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भारतीय संस्कृति

मनुस्मृति और जातिवाद

——————————- जातिवाद के लिए कालबाह्य मनुस्मृति को दोष देना, हिरोशिमा बमबारी के लिए आइंस्टाइन को जिम्मेदार बताने जैसा है।मनुस्मृति पर लोगों में गलत अवधारणा का प्रचार बहुत अधिक है।अमेरिका के एक गोरे पुलिस ऑफिसर डेरेक शाविन ने ४६ वर्षीय अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की निर्मम हत्या कर दी और अमेरिका #BlackLivesMatter की माँग के साथ भड़क […]

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अपने मानवपन को अपमानित करता मानव

कार्यशील वर्ग ने अकर्मण्य वर्ग का और साहसी वर्ग ने कायर वर्ग का सदैव शोषण किया है । मनुष्य को आज एक दूसरे का दु:ख दर्द समझने की फुर्सत नहीं है । ना ही यह सोचने का वक्त है कि वह आधुनिकता की इस दौड़ में कहां जा रहा है ? मनुष्य ने दुनिया को […]

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आगे आगे देखिए होता है क्या ?

जमाना नहीं मानव की सोच बदली है। सफलता और उन्नति के इस समय में जहां हमने बहुत कुछ पाया है वहीं वह कुछ खोया भी है ।हमने विकास के शिखरों को तो छू लिया लेकिन पतन के गर्त में भी गिरे हैं ।अपने पतन की पराकाष्ठा की ओर अभी हमने ध्यान नहीं दिया तो फिर […]

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अधिकार से पहले कर्तव्य , अध्याय — 15 , पुलिस के समाज के प्रति कर्तव्य

< पुलिस के समाज के प्रति कर्तव्य भारत में प्राचीन काल में पुलिस जैसी किसी व्यवस्था के होने के स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं । हाँ , इतना अवश्य है कि उस समय लोक प्रशासन को चलाने के लिए लोग स्वयं ही शासन – प्रशासन की सहायता किया करते थे । जिससे दंड , दंड व्यवस्था […]

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ईश्वर की कृपा का रस मानव के यथार्थ में

उपनिषद भारतीय सांस्कृतिक वांग्मय की अमूल्य धरोहर हैं। इनकी मैक्समूलर, फ्रॉयड जैसे कितने ही विदेशी विद्वानों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। वास्तव में मानवीय व्यवहार और उसकी उन्नति में उपनिषदों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । उपनिषदों का प्रतिपाद्य विषय है कि जो कुछ ब्रहमांड में है वही पिंड में है। पिंड का […]

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छोटी-छोटी बातें होती हैं बहुत बड़ी

जीवन का एक रूप है – श्वास। यदि मनुष्य श्वास रहित हो जाए तो मृत हो जाता है । श्वासों का खेल जब तक चल रहा है तब तक हम सब गतिमान हैं। श्वासों का खेल खत्म हो गया तो जीवन मेला खत्म हो गया ,लेकिन मनुष्य इनका कोई मूल्य न समझकर इन सांसों को […]

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देवता और दैत्य का अंतर

वेद का संदेश है कि मनुष्य जितेंद्रीय बने अर्थात अपनी इंद्रियों पर विजय पाये। लेकिन इंद्रियों को जीतने की बात करने से पहले इंद्रियों के बारे में जान लेना भी अच्छा होगा। प्राय: सभी जानते हैं कि इंद्रियां 10 प्रकार की हैं ; – पांच ज्ञानेंद्रियां पांच कर्मेंद्रियां। दसों इंद्रियों के विषय में पूर्व के […]

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अधिकार से पहले कर्तव्य , अध्याय — 13 , समाज के प्रति हमारे कर्तव्य

समाज के प्रति हमारे कर्तव्य वेद सामाजिक संगठन की बात करता है । इस प्रकार संसार को समाज , सामाजिक संगठन या सामाजिक संस्थाएं देने का चिन्तन व दर्शन सर्वप्रथम वेदों ने दिया । यही कारण है कि वैदिक संस्कृति में आस्था रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के भीतर समाज , सामाजिक संगठन और समाज सेवा […]

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कैसे हो ज्ञानी की पहचान ?

सर्व भूते हिते रता, की भावना जिस व्यक्ति के भीतर मिलती है समझिए कि वह वास्तविक ज्ञानी है । जो तन से निस्वार्थ भाव से जनहितार्थ कार्य करता है , वही ज्ञानी है। माया के मर्म को समझने वाला ही ज्ञानी है। जो पुत्र की शादी करके पुत्र के लिए छल कपट से कार, कोठी […]

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असली निर्धन वह है जो श्रद्धा से विद्वान का सेवा सत्कार नहीं करता

ओ३म् =========== मनुष्य समाज में शिक्षित, अशिक्षित, संस्कारित-संस्कारहीन तथा धनी व निर्धन कई प्रकार के लाग देखने को मिलते हैं। सभी सोचते हैं कि धनवान वह होता है जिसके पास प्रचुर मात्रा में चल व अचल धन-सम्पत्ति होती है। निर्धन उसे माना जाता है जो आर्थिक दृष्टि से कमजोर होता है। यह बात पूरी तरह […]

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