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बिखरे मोती

ज्ञान-दीप ज्योंहि बुझै, होता महाविनाश

बिखरे मोती-भाग 178

यह लक्षण न तो कर्मयोगी में आया है और न ज्ञान योगी में आया है। यह लक्षण भगवान कृष्ण ने केवल भक्त का बताया है, क्योंकि भक्त में आरंभ में ही मित्रता और करूणा होती है। भक्त की दृष्टि में समस्त प्राणी परमात्मा का अंश हैं, इसलिए वह सोचता है कौन वैर करे, किससे करे और क्यों करे? उसके सुकोमल हृदय में ‘वसुधैव कुटुम्बक म्’ का भाव होता है। वह प्राणी मात्र का कल्याण मित्रता और करूणा के भाव से करता है, किसी फल की अपेक्षा से नहीं। वास्तव में ऐसे भक्त जो पुण्य और प्रार्थना निष्काम भाव से करते हैं-उनकी भक्ति सर्वदा परवान चढ़ती है और वे परमात्मा के प्रिय होते हैं। परमात्मा की कृपा के पात्र होते हैं।
 
विषयों की आंधी चलै,
धूमिल मन-आकाश।
ज्ञान-दीप ज्योंहि बुझै,
होता महाविनाश ।। 1106।।
 
व्याख्या :-
ध्यान रहे, संसार के भोग पदार्थों का संग्रह, मान-बड़ाई, आराम (विलासिता) आदि जो अच्छे दिखते हैं-उनमें जो महत्वपूर्ण बुद्घि अथवा आकर्षण है, बस-वही मनुष्य को नरक की तरफ ले जाने वाला है। इसलिए काम, क्रोध, लोभ, मोह मद (अहंकार) मत्सर (ईष्र्या) ये मनुष्य के षडरिपु माने गये हैं। जब मानव के मन रूपी आकाश में विषय विकार की प्रचण्ड आंधी अथवा तीव्र वेगवान बवण्डर चलते हैं, तो विवेक का दीपक बुझ जाता है, अज्ञान और अहंकार का अंधकार छा जाता है, धर्ममूढ़ता (कत्र्तव्यबोध का न होना) का वास होता है-जिसका दुष्परिणाम महाविनाश होता है, जैसे महाभारत में हुआ। इसलिए मनुष्य की मन-बुद्घि कभी विकृत न हों, इसके लिए उसे परमपिता परमात्मा से विनम्र भाव से दोनों समय (सुबह-शाम) हृदय से प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त विषयों के विषधर से भी सर्वदा सतर्क रहना चाहिए।
 
बिच्छू छुए डंक तै,
दुष्ट के कड़वे बोल।
हृदय को कोयल छुए,
वाणी में रस घोल ।। 1107 ।।
 
व्याख्या :-
बिच्छू अपने सिर पर डंक रखकर चलता है। वह जिसे भी स्पष्ट करता है, अपने डंक से करता है और उसी में अपना प्राणघातक जहर उड़ेल देता है। उसके दंश से घायल व्यक्ति कितना तड़पता है, लेखनी उसे अभिव्यक्त नहीं कर सकती है, ठीक इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति की वाणी इतनी विषाक्त होती है कि जब वह किसी के हृदय को स्पर्श करती है तो मर्मांतक घाव देती है, जो जीवन पर्यन्त भरता नहीं है।
दुष्ट की वाणी  भी जहर से बुझे हुए तीर के समान होती है, जो हृदय को बींध देती है। वह जहरीला तीर जरा भी हिलने पर पहले से ज्यादा चुभता है। ठीक इसी प्रकार दुष्ट के द्वारा कहे गये कड़वे बोल जब भी कभी याद आते हैं, तो पहले से भी अधिक तीर की तरह चुभते रहते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि दुष्ट का स्वभाव बिच्छू जैसा होता है, जबकि कोयल नाम के पक्षी का स्वभाव ऐसा होता है कि वह अपनी मीठी वाणी से सबके हृदय को स्पर्श कर अपना विशिष्ट स्थान बना लेती है, ठीक ऐसा ही स्वभाव सत्पुरूषों का होता है जिसके कारण प्रत्येक के हृदय में उनका विशिष्ट स्थान होता है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह वाणी अथवा व्यवहार से किसी के हृदय को स्पर्श करे तो बिच्छू की तरह कड़वाहट से नहीं अपितु कोयल की तरह मृदुता से करे तभी उसका मनुष्य होना सार्थक है।
क्रमश:

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