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वैदिक संपत्ति

वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे …..

जीविका, उद्योग और ज्ञानविज्ञान जीविका उत्पन्न करने के लिए सवको कृषि, पशुरक्षा और वाणिज्य का ही सहारा लेना पड़ता है। कृषि, पशुपालन और व्यापार पृथिवी की उपज से ही सम्बन्ध रखते हैं, इसलिए बिना भौगोलिक ज्ञान के जीविका का प्रश्न हल नहीं हो सकता । वेदों में भौगोलिक शिक्षा इस प्रकार दी गई है- पृच्छामि […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे…

शिर के विषय में वेद में लिखा है कि- तद्वा अथर्वणः शिरो देवकोशः समुब्जितः । तत् प्राणो अभिरक्षति शिरो अन्नमथो मनः ॥ (अथर्व० 10/2/27) अर्थात् ज्ञान का केन्द्र शिर है जो देवताओं का सुरक्षित कोश है। इस कोश की प्राण, मन और अन्न रक्षा करते हैं। ऐसे ज्ञानकोश शिर की वृद्धि के समय से गर्भिणी […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे….

इन मंत्रों के द्वारा इस रहस्यपूर्ण कृत्य का वर्णन करके आगे वेद उपदेश करते हैं कि जब पति पत्नी गर्भस्थापन से निवृत्त हो जाय, तब वस्त्रों को धो डालें और दोनों स्नान करके गार्हपत्याग्नि में हवन करें तथा पति विनम्र भाव से परमेश्वर की इस प्रकार प्रार्थना करे कि विष्णुर्योनि कल्पयतु त्वष्टा रूपाणि पिशतु । […]

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वैदिक सम्पत्ति गतांक से आगे…

इन उपदेशों को अश्लील न समझना चाहिये । आगे इसी विवाहप्रकरण में गर्भाधानसंस्कार के लिए देता है कि- आ रोह तल्पं सुमनस्यमानेह प्रजां जनय पत्ये अस्मै। इन्द्राणीव सुबुधा बुध्यमाना ज्योतिरगरा उषसः प्रति जागरासि । (अथर्व० 14/2/31) देवा अग्रे न्यपद्यन्त पत्नी: समस्पृशन्त तन्वस्तनूभिः । सूर्येव नारि विश्वरूपा महित्वा प्रजावती पत्या सं भवेद् ॥ (अथर्व ० 14/2/32) […]

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वैदिक सम्पत्ति : वेदमंत्रों के उपदेश

(यह लेख माला हम पंडित रघुनंदन शर्मा जी की “वैदिक सम्पत्ति” नामक पुस्तक के आधार पर सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।) प्रस्तुति:- देवेंद्र सिंह आर्य (चेयरमैन ‘उगता भारत’) गतांक से आगे….. इस प्रकार दिनचर्या का वर्णन करके अब नदावार से सम्बन्ध रखनेवाली उदारता अर्थात् दान का वर्णन करते हैं- तवोतिभिः सचनाना अरिष्टा […]

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वैदिक सम्पत्ति : मनुष्य मात्र के साथ हो समता का व्यवहार

वैदिक सम्पत्ति गतांक से आगे… इन मन्त्रों में मनुष्यमात्र के साथ समता का व्यवहार करने का उपदेश किया गया है। इस उपदेश में अच्छी तरह बतला दिया गया है कि समस्त मनुष्यों की सम्पत्ति, विचार और रहनसहन एक समान होना चाहिये, तभी सौ वर्ष तक लोग सुख से जी सकते हैं। समस्त मनुष्यों के साथ […]

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वैदिक सम्पत्ति , गतांक से आगे …

इससे स्पष्ट हो जाता है कि वैदिक शिक्षा में बड़े बूढ़ों के मान और सेवा के लिए कितना जोर दिया गया है। इस कौटुम्बिक व्यवहार के आगे हम दिखलाना चाहते हैं कि वेदों में अपने कुटुम्ब से सम्बन्ध रखनेवाले अन्य जातिबन्धुयो के लिये किस प्रकार सुख की कामना करने का उपदेश है। ऋग्वेद में लिखा […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे…

इस प्रकार से गृहस्थ की दशा का वर्णन करके अब गृहस्य के नित्य करने योग्य पंचमहायज्ञों का वर्णन करते हैं। यजुर्वेद में लिखा है कि– यद् ग्रामे यदरण्ये यत्सभायां यदिन्द्रिये । यदेनश्चकृमा वयमिदं तदवयजामहे ।। (यजुर्वेद 3/45) अर्थात् ग्राम में, जंगल में और सभा में हमने इन्द्रियों से जो पाप किया है, उसे इस यज्ञ […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे…

गतांक से आगे… ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिस्त्रु तम् । स्वधा स्थ तर्पयत मे पितृन् (यजुर्वेद 2/34) अर्थात् बलकारक जल, घृत, दूध रसयुक्त अन्न और पके हुए तथा टपके हुए मीठे फलों की धारा बह रही है, अतः हे स्वधा में ठहरे हुए पितरो ! आप तृप्त हों। इन मन्त्रों के अनुसार वैदिक घरों […]

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वैदिक सम्पत्ति : गतांक से आगे… ग्रहस्थाश्रम

ग्रहस्थाश्रम उपर्युक्त इच्छाएँ विना गृहस्थाश्रम के पूरी नहीं हो सकतीं, इसलिए वेदों में गृहस्थाश्रम का पर्याप्त वर्णन है। यहाँ हम नमूने के तौर पर गृहस्थाश्रम की खास खास बातें लिखते हैं। सबसे पहिले देखते हैं कि वेदमन्त्रों के अनुसार गृहस्थ की हालत कैसी होनी चाहिये । अथर्ववेद में लिखा है कि- इहैव स्तं मा वि […]

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