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धर्म-अध्यात्म

मनुष्य का जीवन व चरित्र उज्जवल होना चाहिये

मनुष्य का जीवन व चरित्र उज्जवल होना चाहिये परन्तु आज ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है। जो जितना बड़ा होता है वह अधिक संदिग्ध चरित्र व जीवन वाला होता है। धर्म हो या राजनीति, व्यापार व अन्य कारोबार, शिक्षित व अशिक्षित सर्वत्र चरित्र में गड़बड़ होने का सन्देह बना रहता है। ऐसा होना नहीं […]

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संपादकीय

मनुष्य को अछूत मानने वाला स्वयं ‘अछूत’ है

अस्पृश्यता को लेकर पुन: एक बार चर्चा चली है। पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने इस विषय में कुछ समय पूर्व आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया है था और शूद्रों को मंदिर में प्रवेश पाने से निषिद्घ करने की बात कही थी। जब विश्व मंगल ग्रह पर जाकर पृथ्वी के मंगल गीतों से मंगल पर […]

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भारतीय संस्कृति

मनुष्य की समस्त समस्याओं का समाधान वैदिक शिक्षा

अशोक प्रवृद्ध वर्तमान भूमण्डलीकरण के युग ने जहाँ स्थान और समय की दूरी को कम कर दिया है, वहीं महाद्वीपों, देशों और प्रान्तों के अवरोधों को दूर करने में भी काफी सफलता अर्जित की है। यद्यपि यह नाम कुछ ऐसा आभास देता है, मानो इसमें समस्त मानवता का हित समाहित हो, परन्तु वास्तविकता इससे सर्वथा […]

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भारतीय संस्कृति

मनुष्य जीवन, स्वास्थ्य रक्षा और चिकित्सा

मनुष्य योनि सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है। कहा गया है कि ‘सुर दुर्लभ मानुष तन पावा’ अर्थात् देवताओं को भी दुर्लभ है यह मनुष्य शरीर ईश्वर की अहैतुकी कृपा से हम मनुष्यों को प्राप्त हुआ है। प्रायः भद्र पुरुषों का ऐसा नियम है कि जो भी वस्तु हमें उपहार में मिले उसे बहुत सम्भाल कर […]

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महत्वपूर्ण लेख

आदिकाल से ही है मनुष्य शांति की खोज में

देवेन्द्रसिंह आर्य (चेयरमैन) प्राचीन काल से अद्यतन पर्यन्त मानव की इच्छा रही है -शांति की खोज। इसलिए चाहे आज का मानव कितना भी भौतिक संसाधनों से परिपूर्ण है, तथा कितना भी व्यस्त है, परंतु वह एक असीम शांति की चाह में अवश्य है। मानव को असीम शांति कैसे प्राप्त हो सकती है? इस पर हमारे […]

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आओ कुछ जाने

सृष्टि में मनुष्य जन्म क्यों होता आ रहा है ?

हम संसार में जन्में हैं। हमें मनुष्य कहा जाता है। मनुष्य शब्द का अर्थ मनन व चिन्तन करने वाला प्राणी है। संसार में अनेक प्राणी हैं परन्तु मननकरने वाला प्राणी केवल मनुष्य ही है। मनुष्य का जन्म-माता व पिता से होता है। यह दोनों मनुष्य के जन्म में मुख्य कारण वा हेतु दिखाई देते हैं […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-37

गतांक से आगे……… यहां हम थोड़ा सा उसका इतिहास देकर उसके विषय प्रतिपादन की ओर आना चाहते हैं। तिलक महोदय ने ‘ओरायन मृगशीर्ष’ ग्रंथ लिखने के पांच वर्ष बाद सन 1898 में उत्तरधु्रव निवास लिखा और उसका सारांश एक पत्र द्वारा मैक्समूलर के पास भेजा। पत्र के उत्तर में मैक्समूलर ने लिखा कि कितने ही […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-36

गतांक से आगे…. हमको, आपको, तिलक महाराज को और अन्य किसी को भी क्या अधिकार है किवह इन समयों को पहिली ही आवृत्ति का समझे? अर्थात वह यह क्यों समझ  ले कि यह अवस्था केवल अभी हाल ही की आवृत्ति की है? हम ऊपर लिख चुके हैं, कि किसी जमाने में वसंतसंपात फाल्गुनी पूर्णिमा के […]

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संपादकीय

मनुष्य को अछूत मानने वाला स्वयं ‘अछूत’ है

अस्पृश्यता को लेकर पुन: एक बार चर्चा चली है। पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने इस विषय में पुन: आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया है और शूद्रों को मंदिर में प्रवेश पाने से निषिद्घ करने की बात कही है। जब विश्व मंगल ग्रह पर जाकर पृथ्वी के मंगल गीतों से मंगल पर मंगल मना रहा […]

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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-35

गतांक से आगे……ऋग्वेद में है कि-संवत्सरं शशयाना ब्राह्मण व्रतचारिण:।वाचं पर्जन्यजिन्वितां प्र मण्डूका अवादिषु:।।ब्राह्मणासो अतिरात्रे न सोमे सरो न पूर्णमभितो वदन्त:।संवतत्सरस्य तदह: परिष्ठ यन्मण्डूका: प्रावृषीण्र बभूव।।(ऋ 7/103/7)यहां स्पष्ट कहा गया है कि संवत्सर भर सोये हुए मण्डूक पर्जन्य पड़ते ही बोलने लगे, क्योंकि संवत्सरस्य तदह: अर्थात संवत्सर का वही दिन है। कहने का मतलब यह है […]

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