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विशेष संपादकीय

उत्तर प्रदेश की स्थिति और योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश भारत का जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा प्रांत है। जितना बड़ा प्रांत है उतनी ही बड़ी इसकी समस्याएं हैं। इस प्रदेश का यह दुर्भाग्य रहा कि यहां पिछले दो दशक से ऐसी सरकारें काम करती रहीं जो पूर्णत: जातिवादी राजनीति को प्रोत्साहित करती रहीं। सरकारी तंत्र स्वयं में लूटतंत्र बनकर रह गया। हर विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने लूट को अपना धर्म मान लिया और यह विचार लिया कि प्रदेश के जनसाधारण को जितना निचोड़ा जा सके उतना अच्छा है और सरकारी योजनाओं के नाम पर सरकारी पैसे का जितना दुरूपयोग किया जा सके उतना ही अपने हित में होगा। 
सबसे पहले पुलिस विभाग को लें। इस विभाग में ऐसे अनेकों अपराधी घुस गये। ये अपराधी अधिकारी और पुलिस कर्मचारी बनकर पुलिस वर्दी को बदनाम करते रहे। ऐसे कितने ही उदाहरण सामने आए जब पुलिस के लोग लूट, हत्या, डकैती, बलात्कार और फिरौती जैसे गंभीर अपराधों में संलिप्त पाये गये। न्याय विभाग और राजस्व विभाग में नियुक्त अधिकारियों तक का दृष्टिकोण पूर्णत: जातिवादी और अगड़े-पिछड़े की तुच्छ मानसिकता को प्रदर्शित करने वाली बातों में फंसकर रह गया, और ये लोग न्याय करते समय भी लोगों की जाति देखने लगे। पुलिस विभाग में अपराधी से सांठ-गांठ कर पीडि़त व्यक्ति का मुकदमा दर्ज न करना या उससे प्राथमिकी न लेना और उसे दुत्कार कर थाने से भगा देना एक आम बात हो गयी थी। इस विभाग में लगे अधिकतर अधिकारी और कर्मचारी आज भी जनसाधारण को ऐसी असभ्य और अशोभनीय गालियां देते हैं कि जिन्हें न तो लिखा जा सकता है और न सुना जा सकता है। इनकी ऐसी असभ्य भाषा को देखकर लगता है कि जैसे आज भी अंग्रेज पुलिस किन्हीं भारतीय क्रांतिकारियों को उत्पीडि़त कर रही हो। 
अब आते हैं शिक्षा विभाग पर। इस विभाग में जितनी मौज अध्यापकों की आ रही थी उतनी अन्य किसी विभाग के कर्मचारियों की नहीं है। निजी विद्यालयों ने सरकारी विद्यालयों को पूरे प्रदेश में लगभग बंद करा दिया है। सरकार ने अपनी ओर से इसके उपरांत भी सरकारी स्कूल चला रखे हैं। इन सरकारी स्कूलों में नियुक्त अध्यापक वर्ष में पांच महीने तो ईमानदारी से सरकारी अवकाशों के कारण छुट्टी पर रहते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या लगभग न होने के कारण  ये लोग विद्यालयों से कार्यदिवसों में भी अधिकतर छुट्टी पर रहते हैं। जहां पर सात अध्यापकों का स्टाफ होता है वहां पर एक, दो अध्यापक उपस्थिति के लिए विद्यालय में आपको मिल सकते हैं, शेष सभी छुट्टी पर रहते हैं। शिक्षा न देकर अध्यापकों का सारा ध्यान ट्यूशन, निजी व्यवसाय या प्रापर्टी डीलिंग जैसे कामों पर केन्द्रित हो गया है। इससे प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गयी और इसका सीधा लाभ निजी स्कूल वालों को मिला। जिन्होंने खोटा उस्तरा लेकर अभिभावकों का ‘मुंडन संस्कार’ करना आरंभ कर दिया। इससे अभिभावक पूरे प्रदेश में ‘त्राहिमाम्-त्राहिमाम्’ कर उठा। निजी स्कूलों में मोटी कमाई को अधिकारियों ने, शिक्षा माफियाओं ने और माननीय मंत्रीजी ने आपस में बांटना आरंभ कर दिया। ऐसे मामले भी अनेकों हैं, जब विधायकों ने अपनी विधायक निधि से निजी विद्यालयों को धनराशि दी और उस धनराशि में से अपना 35-40 प्रतिशत हिस्सा ऐसे विद्यालय से नकद प्राप्त कर लिया। इस प्रकार सारी शिक्षा व्यवस्था पूरे प्रदेश में ध्वस्त होकर रह गयी। 
