साहित्यिक प्रदूषण छा रहा हर ओर साहित्यिक प्रदूषण, पद्य एवं गद्य दोनों मर रहे हैं। पंत जी का कवि नहीं होता वियोगी, अब नहीं दिनकर व्यथायें छंद बनतीं। अब इलाहाबाद के पथ पर निराला, तोड़ पत्थर नारियाँ कब राह गढ़तीं! निर्मला होरी गबन गोदान गायब, सत्य कहने से समीक्षक डर रहे हैं। व्यास बाल्मीकि तुलसीदास […]
