क्या नशा करके मिलता बताओ ज़रा। लाभ दो-चार हमको गिनाओ ज़रा।। वंश परिवार की सारी इज्ज़त गई। बीवी विधवा की जैसी बेइज्ज़त भई। पूर्वजों को मिलीं गालियाँ- फब्तियाँ- माटी में मान अब ना मिलाओ ज़रा।। क्या नशा करके मिलता बताओ ज़रा। लाभ दो-चार हमको गिनाओ ज़रा।। बाप- माई की मुश्किल दवाई हुई। बाल-बच्चों की […]
श्रेणी: कविता
अंधेरा सदा नहीं रह पाता…. रखना ईश्वर पर विश्वास, अंधेरा सदा नहीं रह पाता जीवन है आशा की डोर , आनंद है इसका छोर, हो जा उसी में भावविभोर, मनवा कभी नहीं कह पाता ….. जगत में बांटो खुशियां खूब, तुमसे पाए न कोई ऊब, जीवन का हो ये दस्तूर, हर कोई […]
क्रंदन दूर होगा एक दिन …… निशा निराशा की आये उत्साह बनाए रखना तुम। लोग नकारा कहें भले उत्कर्ष पे नजरें रखना तुम।। भवसिंधु से तरने हेतु निज पूर्वजों से अनुभव लो। उल्टे प्रकृति के चलो नहीं मन में ये ही नियम धरो।। कुछ भी दुष्कर है नहीं […]
मन घबराया आज मन बड़ा उदास हुआ अर्धांगिनी ने आकर कहा मेरे भाई की तबीयत बहुत खराब हुआ सो ले चलो उनके पास मन सोच के घबराया उसे तो कोरोना हुआ उसका रो – रो के हाल बुरा सब ने काफी समझाया उसे बात समझ में आया शाम होते तक उसके भाई की खबर काफी […]
#* *ये आखरी मौका**# बंद है आंखें निरंतर अश्रु की धारा बहती चली जा रही हो —- खोल आंखें देख अपने ही हाथों से इस धरा को कितनी क्षति कर रहे हो —– विकास के नाम______? पहाड़ों को ———; नदियों को——-; जंगलों को ———; नुकसान पर नुकसान करते चले जा रहे हो —— रोक लो […]
रामगोपाल मन की हल्दीघाटी में, राणा के भाले डोले हैं, यूँ लगता है चीख चीख कर, वीर शिवाजी बोले हैं, पुरखों का बलिदान, घास की, रोटी भी शर्मिंदा है, कटी जंग में सांगा की, बोटी बोटी शर्मिंदा है, खुद अपनी पहचान मिटा दी, कायर भूखे पेटों ने, टोपी जालीदार पहन ली, हिंदुओं के बेटों ने, […]
बिखरे मोती भाव से अति सूक्ष्म है , ब्रह्माण्ड का ईशान। चित्त का चिन्तन जानता, परम पिता भगवान॥1465॥ व्याख्या:- पाठकों की जानकारी के लिए यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि आत्मा चित्त में रहती है जबकि परमात्मा आत्मा में निवास करता है।हमारे चित्त में अति सूक्ष्म सद्भाव और दुर्भावना ते हैं किंतु परमपिता परमात्मा […]
क्या वह मनुष्य था ? मनुष्य की शक्ल में खड़ा सभी मनुष्य नहीं होते मनुष्यता देवत्व का आकार सत्य, सेवा ,सद्विचार, पहचान। जिसने माता-पिता की हत्या की जिसने बच्चे ,बूढ़े ,संतों की देशभक्तों की सैनिक पुत्रों की मात्र चंद धन प्राप्त करने हेतु। देश बेचते हैं शत्रुओं के हाथ राष्ट्र को हानि पहुंचाने रचते जाल […]
फूलों की कोमल पंखुडियाँ बिखरें जिसके अभिनंदन में। मकरंद मिलाती हों अपना स्वागत के कुंकुम चंदन में। कोमल किसलय मर्मर-रव-से जिसका जयघोष सुनाते हों। जिसमें दुख-सुख मिलकर मन के उत्सव आनंद मनाते हों। उज्ज्वल वरदान चेतना का सौंदर्य जिसे सब कहते हैं। जिसमें अनंत अभिलाषा के सपने सब जगते रहते हैं। मैं उसी चपल की […]
छत पे सोये बरसों बीते योगाचार्य संजीव छत पे सोये बरसों बीते* तारों से मुलाक़ात किये और चाँद से किये गुफ़्तगू सबा से कोई बात किये। न कोई सप्तऋिषी की बातें न कोई ध्रुव तारे की न ही श्रवण की काँवर और न चन्दा के उजियारे की। देखी न आकाश गंगा ही न वो चलते […]