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आज का चिंतन

परमात्मा की अनुभूति कैसे करें?

परमात्मा की अनुभूति क्यों करें? प्रसन्नता की मूल वर्षा करने वाला कौन है? अपने जीवन में किसी भी महान् व्यक्तित्व का अनुसरण कैसे करें? अस्मा इदु त्यमुपमं स्वर्षां भराम्याङ््गूषमास्येन। मंहिष्ठमच्छोक्तिभिर्मतीनां सुवृक्तिभिः सूरिं वावृधध्यै।। ऋग्वेद मन्त्र 1.61.3 (कुल मन्त्र 697) (अस्मै इत् उ) निश्चय से यह उसके लिए है (परमात्मा के लिए) (त्यम) उस (उपमम) निकटता […]

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हम परमात्मा की महिमा का गान क्यों करते हैं?

हम परमात्मा की महिमा का गान क्यों करते हैं? हमारा प्राचीन संरक्षक कौन है?हमें शारीरिक और मानसिक रूप से कौन शुद्ध करता है? भगवान के साथ हमारा सम्बन्ध बार-बार भोजन करने के समान किस प्रकार है? अस्मा इदु प्रयइव प्र यंसि भराम्याङ््गूषं बाधे सुवृक्ति।इन्द्राय हृदा मनसा मनीषा प्रत्नाय पत्ये धियो मर्जयन्त ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.61.2 […]

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वेद और ऋषि दयानन्द

पं० मदनमोहन विद्यासागर [जब हम ‘वेद’ को भूलकर अपने को भुला चुके थे तब ऋषिवर दयानन्द ने लुप्त ज्ञान भंडार ‘वेद’ पुनः संसार को दिया, इसके लिए मानव-जाति सदा ऋषि की ऋणी रहेगी। इस लेख के लेखक पं० मदनमोहन विद्यासागर जी ने ऋषि दयानन्द जी के मत से वेद की महत्ता का वर्णन किया है, […]

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परमात्मा प्रशंसा के लायक क्यों है?

परमात्मा प्रशंसा के लायक क्यों है? हम प्रशंसाएँ कैसे अर्जित कर सकते हैं? परमात्मा की प्रशंसाओं की तुलना संतुष्टि जनक भोजन और सम्पदा के साथ क्यों की गई है? अस्मा इदु प्र तवसे तुराय प्रयो न हर्मि स्तोमं माहिनाय। ऋचीषमायाध्रिगव ओहमिन्द्राय ब्रह्माणि राततमा।। ऋग्वेद मन्त्र 1.61.1 (कुल मन्त्र 695) (अस्मै इत् उ) निश्चय से यह […]

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🌷 वाणी का संयम 🌷

इयं या परमेष्ठिनी वाग्देवी ब्रह्मसंशिता । ययैव ससृजे घोरं तयैव शान्तिरस्तु न: ।। ―(अथर्व० १९/९/३) (इयम्) यह (या) जो (परमेष्ठिनी) सर्वोत्कृष्ट परमात्मा में ठहरने वाली (देवी) उत्तम गुण वाली (वाक्) वाणी (ब्रह्मसंशिता) वेदज्ञान से तीक्ष्ण की गई है और (यया) जिसके द्वारा (घोरम्) घोर पाप (ससृजे) उत्पन्न हुआ है (तया) उस वाणी के द्वारा (एव) […]

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*🌷 पुनर्जन्म -विवेचन 🌷*

एक शरीर को त्याग कर दूसरा शरीर धारण करना ही पुनर्जन्म कहाता है। चाहे वह मनुष्य का शरीर हो या पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि कोई भी शरीर। यह आवागमन या पुनर्जन्म एक शाश्वत सत्य है। जो जैसे कर्म करता है,वह वैसा ही शरीर प्राप्त करता है।धनाढ़य, कंगाल, सुखी,दुःखी, ऊँच, नीच आदि अनेक प्रकार के […]

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ओ३म् “ईश्वर और वेद ही संसार में सच्चे अमृत हैं”

========== संसार में तीन सनातन, अनादि, अविनाशी, नित्य व अमर सत्तायें हैं। यह हैं ईश्वर, जीव और प्रकृति। अमृत उसे कहते हैं जिसकी मृत्यु न हो तथा जिसमें दुःख लेशमात्र न हो और आनन्द भरपूर हो। ईश्वर अजन्मा अर्थात् जन्म-मरण धर्म से रहित है। अतः ईश्वर मृत्यु के बन्धन से मुक्त होने के कारण अमृत […]

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ईश्वर ऐसे मिलता है*

(कृष्णा रंजन – विभूति फीचर्स) जो जाना जा सकता है वह संसार है। जानने से जो छूट जाता है, वह सत्य है। जो पाया जा सकता है वह पदार्थ है। जो पाने से छूट जाता है, वह परमात्मा है, इसीलिये ईश्वर एक पहेली है। उसे खोजने वाला खोजते-खोजते स्वयं खो जाता है,तब वह मिलता है। […]

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दूसरों की खुशी में खुश होना सीखिये*

(सत्यशील अग्रवाल-विभूति फीचर्स) समाज में यह सामान्य प्रथा प्रचलित है कि समाज में, परिवार में अथवा विश्व में मानव के दु:ख से हम विचलित होते हैं, दु:खी या पीड़ित जनों के लिए सहानुभूति रखते हैं और यथा सम्भव उनका दु:ख दूर करने का प्रयास करते हैं। यह बात अलग है कि जितना करीब का रिश्ता […]

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शरीर में आत्मा कहां रहती है? भाग ___16

इससे पूर्व की 15वीं किस्त में छांदोग्य उपनिषद में आत्मा के संबंध में क्या विवरण आता है उसकी प्रस्तुति की गई थी। पृष्ठ संख्या 835 पर बहुत ही सुंदर विवरण आता है। जीवात्मा को पुरुष क्यों कहते हैं? इसको निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है। ‘पुरुष’ शब्द दो शब्दों की संधि हो करके बना है। […]

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