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विशेष संपादकीय

उत्तर प्रदेश की स्थिति और योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश भारत का जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा प्रांत है। जितना बड़ा प्रांत है उतनी ही बड़ी इसकी समस्याएं हैं। इस प्रदेश का यह दुर्भाग्य रहा कि यहां पिछले दो दशक से ऐसी सरकारें काम करती रहीं जो पूर्णत: जातिवादी राजनीति को प्रोत्साहित करती रहीं। सरकारी तंत्र स्वयं में लूटतंत्र बनकर रह गया। […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना-6

(पाठकवृन्द! इससे पूर्व इस लेखमाला के आप 5 खण्ड पढ़ चुके हैं, त्रुटिवश उन लेखमालाओं पर क्रम संख्या नहीं डाली गयी थी। इस 6वीं लेखमाला का अंक आपके कर कमलों में सादर समर्पित है।) गांधीजी की सिद्घांत के प्रति यह मतान्धता थी, जिद थी, और उदारता की अति थी। लोकतंत्र उदारता का समर्थक तो है […]

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विशेष संपादकीय

गोली का आदेश नहीं है-दिल्ली के दरबारों से!

भारतीय सेना का एक गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। भारत में सेना के होने की पुष्टि भारत के प्राचीन साहित्य से भली प्रकार होती है। सेना राजा की अहिंसक नीति को राज्य में लागू कराने तथा विदेशी शत्रु से अपने देश की सीमाओं की रक्षा के दायित्व संभालती रही है। ‘राजा की अहिंसक नीति’ से हमारा […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

गांधीवाद की परिकल्पना- 5

इस घटना से जो उत्तेजना फैली उससे  एक दिन मालेर कोटला के महल को कूकों के द्वारा घेर लिया गया और जमकर संघर्ष हुआ। परिणाम स्वरूप 68 व्यक्ति मालेर कोटला के डिप्टी कमिश्नर ‘मिस्टर कॉवन’ ने पकड़ लिये  और अगले दिन उनमें से 49 लोग तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिये गये तथा पचासवां […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

राजा चम्पतराय और रानी सारन्धा का अप्रितम बलिदान

रानी सारंधा के विषय में भारत की वीरांगनाओं में रानी सारंधा का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। सारंधा बुंदेला राजा चंपतराय की सहधर्मिणी थी। जब सारंधा छोटी ही अवस्था में थी, तभी से उसकी देशभक्ति उस पर हावी होने लगी थी। स्वतंत्रता के भाव उसमें कूट-कूटकर भरे थे, इसलिए आत्माभिमान की भी […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-51

कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नरनार की प्रसिद्घ कवि शिव मंगलसिंह ‘सुमन’ अपनी ‘थीसिस’ के लिए शांति निकेतन गये। वहां से प्रस्थान करने से पूर्व वह आचार्य क्षिति मोहन सेन से आशीर्वाद लेने हेतु उनके कक्ष में गये। आचार्यश्री के चरण स्पर्श करके कवि महोदय ऊपर उठे तो आचार्यश्री के मुंह से निकलने वाले आशीष […]

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बिखरे मोती

ज्ञान-दीप ज्योंहि बुझै, होता महाविनाश

बिखरे मोती-भाग 178 यह लक्षण न तो कर्मयोगी में आया है और न ज्ञान योगी में आया है। यह लक्षण भगवान कृष्ण ने केवल भक्त का बताया है, क्योंकि भक्त में आरंभ में ही मित्रता और करूणा होती है। भक्त की दृष्टि में समस्त प्राणी परमात्मा का अंश हैं, इसलिए वह सोचता है कौन वैर […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

हमारा इतिहास गौरव का पुंज और तेज का निकुंज है

आत्मन: प्रतिकूलानि… संसार का कोई भी मत,पंथ या संप्रदाय ऐसा नही, जिसने परतंत्रता को धिक्कारा ना हो। इसका अर्थ है कि कोई मत, पंथ या संप्रदाय चाहे किसी विपरीत मत, पंथ या संप्रदाय के मानने वालों को अपने अधिक संख्या बल से डराकर या अपने बाहुबल से डराकर उन्हें अपना दास बनाने का अभियान चला […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-50

कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नरनार की अब हम पुन: अपने मूल मंत्र अर्थात ओ३म् त्वं नो अग्ने….पर आते हैं। आगे यह वेद मंत्र कह रहा है कि विद्वानों और आदरणीयों में आप सर्वोत्तम हैं। इसलिए सर्वप्रथम पूजनीय भी आप ही हैं। आप गणेश हैं, प्रजा के स्वामी हैं, और न्यायकारी हैं इसलिए मेरी श्रद्घा […]

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बिखरे मोती

रिश्ते खून के नहीं, इनकी जड़ जज्बात

बिखरे मोती-भाग 177 रिश्ते खून से नही अपितु भावनाओं से जुड़े होते हैं :-   रिश्ते खून के नहीं, इनकी जड़ जज्बात। घायल हो जज्बात जब, लगै हृदय को आघात ।। 1104 ।।   व्याख्या :- कैसी विडंबना है कि यह संसार रिश्तों की प्रगाढ़ता का मापदण्ड रक्त संबंध को मानता है? ऐसे लोगों की […]

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