करनेवाले गोपाम् = इन्द्रियों के स्वामी को अपश्यम् = मैने […]
============= हमारी यह सृष्टि सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सच्चिदानन्दस्वरूप, अनादि व नित्य परमात्मा से बनी है। ईश्वर, जीव तथा प्रकृति तीन अनादि व नित्य सत्तायें हैं। सृष्टि प्रवाह से अनादि है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति तथा प्रलय का क्रम अनादि काल से चला आ रहा है और अनन्त काल तक चलता रहा है। सभी अनन्त […]
============ संसार की अधिकांश जनसंख्या ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करती है। बहुत बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी किसी न किसी रूप में इस सृष्टि को बनाने व चलाने वाली सत्ता के होने का संकेत करते हुए उसे दबी जुबान से स्वीकार करते हैं। हमारा अनुमान व विचार है कि यदि यूरोप के वैज्ञानिकों ने वेदों को […]
ओ३म् 🌷श्राद्ध करना चाहिए या नहीं?🌷 प्रश्न:-श्राद्ध करना चाहिए या नहीं? उत्तर:-श्राद्ध करना चाहिए।जीवित माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, गुरु आचार्य तथा अन्य वृद्धजनों एवं तत्ववेत्ता विद्वान् लोगों को अत्यन्त श्रद्धापूर्वक सेवा करनी चाहिए, इसी का नाम ‘श्राद्ध’ है। प्रश्न:-‘श्राद्ध’ तो मरे हुए पितरों का होता है, जीवित का भी कहीं श्राद्ध होता है? उत्तर:-पहले यह सोचो […]
१• ओ३म् खं ब्रह्म ।। ( यजुर्वेद ४०/१७ ) ओ३म् = सबका रक्षक ब्रह्म परमेश्वर जो आकाश के समान सर्वत्र व्यापक है | २• प्राणाय नमो यस्य सर्वमिदं वशे । यो भूतः सर्वस्य ईश्वरो यस्मिन् सर्वं प्रतिष्ठितम् ।। ( अथर्व ११/४/१ ) ईश्वर = आश्वर्यवान संसार के समस्त पदार्थों का स्वामी ३• तद्विष्णोः परमं पदं […]
प्रश्न — हमने सुना है, आत्मा की पहचान के कुछ लक्षण न्याय दर्शन में बताए हैं। हम जानना चाहते हैं कि, उनमें से कौन से गुण स्वाभाविक हैं, और कौन से नैमित्तिक हैं? उत्तर — न्याय दर्शन के अध्याय 1,आह्निक 1, सूत्र 10 के अनुसार आत्मा में 6 लक्षण बताए गए हैं । इच्छा द्वेष […]
आचार्य प्रियव्रत वेदवाचस्पति वैदिक धर्म में तलाक की भी जगह नहीं हैं। वर-वधू को विवाह से पूर्व भली-भाँति देख-भाल और पड़ताल करके अपना साथी चुनने का आदेश दिया गया है – खूब अच्छी तरह परख कर अपना साथी चुनो। पर जब एक बार विवाह हो गया तो फिर विवाह टूट नहीं सकता – तलाक नहीं […]