अब आते हैं सरकारी अस्पतालों पर। शिक्षा के बाद स्वास्थ मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण विषय है। हमारे देश के प्राचीन इतिहास से भी इस बात की पुष्टि होती है कि शिक्षा और स्वास्थ्य को नि:शुल्क  सुव्यवस्थित रखना राज्य व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। परंतु भारत में वर्तमान शिक्षानीति ने डाक्टर के स्थान पर ‘डकैत’  उत्पन्न आरंभ कर दिये। बड़े-बड़े ‘डकैतघर’ निजी चिकित्सालयों के रूप में बड़ी तेजी से प्रदेशभर में कुकुरमुत्तों की भांति उभरकर सामने आये। उन्होंने रोगी को निरोग करने के स्थान पर उसे और अधिक रोगी कैसे बनाया जाए?-इस पर काम करना आरम्भ किया। फलस्वरूप प्रदेश का ही नहीं अपितु पूरे देश का लगभग हर व्यक्ति बीमार हो गया। इससे ‘डकैतघरों’  को रोगियों का ‘बारातघर’ बनने में देर नहीं लगी। अब इन ‘बारातियों’ (रोगियों) से ‘डकैतघरों’ के स्वामी अपनी मर्जी से महंगी से महंगी ‘थाली’ (रोगशय्या=बैड) उपलब्ध कराते हैं। इससे इन डकैतों के ‘डकैतघर’ दिन प्रतिदिन भव्य बनते जा रहे हैं। 
इस प्रकार पूरे प्रदेश की कानून व्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य का सारा खेल ही चौपट होकर रह गया है। अब प्रदेश के नये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रदेश के लोगों को सचमुच बड़ी-बड़ी आशाएं हैं। प्रदेश के नये मुख्यमंत्री को चाहिए कि प्रदेश के अधिकारियों और कर्मचारियों की जातिवादी मानसिकता पर अंकुश लगाने के लिए विशेष कार्य किया जाए। पुलिस विभाग में हर पीडि़त व्यक्ति की रपट दर्ज हो सके-इसके लिए मुख्यमंत्री को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि जिस पीडि़त व्यक्ति की रपट दर्ज नहीं की जा रही है वह अपनी रपट प्रदेश में चाहे जहां दर्ज करा दे-वह संबंधित थाने में अवश्य पहुंच जाए। साथ ही ऐसे परिवादियों के परिवाद को सुनने के लिए मुख्यमंत्री अपनी ओर एक ऐसी ईमेल आइडी या मोबाइल नंबर उपलब्ध करायें जहां पर ऐसी रपट दर्ज करायी जा सके और दोषी पुलिसकर्मियों के विरूद्घ कार्यवाही हो सके। शिक्षा विभाग में पूरे प्रदेश में एक जैसी शिक्षानीति लागू की जाए। विद्यार्थियों की ड्रैस भी एक जैसी हो। निजी स्कूलों में आधा स्टाफ सरकारी होना अनिवार्य किया जाए। सरकार की ओर से सारे निजी विद्यालयों को मान्यता देते समय उनकी बिल्डिंग और संपत्ति का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए, और विद्यालयों की आय में से एक निश्चित धनराशि विद्यलय परिवार को दी जाए। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रत्येक नये चिकित्सक के लिए यह अनिवार्य किया जाए कि वह अपनी नियुक्ति के प्रारंभिक पांच वर्ष ग्रामीण आंचल के लोगों की  सेवा के लिए अवश्य देगा। निजी चिकित्सालयों में कम से कम 25 प्रतिशत गरीब मरीजों की चिकित्सा प्रत्येक दिन होती रहनी चाहिए, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। आशा है कि प्रदेश के नये मुख्यमंत्री इस ओर अवश्य ध्यान देंगेे।

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