वेद का संदेश है कि मनुष्य जितेंद्रीय बने अर्थात अपनी इंद्रियों पर विजय पाये। लेकिन इंद्रियों को जीतने की बात करने से पहले इंद्रियों के बारे में जान लेना भी अच्छा होगा। प्राय: सभी जानते हैं कि इंद्रियां 10 प्रकार की हैं ; – पांच ज्ञानेंद्रियां पांच कर्मेंद्रियां। दसों इंद्रियों के विषय में पूर्व के […]
श्रेणी: भारतीय संस्कृति
समाज के प्रति हमारे कर्तव्य वेद सामाजिक संगठन की बात करता है । इस प्रकार संसार को समाज , सामाजिक संगठन या सामाजिक संस्थाएं देने का चिन्तन व दर्शन सर्वप्रथम वेदों ने दिया । यही कारण है कि वैदिक संस्कृति में आस्था रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के भीतर समाज , सामाजिक संगठन और समाज सेवा […]
सर्व भूते हिते रता, की भावना जिस व्यक्ति के भीतर मिलती है समझिए कि वह वास्तविक ज्ञानी है । जो तन से निस्वार्थ भाव से जनहितार्थ कार्य करता है , वही ज्ञानी है। माया के मर्म को समझने वाला ही ज्ञानी है। जो पुत्र की शादी करके पुत्र के लिए छल कपट से कार, कोठी […]
ओ३म् =========== मनुष्य समाज में शिक्षित, अशिक्षित, संस्कारित-संस्कारहीन तथा धनी व निर्धन कई प्रकार के लाग देखने को मिलते हैं। सभी सोचते हैं कि धनवान वह होता है जिसके पास प्रचुर मात्रा में चल व अचल धन-सम्पत्ति होती है। निर्धन उसे माना जाता है जो आर्थिक दृष्टि से कमजोर होता है। यह बात पूरी तरह […]
मानव का खानपान बदल गया। रहन-सहन बदल गया। चाल चलन बदल गया। मानव की मान्यताएं बदल गईं ,और बदल गया मानव का स्वभाव । जैसे-जैसे मानव मूल्यों में अवमूल्यन हुआ ,मानव पतनोन्मुख होता चला गया ।मानव नामक प्राणी के अजीब गरीब चेहरे मिलते हैं । मानव के पतन का सिलसिला अभी भी और चलना चाहिए […]
भाई और बहन के परस्पर कर्तव्य भाई और बहन का सम्बन्ध भारत की वैदिक संस्कृत में बहुत ही पवित्र माना जाता है। संसार के अन्य देशों में भी यदि भाई बहन के संबंध को सबसे अधिक पवित्र माना जाता है तो इसके पीछे कारण केवल वैदिक संस्कृति का वह चिन्तन है जिसके कारण ये दोनों […]
यम क्या है ? यम वायु को कहते हैं। जब यह आत्मा इस सर्वांग शरीर को त्याग कर अंतरिक्ष में जाता है तो यह अपने सूक्ष्म शरीर द्वारा उसी यम नाम की वायु में रमण करता है , तब उस वायु को हम यम कहा करते हैं। वायु को यम क्यों कहते हैं? क्योंकि परमात्मा […]
मनुष्य का जीवन कुछ इस प्रकार का है कि इसमें जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत किसी ना किसी का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है। जन्म लेते ही प्राकृतिक रूप से हमारी माँ हमारे लिए सहारा बन जाती है। हमारे जन्म के कुछ समय पश्चात ही माता के साथ – साथ इसी कार्य को पिता […]
आत्मा परमात्मा का बालक है।जैसे एक मनुष्य का बालक अपने माता – पिता की आज्ञा के अनुसार कार्य करने पर उन्नत होता है ,उसी प्रकार आत्मा प्रभु की आज्ञा में चलकर ही उच्च बनता है। प्रभु की कौन सी आज्ञा है ? प्रभु ने ज्ञान दिया जो अपनी बालक आत्मा को दिया। उसी ज्ञान को […]
प्रस्तुति : आचार्य ज्ञान प्रकाश वैदिक सभी प्रकार के योग में अष्टांग योग का सर्वाधिक प्रचलन और महत्व है। इसी योग को हम अष्टांग योग के नाम से जानते हैं। अष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग। दरअसल पतंजलि ने योग की समस्त विद्याओं को आठ अंगों में श्रेणीबद्ध कर दिया है। *योग-सूत्र की रचना […]