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संपादकीय

मनुष्य को अछूत मानने वाला स्वयं ‘अछूत’ है

अस्पृश्यता को लेकर पुन: एक बार चर्चा चली है। पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने इस विषय में कुछ समय पूर्व आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया है था और शूद्रों को मंदिर में प्रवेश पाने से निषिद्घ करने की बात कही थी। जब विश्व मंगल ग्रह पर जाकर पृथ्वी के मंगल गीतों से मंगल पर […]

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संपादकीय

राष्ट्रघाती मुस्लिम तुष्टिकरण-भाग-5

सत्ता में लिप्त सभी दल हमने जनता पार्टी को सत्ता को सत्ता सौंपी, चरण सिंह के लोकदल को सत्ता सौंपी, वीपीसिंह के जनता दल को सत्ता सौंपी, राष्ट्रवाद की प्रहरी बनी भाजपा को सत्ता सौंपी और आज साम्यवादियों के सहयोग से चल रही कांग्रेसी सरकार को पुन: सत्ता सौंप दी है, लेकिन शासन का ढंग […]

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राजनीति संपादकीय

राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी

राष्ट्र अपने आप में एक अदृश्य और अमूत्र्त भावना का नाम है। इस अमूत्र्त भावना को साकार करता है-हमारा राष्ट्रवाद, और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण। जब एक ‘बिस्मिल’ यह कह उठता है :- यदि देशहित मरना पड़े मुझको सहस्रों बार भी। तो भी न मैं इस कष्ट को निज ध्यान में लाऊं कभी।। हे ईश भारतवर्ष में […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना-10

गांधीजी का कहना था कि- ”अगर पाकिस्तान बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा” परंतु यह उनके जीते जी ही बन गया। हां! ये अलग बात है कि वह उनकी लाश पर न बनकर देश के असंख्य लोगों की लाशों पर बना। क्या ही अच्छा होता कि यदि वह केवल उनकी ही लाश पर बनता तो […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना-9

महात्मा की अपेक्षाएं महात्मा तो वह होता है जिसकी आत्मा संसार के महत्व को समझकर विषमताओं, प्रतिकूलताओं और आवेश के क्षणों में भी जनसाधारण के प्रति असमानता का व्यवहार न करते हुए समभाव का ही प्रदर्शन करती है, किंतु जिसका व्यवहार हठीला हो, दुराग्रही हो, सच को सच न कह सकता हो, इसलिए एक पक्ष […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना-6

(पाठकवृन्द! इससे पूर्व इस लेखमाला के आप 5 खण्ड पढ़ चुके हैं, त्रुटिवश उन लेखमालाओं पर क्रम संख्या नहीं डाली गयी थी। इस 6वीं लेखमाला का अंक आपके कर कमलों में सादर समर्पित है।) गांधीजी की सिद्घांत के प्रति यह मतान्धता थी, जिद थी, और उदारता की अति थी। लोकतंत्र उदारता का समर्थक तो है […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना- 5

इस घटना से जो उत्तेजना फैली उससे  एक दिन मालेर कोटला के महल को कूकों के द्वारा घेर लिया गया और जमकर संघर्ष हुआ। परिणाम स्वरूप 68 व्यक्ति मालेर कोटला के डिप्टी कमिश्नर ‘मिस्टर कॉवन’ ने पकड़ लिये  और अगले दिन उनमें से 49 लोग तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिये गये तथा पचासवां […]

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