मॉरीशस में डी0ए0वी0 जैसी संस्थाएं भारत के वैज्ञानिक वैदिक चिंतन के प्रचार प्रसार के कार्य में लगी हुई हैं। जहां पर भारत के वैदिक ऋषियों का चिंतन आधुनिक भाषा शैली में बच्चों के कोमल मन मस्तिष्क में स्थापित किया जाता है। इसके लिए अनेक अध्यापक अध्यापिकाएं अपना जीवन समर्पित किए हुए हैं। उन सबके भीतर […]
श्रेणी: आज का चिंतन
========= हमारा यह संसार स्वतः नहीं बना और न ही यह पौरुषेय रचना है। इस संसार को मनुष्य अकेले व अनेक मिलकर भी नहीं बना सकते। हमारा यह सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, सौर मण्डल तथा ब्रह्माण्ड अपौरुषेय और ईश्वर से रचित हैं। प्रश्न किया जा सकता है कि परमात्मा ने यह संसार क्यों बनाया है? परमात्मा […]
महापुरुषों के जीवन की घटनाएं पढ़ने पढ़ाने और सुनने सुनाने से उत्साह का संचार होता और प्रेरणा मिलती है। इसलिए आइए, स्वामी दयानंद जी के 200वें जन्म जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में महर्षि दयानन्द के व्यक्तित्व को जानें! ▶ महर्षि दयानन्द अपने समकालीनों की अपेक्षा शारीरिक, बौद्धिक एवं अध्यात्मिक दृष्टि से सर्वोच्च शिखर पर थे| […]
संसार में तीन वस्तुएं हैं, साध्य, साधक और साधन। “‘साध्य’ का अर्थ है जिसे हम सिद्ध करना चाहते हैं या प्राप्त करना चाहते हैं। ‘साधक’ उसे कहते हैं जो साध्य को प्राप्त करना चाहता है। और ‘साधन’ उसे कहते हैं जिसकी सहायता से साधक अपने साध्य तक पहुंच पाता है।” “इन वैदिक परिभाषाओं के अनुसार […]
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। वेदों का नाम प्रायः सभी लोगों ने सुना होता है परन्तु वेदों को अपना प्रमुख धर्मग्रन्थ माननेवाले आर्य वा हिन्दू भी वेदों के बारे में अनेक तथ्यों को नहीं जानते। हमारा सौभाग्य है कि हम ऋषि दयानन्द जी से परिचित हैं। उनके आर्यसमाज आन्दोलन के एक सदस्य भी हैं और हमने […]
आर्यजन असत्य के मार्ग पर! न स्वामी दयानन्द सरस्वती (मूलशंंकर) का जन्म ही सन् १८२४ ई. की किसी तारीख पर हुआ था। और न उनके जन्म को हुए २०० वर्ष ही सन् २०२४ ई. की किसी तारीख पर पूरे होंगे। फिर कुछ नासमझ लोगों ने महर्षि दयानन्द सरस्वती की दो सौवीं जन्मजयन्ती १८२४-२०२४ का प्रदर्शक […]
(ले० डॉ० शंकर शरण ) एक प्रवासी हिन्दू भारतीय की बिटिया ने किसी मुस्लिम से विवाह का निश्चय किया तो वह बड़े दुःखी हुए। उन्होंने समझाने का प्रयास किया कि यह उस के लिए, परिवार के लिए और अपने समाज के लिए भी अच्छा न होगा। तब बिटिया ने कहा, ‘मगर पापा, आप ही ने […]
* पुरुषा बहवो राजन् सततं प्रियवादिनः। अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः॥” – उद्योगपर्व-विदुरनीति सन् 1976 में दिल्ली में महर्षि दयानन्द सरस्वती प्रणीत ‘सत्यार्थप्रकाश’ ग्रन्थ की शताब्दी मनाई गई। उसमें पधारने वाले वक्ताओं में देश के जाने-माने नेता अटलबिहारी वाजपेयी का नाम भी था। आर्यसमाज के मूर्धन्य संन्यासी स्वामी विद्यानन्द सरस्वती जी (पूर्वाश्रम में […]
‘विशेष शेर’ दयानन्द इस चमन का, खिलता गुलाब था। ज्ञान और तेज का, वह आफत़ाब था ।। करता रहा जिन्दगी में, मुतवातिर शबाब था, भारत माँ के ताज का, वो हीरा नायाब था। वो कमशीन था, इज्जोजिल था, वागीश था वो पहुँचा हुआ दरवेश था, वो प्रभु का कृपा पात्र विशेष था। इज्जोजिल अर्थात् दिव्यता […]
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। हमारा यह संसार स्वतः नहीं बना और न ही यह पौरुषेय रचना है। इस संसार को मनुष्य अकेले व अनेक मिलकर भी नहीं बना सकते। हमारा यह सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, सौर मण्डल तथा ब्रह्माण्ड अपौरुषेय और ईश्वर से रचित हैं। प्रश्न किया जा सकता है कि परमात्मा ने यह संसार क्यों […]