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क्या अशिक्षा और बेरोजगारी आतंकवाद का मूल कारण है? भाग-4

आतंकवाद का अंतर्राष्ट्रीय षडय़ंत्र
हम देखते हैं किअशिक्षा से त्रस्त समाज भारत में सर्वाधिक मुस्लिम समाज है। इस समाज को मुल्ला-मौलवियों ने आज भी जकड़ा हुआ है। इस कठमुल्लावाद के विरूद्घ फिर भी वहां विद्रोह नहीं हैै। न कोई मुल्ला आतंकवाद की भेंट चढ़ा और न कोई मस्जिद अथवा मदरसा? आखिर ऐसा क्यों नहीं हुआ या हो रहा? इसका कारण यही है कि कठमुल्लाओं ने सीधे-सादे मुसलमानों को अपने स्वार्थ में प्रयोग करना सीखा है और उनकी अशिक्षा और निर्धनता का प्रयोग करते हुए उन्हें कट्टर मजहबी बनाकर रख दिया है। जिससे अधिकांश मुसलमान मजहबी दृष्टिकोण से बाहर जाकर कुछ सोच नहीं पाता। इसका परिणाम यह आ रहा है कि इस्लाम को इस समय वैश्विक आलोचना का पात्र बनना पड़ रहा है।
हमने जो ऊपर निष्कर्ष दिये हैं, उनके परीक्षण के लिए भारत सरकार चाहे तो एक आयोग गठित कर ले। उसके निष्कर्ष क्या होंगे? यह हम अभी बता देते हैं कि भारत में आतंकवाद भारतीय राष्ट्रवाद, भारतीय संस्कृति और धर्म को मिटाने का एक सुनियोजित षडय़ंत्र है, जिसे उच्च शिक्षा प्राप्त और धनिक वर्ग के लोग रच रहे हैं, और यह भी कि उसकी डोर विदेशों से हिल रही है जिसका अंतिम उद्देश्य इस देश के मूल स्वरूप को विध्वंसित कर नष्ट करना है।
इतने बड़े लक्ष्य को पाने के लिए ये लोग किसी भी स्थिति तक जा सकते हैं। आज के विश्व को दो खेमों में बांटने की रणनीति जिन लोगों ने अपना रखी है, वे सभी के सभी उच्च शिक्षा प्राप्त डिग्रीधारी लोग हैं। इस्लाम और ईसाइयत की मनमानी व्याख्या कर लोगों को एक दूसरे से लड़ाने का कार्य ये उच्च शिक्षा प्राप्त डिग्रीधारी लोग कर रहे हैं। हां, यह अवश्य है कि कई स्थानों पर जो लोग हमें लड़ते हुए दिखाई देते हैं वे निर्धन या अशिक्षित होते हैं। इन्हीं निर्धन और अशिक्षित लोगों को बदनाम करने के उद्देश्य से यह कह दिया जाता है कि अशिक्षा और निर्धनता के कारण लोग परस्पर लड़ते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि इन अशिक्षित और निर्धन लोगों को लड़ाने वाले लोग पर्दे के पीछे ही रह जाते हैं और उनके काले कारनामे तभी संसार के सामने आ नहीं पाते।
भारत में भारत के राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थों के लिए जातीय और साम्प्रदायिक आधार पर लोगों को लड़ाते हैं, मजहबी लोग अपने मजहबी के स्वार्थों की पूर्ति के लिए लोगों को लड़ाते हैं, और समाज के प्रभावशाली लोग अपने प्रभाव और वर्चस्व को स्थापित किये रखने के लिए लोगों को लड़ाते हैं। भारत के राजनीतिज्ञ क्या इस सत्य को कभी समझेंगे या समझकर भी नासमझ ही बने रहेंगे? माना जा सकता है कि कुछ बातों को लेकर अशिक्षित और निर्धन लोग परस्पर लड़ते-झगड़ते हैं, परंतु उनका ऐसा लडऩा झगडऩा बहुत ही नगण्य स्थिति का होता है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि निर्धन और अशिक्षित लोग परस्पर यदि लड़ भी लेते हैं तो उनका ऐसा लडऩा-झगडऩा बच्चों के लडऩे झगडऩे के समान होता है। जैसे बच्चे खेल-खेल में लड़-झगडक़र कुछ देर बाद फिर एक साथ खेलते हैं, वैसे ही अशिक्षित और निर्धन लोग लडऩे के कुछ समय पश्चात पुन: एक दूसरे के साथ खाते-पीते व उठते बैठते देखे जाते हैं। इससे पता चलता है कि उनकी उत्तेजना क्षणिक होती है और वह परस्पर वैर नहीं पालते। ये लोग उन शिक्षित और धनी लोगों से कई गुणा श्रेष्ठ होते हैं जो मन को मलीन रखकर एक दूसरे से हंसते-मुस्कराते हुए मिलते हैं। ऐसे शिक्षित लोगों के भीतर रहने वाला मन मरा हुआ होता है। मरा हुआ मन कभी भी किसी व्यक्ति को महान नहीं बनने देता। इसके विपरीत सकारात्मक ऊर्जा में रहने वाला व्यक्ति चाहे निर्धन और अशिक्षित ही क्यों न हो सदा अमृतमन अर्थात जीवित मन वाला होता है। उसके मन में किसी के प्रति वैर-विरोध नहीं होता, और वह सदा उन्नतिशील कार्यों में लगा रहता है। जो लोग आतंक की फसल बोकर विश्व को आतंकित कर अपने स्वार्थपूत्र्ति में लगे हुए हैं वे मानवता के शत्रु हैं और उनसे कभी भी जीवित मन वाले होने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। समय रहते हमें चेतना होगा और यह मानना होगा कि देश में आतंकवादी सोच को अशिक्षा नहीं, अपितु आज की संस्कार विहीन शिक्षा जन्म दे रही है।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)

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