#डॉविवेकआर्य लाहौर में एक चौबारा था। उसका नाम था ‘छज्जू का चौबारा’। पंजाबी जीवन शैली में लोकोक्ति चर्चित है-‘जो सुख छज्जू दे चौबारे, न बलख न बुखारे’ अर्थात छज्जू के चौबारे का सुख के आगे बल्क व बुखारे का सुख भी फीका पड़ जाता है। छज्जू भगत का असली नाम छज्जू भाटिया था। वे […]
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(श्रावण मास में हमें कैसी वेद कथाओं का आयोजन करना चाहिए ? इस विषय पर हमने पिछले दिनों अपनी ओर से कुछ प्रकाश डाला था। अब इसी विषय पर ‘उगता भारत’ समाचार पत्र के चेयरमैन श्री देवेंद्र सिंह आर्य जी का यह लेख ग्रंथियों और भ्रांतियों का समाधान करने में बहुत अधिक सक्षम है। […]
डा. अंबेडकर- पुरूष सूक्त ब्राह्मणों ने अपनी स्वार्थ सिध्दि के लिये प्रक्षिप्त किया है।कोल बुक का कथन है कि पुरूष सूक्त छंद और शैली में शेष ऋग्वेद से सर्वथा भिन्न है।अन्य भी अनेक विद्वानों का मत है कि पुरूष सूक्त बाद का बना हुआ है। पं. शिवपूजन सिंह- आपने जो पुरूष सूक्त पर आक्षेप किया […]
पहली बार कोई सकारात्मक आन्दोलन आजाद भारत में शुरु होने की आहट हुई है ! इससे जवाहरलाल नेहरू और मोहन दास करम चन्द गाँधी की कुछ नई तस्वीर सामने आयेगी जो आजतक मिडिया ने छुपाकर रखा गया है , मैं ।पूरी तरह से तन, मन , धन और अपनी जानकारी के साथ इस उद्देश्य में […]
#डॉविवेकआर्य सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी ने गोवाहाटी में बयान दिया कि 1930 से मुस्लिमों की आबादी बढ़ाई गई क्योंकि भारत को पाकिस्तान बनाना था। इसकी योजना पंजाब, सिंध, असम और बंगाल के लिए बनाई गई थी और यह कुछ हद तक सफल भी हुई। माननीय सर संघचालक जी ने अपने बयान में […]
चाणक्य नीति यो ध्रुवाणि परित्यज्य ह्यध्रुवं परिसेवते। ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति चाध्रुवं नष्टमेव तत्।। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का सहारा लेता है, उसका निश्चित भी नष्ट हो जाता है। अनिश्चित तो स्वयं नष्ट होता ही है। अभिप्राय यह है कि जिस चीज का मिलना पक्का निश्चित है, उसी को पहले […]
योगेश कुमार गोयल ओलम्पिक खेलों के संबंध में सबसे रोचक तथ्य यह है कि भले ही ये खेल दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं लेकिन इनके आयोजन को लेकर विरोध प्रदर्शन भी होते रहे हैं। इस साल भी टोक्यो में होने वाले ओलम्पिक खेलों का दुनियाभर में कई जगहों पर प्रबल विरोध हो रहा है। ओलम्पिक खेल […]
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 चि. बसंत! “यह जो लिखता हूँ उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना,अपने अनुभव की बात कहता हूँ। संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया,वह पशु है। तुम्हारे पास धन है,तन्दुरुस्ती है,अच्छे साधन हैं,उनको सेवा के लिए उपयोग किया,तब तो साधन सफल है,अन्यथा वे शैतान […]
विनाशपर्व लेखक:- प्रशांत पोळ ऑस्ट्रीया के एक मिशनरी, जॉन फिलिप वेस्डिन, अठारवी शताब्दी के अंत में केरल के मलाबार में काम कर रहे थे. वर्ष १७७६ से १७८९ तक वह केरल में थे. उन्होने यूरोप में वापस जा कर, वर्ष १७९६ मे, रोम में अपना लेख (जिसे उन्होने account कहा हैं) प्रकाशित किया. इस में […]
✍🏻 – भाई परमानन्द निवृत्ति-मार्ग का अर्थ अपने लिए मुक्ति या शान्ति प्राप्त करना है। संसार में बहुत-से मनुष्य ऐसे हैं जो प्रवृत्ति-मार्ग की अपेक्षा इसे अच्छा समझते हैं। जिस समय समाज अपनी प्राकृतिक अवस्था में होता है तो इस सिद्धान्त पर न कोई आपत्ति आती है, न कोई विघ्न पड़ता है। निःसंदेह यह ठीक […]