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भारत में शूद्रों की खोज

डा. अंबेडकर- पुरूष सूक्त ब्राह्मणों ने अपनी स्वार्थ सिध्दि के लिये प्रक्षिप्त किया है।कोल बुक का कथन है कि पुरूष सूक्त छंद और शैली में शेष ऋग्वेद से सर्वथा भिन्न है।अन्य भी अनेक विद्वानों का मत है कि पुरूष सूक्त बाद का बना हुआ है।


पं. शिवपूजन सिंह- आपने जो पुरूष सूक्त पर आक्षेप किया है वह आपकी वेद अनभिज्ञता को प्रकट करता है।आधिभौतिक दृष्टि से चारों वर्णों के पुरूषों का समुदाय – ‘संगठित समुदाय’- ‘एक पुरूष’ रूप है।इस समुदाय पुरूष या राष्ट्र पुरूष के यथार्थ परिचय के लिये पुरुष सूक्त के मुख्य मंत्र ‘ ब्राह्मणोSस्य मुखमासीत्…’ (यजुर्वेद 31/11) पर विचार करना चाहिये।
उक्त मंत्र में कहा गया है कि ब्राह्मण मुख है , क्षत्रिय भुजाएँ , वैश्य जङ्घाएँ और शूद्र पैर। केवल मुख , केवल भुजाएँ , केवल जङ्घाएँ या केवल पैर पुरुष नहीं अपितु मुख , भुजाएँ , जङ्घाएँ और पैर ‘इनका समुदाय’ पुरुष अवश्य है।वह समुदाय भी यदि असंगठित और क्रम रहित अवस्था में है तो उसे हम पुरूष नहीं कहेंगे।उस समुदाय को पुरूष तभी कहेंगे जबकि वह समुदाय एक विशेष प्रकार के क्रम में हो और एक विशेष प्रकार से संगठित हो।
राष्ट्र में मुख के स्थानापन्न ब्राह्मण हैं , भुजाओं के स्थानापन्न क्षत्रिय हैं , जङ्घाओं के स्थानापन्न वैश्य और पैरों के स्थानापन्न शूद्र हैं । राष्ट्र में चारों वर्ण जब शरीर के मुख आदि अवयवों की तरह सुव्यवस्थित हो जाते हैं तभी इनकी पुरूष संज्ञा होती है । अव्यवस्थित या छिन्न-भिन्न अवस्था में स्थित मनुष्य समुदाय को वैदिक परिभाषा में पुरुष शब्द से नहीं पुकार सकते ।
आधिभौतिक दृष्टि से यह सुव्यवस्थित तथा एकता के सूत्र में पिरोया हुआ ज्ञान , क्षात्र , व्यापार- व्यवसाय , परिश्रम-मजदूरी इनका निदर्शक जनसमुदाय ही ‘एक पुरुष’ रूप है।
चर्चित मंत्र का महर्षि दयानंद जी इसप्रकार अर्थ करते हैं-
“इस पुरूष की आज्ञा के अनुसार विद्या आदि उत्तम गुण , सत्य भाषण और सत्योपदेश आदि श्रेष्ठ कर्मों से ब्राह्मण वर्ण उत्पन्न होता है । इन मुख्य गुण और कर्मों के सहित होने से वह मनुष्यों में उत्तम कहलाता है और ईश्वर ने बल पराक्रम आदि पूर्वोक्त गुणों से युक्त क्षत्रिय वर्ण को उत्पन्न किया है।इस पुरुष के उपदेश से खेती , व्यापार और सब देशों की भाषाओं को जानना और पशुपालन आदि मध्यम गुणों से वैश्य वर्ण सिध्द होता है।जैसे पग सबसे नीचे का अंग है वैसे मूर्खता आदि गुणों से शूद्र वर्ण सिध्द होता है।”
आपका लिखना कि पुरुष सूक्त बहुत समय बाद जोड़ दिया गया सर्वथा भ्रमपूर्ण है।मैंने अपनी पुस्तक ” ऋग्वेद दशम मण्डल पर पाश्चात्य विद्वानों का कुठाराघात ” में संपूर्ण पाश्चात्य और प्राच्य विद्वानों के इस मत का खंडन किया है कि ऋग्वेद का दशम मण्डल , जिसमें पुरूष सूक्त भी विद्यमान है , बाद का बना हूआ है ।
डा. अंबेडकर- शूद्र क्षत्रियों के वंशज होने से क्षत्रिय हैं।ऋग्वेद में सुदास , तुरवाशा , तृप्सु,भरत आदि शूद्रों के नाम आये हैं।
पं. शिवपूजन सिंह- वेदों के सभी शब्द यौगिक हैं , रूढ़ि नहीं । आपने ऋग्वेद से जिन नामों को प्रदर्शित किया है वो ऐतिहासिक नाम नहीं हैं । वेद में इतिहास नहीं है क्योंकि वेद सृष्टि के आदि में दिया गया ज्ञान है ।
डा. अंबेडकर- छत्रपति शिवाजी शूद्र और राजपूत हूणों की संतान हैं (शूद्रों की खोज , दसवां अध्याय , पृष्ठ , 77-96)
पं. शिवपूजन सिंह- शिवाजी शूद्र नहीं क्षत्रिय थे।इसके लिये अनेक प्रमाण इतिहासों.में भरे पड़े हैं । राजस्थान के प्रख्यात इतिहासज्ञ महामहोपाध्याय डा. गौरीशंकर हीराचंद ओझा , डी.लिट् , लिखते हैं- ‘ मराठा जाति दक्षिणी हिंदुस्तान की रहने वाली है । उसके प्रसिद्ध राजा छत्रपति शिवाजी के वंश का मूल पुरुष मेवाड़ के सिसौदिया राजवंश से ही था।’ कविराज श्यामल दास जी लिखते है – ‘ शिवाजी महाराणा अजय सिंह के वंश में थे। ‘ यही सिध्दांत डा. बालकृष्ण जी , एम. ए. , डी.लिट् , एफ.आर.एस.एस. , का भी था।
इसी प्रकार राजपूत हूणों की संतान नहीं किंतु शुध्द क्षत्रिय हैं । श्री चिंतामणि विनामक वैद्य , एम.ए. , श्री ई. बी. कावेल , श्री शेरिंग , श्री व्हीलर , श्री हंटर , श्री क्रूक , पं. नगेन्द्रनाथ भट्टाचार्य , एम.एम.डी.एल. आदि विद्वान राजपूतों को शूद्र क्षत्रिय मानते हैं।प्रिवी कौंसिल ने भी निर्णय किया है कि जो क्षत्रिय भारत में रहते हैं और राजपूत दोनों एक ही श्रेणी के हैं ।
– ‘ आर्य समाज और डा. अंबेडकर,
डा. कुशलदेव शास्त्री
(अरुण लवानिया)

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