15 अगस्त सन 1947 और भारत का विभाजन, भाग-3अंग्रेज शासक राष्ट्र की एकता और अखण्डता को निमर्मता से रौंदता रहा और हम असहाय होकर उसे देखते रहे। इनसे दर्दनाक और मर्मांतक स्थिति और क्या हो सकती है? कांग्रेस इस सारे घटनाक्रम से आंखें मूंदे रही। उसकी उदासीनता सचमुच लज्जाजनक है। बर्मा, रंगून और माण्डले की […]
श्रेणी: भयानक राजनीतिक षडयंत्र
चीन के अंतर्गत अरूणाचल ही नहीं पूर्व के सभी सात प्रांत तथा आज के चीन का भी बहुत बड़ा भाग सम्मिलित था। यहां तक कि कम्बोडिया तक यह प्रांत था। परंतु इसका अभिप्राय यह नहीं कि हम अरूणाचल आदि अपने प्रांतों पर चीन की दावेदारी स्वीकार कर लें। इसका अभिप्राय स्पष्ट है कि चीन ही […]
भारत के साथ सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इसका इतिहास जो आज विद्यालयों में पढ़ाया जा रहा है वह इसका वास्तविक इतिहास नहीं है। यह इतिहास विदेशियों के द्वारा हम पर लादा गया एक जबर्दस्ती का सौदा है और उन विदेशी लेखकों व शासकों के द्वारा लिखा अथवा लिखवाया गया है जो बलात् हम […]
भारतवर्ष में अंग्रेजों का शासन चाहे जितनी देर रहा हो उसके दिये गये कुसंस्कार और कुपरम्पराएं हमारा पीछा आज तक कर रही हैं। हम जब तक इन कुसंस्कारों से या कुपरम्पराओं से मुक्त नहीं हो जाते हैं, तब तक हम चाहे कितने ही स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस मना लें तब तक हम अपने आपको […]
भारत में मानवाधिकार आयोग, भाग-3 हमारा मानना है कि शूद्र अछूत तब नहीं बना कि जब उसके अधिकार छीन लिये गये, अपितु वह अछूत तब बना जब अधिकार छीनने वाला वर्ग कत्र्तव्यच्युत हो गया। उस वर्ग का कत्र्तव्य शूद्र के अधिकारों का संरक्षण था न कि उनका भक्षण या हनन। यदि वह अपने कत्र्तव्य के […]
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में मानवाधिकारवादी संगठन भी खड़े हुए हैं। भारत में एक मानवाधिकार आयोग भी गठित किया गया है। लोकतांत्रिक देशों में यह एक स्वस्थ परंपरा है कि लोगों के अधिकार दिलाने और समझाने के लिए एक आयोग गठित किया जाए। किंतु इस प्रकार के मानवाधिकार आयोग के गठन से पूर्व इस […]
सन् 2000 में बिहार में ही राज्यपाल विनोद चंद्र पांडेय ने अति उत्साह का परिचय देते हुए नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया। बाद में विधायकों का जुगाड़ पूरा न होने पर सत्ता की सुंदरी ने नीतीश कुमार को ठेंगा दिखा दिया और पुन: राबड़ी ही ‘रबड़ी’ का स्वाद चखने लगीं। राज्यपाल का […]
राजस्थान के राजभवन की घटना इसके पश्चात दूसरी बार लोकतंत्र की हत्या का यह ढंग राजस्थान के राजभवन में सन् 1967 में दोहराया गया। उस समय राजस्थान के राज्यपाल डा. संपूर्णानंद थे। उनके समय में राजस्थान में यह स्थिति आयी कि चुनावों में कांग्रेस स्पष्ट बहुमत से कुछ पीछे रह गयी। तब ऐसी परिस्थितियों में […]
केन्द्र में राष्ट्रपति और प्रांतों में राज्यपाल के पद का सृजन हमारे संविधान निर्माताओं ने इस भावना से किया था कि ये दोनों पद राजनीति की कीचड़ से ऊपर रहेंगे। राजनीति राजभवन से बाहर रहेगी। राजभवन से राजनीति कभी नहीं की जाएगी। राजभवन एक न्याय मंदिर होगा। जिसकी ओर सभी की दृष्टि न्याय पाने की […]
आतंकवाद का अंतर्राष्ट्रीय षडय़ंत्र हम देखते हैं किअशिक्षा से त्रस्त समाज भारत में सर्वाधिक मुस्लिम समाज है। इस समाज को मुल्ला-मौलवियों ने आज भी जकड़ा हुआ है। इस कठमुल्लावाद के विरूद्घ फिर भी वहां विद्रोह नहीं हैै। न कोई मुल्ला आतंकवाद की भेंट चढ़ा और न कोई मस्जिद अथवा मदरसा? आखिर ऐसा क्यों नहीं हुआ […]