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इतिहास के पन्नों से देश विदेश

तिब्बत : चीखते अक्षर, भाग -12

स्वास्थ्य क्रिस मुल्लिन लिखते है‍ कि सामान्य प्रे़क्षक को भी यह स्पष्ट हो जाता है कि तिब्बत में स्वास्थ्य सुविधाओं का स्तर बाकी चीन की तुलना में बहुत गिरा हुआ है। चीनियों ने बहुत कम तिब्बतियो‍ को चिकित्सा कर्म में प्रशिक्षित किया है और दावा त्सेरिंग(पहले के भाग में वर्णित) ने पाया कि ‘समाजवादी’ तिब्बत […]

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इतिहास के पन्नों से देश विदेश

तिब्बत : चीखते अक्षर, भाग- 11

संयुक्त राष्ट्र के निवेदन हालाँकि 1950 में संयुक्त राष्ट्र से किये गये प्रारम्भिक तिब्बती निवेदनों को सीमित प्रतिसाद मिला लेकिन चीनी अत्याचार इतने बुरे हो गये कि संयुक्त राष्ट्र ने 1959, ’61 और ’65 में तीन प्रस्ताव पारित किये जिनमें से अंतिम में यह माँग की गई थी कि ऐसी समस्त कार्यप्रणालियों को समाप्त किया […]

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इतिहास के पन्नों से भयानक राजनीतिक षडयंत्र

इतिहास पर गांधीवाद की छाया, अध्याय – 17 (1)

  द्विराष्ट्रवाद और गांधीवाद 2019 में केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा जब लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया गया तो कुछ बरसाती मेंढक बाहर आकर टर्राने लगे थे। इन मेंढकों की टर्राहट गृहमंत्री अमितशाह के उस बयान को लेकर अधिक थी जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत का धर्म के आधार पर यदि […]

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इतिहास के पन्नों से

हिन्दू धर्म के प्रति निष्ठावान होने के कारण डॉ राजेंद्र प्रसाद होते रहे थे मुस्लिमपरस्त नेहरू से सदा अपमानित

देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्रप्रसाद की मृत्यु हिंदुत्व का साथ देने की वजह से हुई !!! सोमनाथ मंदिर के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद व सरदार पटेल को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी ये जगजाहिर है कि जवाहर लाल नेहरू सोमनाथ मंदिर के पक्ष में नहीं थे। ऐसा माना जा रहा है की महात्मा गांधी की […]

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इतिहास के पन्नों से

आत्मविश्वास के धनी : डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद

———————————————————– 3 दिसम्बर/जन्म-दिवस बिहार के एक विद्यालय में परीक्षा समाप्ति के बाद कक्षाध्यापक महोदय सबको परीक्षाफल सुना रहे थे। उनमें एक प्रतिभाशाली छात्र राजेन्द्र भी था। उसका नाम जब उत्तीर्ण हुए छात्रों की सूची में नहीं आया, तो वह अध्यापक से बोला – गुरुजी, आपने मेरा नाम तो पढ़ा ही नहीं। अध्यापक ने हँसकर कहा […]

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इतिहास के पन्नों से स्वर्णिम इतिहास

भारतीय नौसेना के भीष्म पितामह हैं छत्रपति शिवाजी महाराज

  ज्ञानेंद्र बरतरिया छत्रपति शिवाजी महाराज आज अपने वक्त से ज्यादा प्रासंगिक हैं। छत्रपति शिवाजी ने युद्ध, राजनीति-कूटनीति और सौहार्द की जो नीतियां गढ़ीं, जो परंपराएं स्थापित कीं- उन्हें सोलहवीं सत्रहवीं सदी के भारत में भले जितना समझा गया हो लेकिन उनके विचारों, नीतियों को बीसवीं-इक्कीसवीं सदी तक दुनिया में सबसे ज्यादा अहमियत दी जा […]

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इतिहास के पन्नों से विश्वगुरू के रूप में भारत

भारतीय धातु परंपरा और लोक कल्याण की भावना

    आर.के.त्रिवेदी विश्व के कल्याण का भाव लेकर ही भारत में धातुकर्म विकसित हुआ था। धातुकर्म के कारण ही भारत में बड़ी संख्या में विभिन्न धातुओं के बर्तन बना करते थे जो पूरी दुनिया में निर्यात किए जाते थे। धातुकर्म विशेषकर लोहे पर भारत में काफी काम हुआ था। उस परम्परा के अवशेष आज […]

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इतिहास के पन्नों से विश्वगुरू के रूप में भारत

खेल खेल में ही सिखा दी जाती थी भारतीय परंपरा में युद्ध की विधाएं

  आनंद कुमार सन 1850 के दौर में जब अंग्रेजों को भयानक भारतीय प्रतिरोध का सामना करना पड़ा तो धीरे से उन्होंने एक आर्म्स एक्ट लागु कर दिया। इसका उन्हें फायदा ये हुआ कि भारतीय हथियार रखेंगे नहीं तो यहाँ कि शास्त्रों की परंपरा जाती रहेगी। फिर एक प्रशिक्षित सिपाही भी बिना प्रशिक्षण वाली सौ-दो […]

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इतिहास के पन्नों से स्वर्णिम इतिहास

सम्पूर्ण विश्व में भारत का सम्मान ऊंचा किया था महाराजा रणजीत सिंह ने

  विवेक भटनागर कम्युनिस्टों से लेकर राष्ट्रवादियों तक सभी एक स्वर से भारत की हजार वर्ष की गुलामी की बात सरलता से कह जाते हैं। बारहवीं शताब्दी में मोहम्मद गोरी के दिल्ली पर कब्जा करने से लेकर वर्ष 1947 में अंग्रेजों के जाने तक के काल को सभी सहज भाव से भारत की गुलामी का […]

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इतिहास के पन्नों से विश्वगुरू के रूप में भारत

आयुर्वेद में शल्य चिकित्सा के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं

मनोज ज्वाला     भारत के पुनरुत्थान की ओर सरकार के बढते कदम खबर है कि भारत सरकार अब स्वास्थ्य-चिकित्सा विषयक उच्च-शिक्षा  को युरोपियन मेडिकल साइंस की गिरफ्त से मुक्त करने और प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान के विस्तार का मार्ग प्रशस्त करने की दिशा में भी एक बहुत बडा कदम उठा चुकी है । देश में […]

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