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भाषा

साहित्यिक प्रदूषण

साहित्यिक प्रदूषण छा रहा हर ओर साहित्यिक प्रदूषण, पद्य एवं गद्य दोनों मर रहे हैं। पंत जी का कवि नहीं होता वियोगी, अब नहीं दिनकर व्यथायें छंद बनतीं। अब इलाहाबाद के पथ पर निराला, तोड़ पत्थर नारियाँ कब राह गढ़तीं! निर्मला होरी गबन गोदान गायब, सत्य कहने से समीक्षक डर रहे हैं। व्यास बाल्मीकि तुलसीदास […]

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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

बाबू वीर कुँवर सिंह का राष्ट्रवादी नायकत्व

पावन त्याग और अतुलित बलिदान की यशोभूमि का नाम है भारत वर्ष। शिशु अजय सिंह के बलिदान, साहिबजादा जोरावर सिंह व साहिबजादा फतेह सिंह का प्राणोत्सर्ग, शिशु ध्रुव के तप, शिशु प्रह्लाद की भक्ति, शिशु कृष्ण की बाललीला और वयोवृद्ध फौलादी बाबू वीर कुँवर सिंह की युद्धनीति तथा राष्ट्रवादी भावना का इतिहास में कोई सानी […]

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कविता

अपनी कलम सम्हालो

हे सत्ता के गलियारों में, दुम हिलाने वालों। हे दरबारी सुविधाओं की, जूठन खाने वालों।। तेरे ही पूर्वज दुश्मन को, कलम बेचकर खाए। तेरे ही पूर्वज सदियों से, वतन बेचते आए।। कलम बिकी तब गोरी के साथी, जयचंद कहाए। कलम बिकी तब राणा साँगा, बाबर को बुलवाए।। बिकती कलमों ने पद्मिनियों को, कामातुर देखा। बिकती […]

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कविता

अवधपति! आना होगा

112- प्राची का पट खोल, बाल सूरज मुस्काया। भ्रमर कली खग ओस बिंदु को अतिशय भाया।। जागी प्रकृति तुरन्त, हुए गायब सब तारे। पुनः हुए तैयार, विगत में जो थे हारे।। उठे बालगण खाट छोड़ माँ – माँ – माँ रटने। माँ दौड़ी सब काम छोड़ लख आँचल फटने।। काँधे पर ले स्वप्न, सूर्य सँग […]

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कविता

बाजारवाद के चंगुल में

ऑक्टोपस की कँटीली भुजाओं सरिस जकड़ रहा है सबको व्यापक बाजारवाद जन साधारण की औकात एक वस्तु जैसी है कुछ विशेष जन वस्तु समुच्चय ज्यों हैं हम स्वेच्छा से बिक भी नहीं सकते हम स्वेच्छा से खरीद भी नहीं सकते पूँजीपति रूपी नियंता चला रहा है पूरा बाजार जाने- अनजाने हम सौ-सौ बार बिक रहे […]

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कविता

हम भेड़ हैं

हाँ, हम भेड़ हैं हमारी संख्या भी बहुत अधिक है सोचना-विचारना भी हमारे वश में नहीं न अतीत का दुःख न भविष्य की चिंता बस वर्तमान में संतुष्ट क्रियाशील, लगनशील, अनुगामी अगुआ के अंध फॉलोवर अंध भक्त, अंध विश्वासी अनासक्त सन्यासी क्योंकि हम भेड़ हैं। हाँ, हम भेड़ हैं किंतु खोज रहे हैं उस भेड़िये […]

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कविता

गीता विजय उद्घोष

कृष्ण की गीता पुरानी हो गई है, या कि लोगों की समझ कमजोर है। शस्त्र एवं शास्त्र दोनों हैं जरूरी, धर्म सम्मत कर्म से शुभ भोर है।। था करोड़ों सैन्य बल, पर पार्थ में परिजनों के हेतु भय या मोह था। कृष्ण को आना पड़ा गीता सुनाने, सोचिए कि क्या सबल व्यामोह था! वह महाभारत […]

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कविता

कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे

जब गजनवी के दरबार से सोमनाथ का आकलन और खिलजी के दरबार से पद्मावती का आकलन, बख्तियार के दरबार से नालंदा का आकलन तथा गोरी के दरबार से पृथ्वीराज का आकलन पढ़ेंगे तो – कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे! जब बाबर के दरबार से राणा साँगा का मूल्यांकन और हुमायूँ के दरबार से सती […]

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कविता

कान खोलकर सुन लो ….

कान खोलकर सुन लो कान खोलकर सुन लो- हे अंध-संविधान समीक्षकों! हे तथाकथित कानून रक्षकों! हे समाज के ठेकेदारों! है मज़हबी जालसाज़ों! हे वासना को प्यार कहने वाले कामलोलुपों! हे पाप को प्यार कहने वाले पापियों! हे फिल्मी जोकरों! हे लिव इन रिलेशनशिप के पैरोकारों! हे सनातनी जीवन पद्धति के विरोधियों, गद्दारों! आज हम डंके […]

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भारतीय संस्कृति

साहित्य का रुख समाचार की ओर होना अनुचित –

डॉ अवधेश कुमार अवध यह निर्विवाद सिद्ध है कि साहित्य समाज का दर्पण है किन्तु इससे भी इंकार नही किया जा सकता कि साहित्य समाज का पथ प्रेरक भी है। दोनों का दोनों पर असर है। इक्कीसवीं सदी की सूचना क्रांति ने इस सम्बंध को और भी प्रगाढ़ एवं त्वरित प्रभावकारी बनाया है। क्षण मात्र […]

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