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भारतीय संस्कृति

उत्तिष्ठत जाग्रत : कहां तक चलोगे किनारे किनारे

मानव का खानपान बदल गया। रहन-सहन बदल गया। चाल चलन बदल गया। मानव की मान्यताएं बदल गईं ,और बदल गया मानव का स्वभाव । जैसे-जैसे मानव मूल्यों में अवमूल्यन हुआ ,मानव पतनोन्मुख होता चला गया ।मानव नामक प्राणी के अजीब गरीब चेहरे मिलते हैं । मानव के पतन का सिलसिला अभी भी और चलना चाहिए […]

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अधिकार से पहले कर्तव्य – अध्याय– 12 , बहन और भाई के एक दूसरे के प्रति कर्तव्य

भाई और बहन के परस्पर कर्तव्य भाई और बहन का सम्बन्ध भारत की वैदिक संस्कृत में बहुत ही पवित्र माना जाता है। संसार के अन्य देशों में भी यदि भाई बहन के संबंध को सबसे अधिक पवित्र माना जाता है तो इसके पीछे कारण केवल वैदिक संस्कृति का वह चिन्तन है जिसके कारण ये दोनों […]

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सुख-दुख के लक्षण और पुनर्जन्म

यम क्या है ? यम वायु को कहते हैं। जब यह आत्मा इस सर्वांग शरीर को त्याग कर अंतरिक्ष में जाता है तो यह अपने सूक्ष्म शरीर द्वारा उसी यम नाम की वायु में रमण करता है , तब उस वायु को हम यम कहा करते हैं। वायु को यम क्यों कहते हैं? क्योंकि परमात्मा […]

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अधिकार से पहले कर्तव्य , अध्याय – 11, पति और पत्नी के एक दूसरे के प्रति कर्त्तव्य

मनुष्य का जीवन कुछ इस प्रकार का है कि इसमें जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत किसी ना किसी का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है। जन्म लेते ही प्राकृतिक रूप से हमारी माँ हमारे लिए सहारा बन जाती है। हमारे जन्म के कुछ समय पश्चात ही माता के साथ – साथ इसी कार्य को पिता […]

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परमात्मा और जीव का संबंध

आत्मा परमात्मा का बालक है।जैसे एक मनुष्य का बालक अपने माता – पिता की आज्ञा के अनुसार कार्य करने पर उन्नत होता है ,उसी प्रकार आत्मा प्रभु की आज्ञा में चलकर ही उच्च बनता है। प्रभु की कौन सी आज्ञा है ? प्रभु ने ज्ञान दिया जो अपनी बालक आत्मा को दिया। उसी ज्ञान को […]

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अष्टांग योग के निरंतर अभ्यास से ही ईश्वर का साक्षात्कार संभव है

प्रस्तुति : आचार्य ज्ञान प्रकाश वैदिक सभी प्रकार के योग में अष्टांग योग का सर्वाधिक प्रचलन और महत्व है। इसी योग को हम अष्टांग योग के नाम से जानते हैं। अष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग। दरअसल पतंजल‍ि ने योग की समस्त विद्याओं को आठ अंगों में श्रेणीबद्ध कर दिया है। *योग-सूत्र की रचना […]

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क्या है मन , बुद्धि ,अंतः करण, तेज ,स्मृति आदि

योगी जन किस प्रकार अपने मूल आधार से ब्रह्मरंध्र तक रमण करते हुए यौगिकता को प्राप्त होते हैं ? ईश्वर ने उनको दो प्रकार के प्राण दिए हैं । एक सामान्य प्राण ,दूसरा विशेष प्राण। सामान्य प्राण कौन सा है ? सामान्य प्राण वह है जो संसार को चला रहा है , लोक लोकान्तरों में […]

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स्वस्थ मन सभी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का आधार है

ओ३म् ============ सामान्य मनुष्य आज तक अपनी आत्मा के अन्तःकरण में विद्यमान एवं कार्यरत मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार उपकरणों को यथावत् रूप में नहीं जान पाया है। मनुष्य को मनुष्य उसमें मन नाम का एक करण होने के कारण कहते हैं जो संकल्प विकल्प व चिन्तन-मनन करता है। मनुष्य का मन आत्मा का करण […]

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सभी आर्ष ग्रंथों में केवल ओ३म का ही जप और स्मरण करने की शिक्षा दी गई है

*वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण ग्रंथ, महाभारत गीता, योगदर्शन, मनुस्मृति में एक “ओंकार का ही स्मरण और जप” करने का उपदेश दिया गया है।* ओ३म् का जाप स्मरण शक्ति को तीव्र करता है,इसलिए वेदाध्ययन में मन्त्रों के आदि तथा अन्त में ओ३म् शब्द का प्रयोग किया जाता है। यजुर्वेद में कहा है- *ओ३म् क्रतो स्मर ।।-(यजु० ४०/१५)* […]

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आत्मा का ब्रह्मरंध्र और कर्म चक्र से संबंध

बहुत सुना है आपने क्या लेकर तू आया जग में क्या लेकर तू जाएगा ? दूसरा सुना है कि न कुछ लेकर के आए ना कुछ लेकर जाना। खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाना है। पर वास्तव में यह सब झूठ है । हम ले करके आते भी हैं और लेकर के जाते भी […]

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