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आज का चिंतन

आर्यजन असत्य के मार्ग पर!*

आर्यजन असत्य के मार्ग पर!

न स्वामी दयानन्द सरस्वती (मूलशंंकर) का जन्म ही सन् १८२४ ई. की किसी तारीख पर हुआ था।
और न उनके जन्म को हुए २०० वर्ष ही सन् २०२४ ई. की किसी तारीख पर पूरे होंगे।
फिर कुछ नासमझ लोगों ने महर्षि दयानन्द सरस्वती की दो सौवीं जन्मजयन्ती १८२४-२०२४ का प्रदर्शक गलत लोगो क्यों बना रक्खा है?
देखिए ऋषि ने स्वयं लिखा था कि ” संवत् १८८१ के वर्ष में मेरा जन्म दक्षिण गुजरात प्रान्त, देश काठियाबाड़ का मजोकठा देश, मोर्वी का राज्य , औदीच्य ब्राह्मण के घर में हुआ था।”
सो संवत् १८८१ दो प्रकार के गुजरात और उत्तर भारत में प्रचलित हैं।
चैत्रीय संवत् का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है जो उत्तर भारत में प्रचलित है।
इस संवत् १८८१ का विस्तार ३१ मार्च, १८२४ ई. से लेकर १९ मार्च,१८२५ ई. तक था।
कार्तिकीय संवत् का प्रारम्भ कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से होता है जो गुजरात में प्रचलित है।
इस संवत् १८८१ का विस्तार २३ अक्टूबर, १८२४ ई. से लेकर १० नवम्बर, १८२५ ई. तक था।
इन दोनों संवतों में लगभग साढ़े छः मास का अन्तर रहता है।
अर्थात् उत्तर भारतीय चैत्री संवत् पहले और गुजराती कार्तिकीय संवत् साढ़े छः मास पीछे आरम्भ होता है।
ऋषि दयानन्द का जन्म संवत् समझने के लिए उन्होंने पूना में ४ अगस्त, १८७५ ई. को कह रक्खा है –
” इस समय मेरी अवस्था ४९/५० वर्ष की होगी।”
इसका अभिप्राय यह हुआ कि उनका जन्म ४ अगस्त, १८२५ई. से लेकर ४ अगस्त, १८२६ ई. की मध्यवर्ती किसी दिनांक पर हुआ था।
तब जो कुछ नासमझ लोगों ने इस अवधि के बाहर की १२ फरवरी, १८२५ ई. तदनुसार फाल्गुन कृष्ण १० वीं तिथि को उनका जन्मदिन मान रक्खा है, वह तो स्वयं ही गलत हो गया!
और जो कुछ लोगों ने १२ फरवरी की कलम सन् १८२४ ई. के साथ लगा रक्खी है, वे तो और भी अधिक नासमझ ठहरे!
ऐसे ही घोर नासमझों ने आगामी १०-१२ फरवरी, २०२४ ई. को टंकारा में एक जन्म द्विशताब्दी समारोह बुला रक्खा है,
उनकी नासमझी का तो ठिकाना ही क्या!!
ऋषि की वास्तविक जन्म तिथि भाद्रपद शुक्ल नवमी गुजराती संवत् १८८१ तदनुसार २० सितम्बर, १८२५ ई. (मंगलवार) है
जो ऋषि की जन्मतिथि के निर्धारण के लिए निर्धारित पूर्वोक्त दोनों छोरों अर्थात् ४ अगस्त, १८२५ ई. और ४ अगस्त, १८२६ ई. के मध्य की ही है
और जो उनकी उनके पारिवारिक उत्तराधिकारियों से प्राप्त एक जन्मकुंडली से भी मेल खाती है,
अतः उनकी यही जन्मतिथि सही है,
तभी तो उन्होंने कलकत्ता में २२ मार्च, १८७३ ई. को कहा था कि ” मेरी अवस्था इस समय प्रायः ४८ वर्ष की है।”
अतः गत वर्ष १२ फरवरी, २०२३ ई. को दिल्ली में देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को बुलाकर जो ऋषि का २००वां जन्म दिन ( जन्म से १९९ वर्ष बाद) मनाया गया था, वह भी समय पूर्व मनाया गया होने से भ्रामक था,
और तब से अब तक ग़लत मोनो के आधार पर जितने भी आयोजन किए गए, वे सब भी ग़लत ही थे।
परमात्मा जाने आर्यजन इस भ्रमजाल से कब बाहर निकलेंगे?
आगामी १२ सितम्बर, २०२४ ई. को ऋषि को जन्मे १९९ वर्ष और एक वर्ष और बाद सितम्बर, २०२५ ई. में ऋषि के जन्म के २०० वर्ष भाद्रपद शुक्ल ९ को पूरे होंगे।
तभी टंकारा में यह आयोजन होना चाहिए।
निवेदक-
आदित्यमुनि वानप्रस्थ, भोपाल
१ जनवरी, २०२४ ई. (सोमवार)
उक्त तथ्यों को अमेठी के डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री को उनकी मुझे २० जनवरी, २०२४ ई. को प्राप्त एक उनके द्वारा बहुप्रचारित पोस्ट की प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी इस टिप्पणी के साथ कि उपर्युक्त तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में आप अपने द्वारा मान्य जन्मतिथि को सही सिद्ध करें।” भेजे हुए आज पर्यन्त १८ दिन हो गए हैं, पर उन्होंने मेरे उक्त और उसके बाद भी भेजे गए दो सन्देशों को भी पढ़ लेने के बाद भी, अब उत्तर न देना पड़े, इसलिए मेरे मोबाइल को ही ब्लॉक करके रक्खा है। ऐसी स्थिति में मैंने उन्हें इस लेखबद्ध शास्त्रार्थ में पराजित हुआ मान लिया है।
अपनी इस पोस्ट के माध्यम से मैं अब उन सभी लोगों को जो ऋषि दयानन्द की जन्मतिथि फाल्गुन कृष्ण दशमी तदनुसार १२ फरवरी, १८२५ ई.(शनिवार) मानते हों, चैलेंज देता हूं कि वे अपने द्वारा मान्य इस जन्मतिथि को सही सिद्ध होना ही सिद्ध करें।
आह्वान कर्ता-
आदित्य मुनि वानप्रस्थ, पुणे

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