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विशेष संपादकीय संपादकीय

कम्युनिस्ट और नक्सलवाद

भारत में नक्सलवाद को कम्युनिस्ट आंदोलन की देन माना जा सकता है। वास्तव में कम्युनिस्ट अब एक आंदोलन नहीं रह गया है। यह अब एक मृत विचारधारा बन चुका है और विश्वशांति के समर्थक किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए अब ‘कम्युनिज्म’ में कोई आकर्षण नही रहा है। इसका कारण है कि साम्यवादी विचारधारा अपने […]

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संपादकीय

निजी अनुभवों की सांझ-8

ऐसा कब होता है? जब कत्र्तव्य बोध से लेाग च्युत हो जाते हैं और जब राष्ट्रबोध से लोग विमुख हो जाते हैं, तब ‘कमीशन’ और ‘पैसा’ कर्तव्य बोध और राष्ट्रबोध को भी लील जाता है। आज हमें यही  ‘कमीशन’ और पैसा हमें लील रहा है। प्राकृतिक प्रकोप हमारी अपनी बदलती प्रकृति और प्रवृत्ति के परिणाम […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

…कितना बदला इंसान

हरियाणा के पानीपत का रोंगटे खड़ा कर देने वाला प्रकरण सामने आया है। जहां के एक फार्महाउस के मालिक ने अपने जर्मनी मूल के कुत्ते से अपने नौकर मनीराम को नोंच-नोंच कर मरवा डाला है। नौकर का दोष केवल यह था कि वह अपने मालिक की नौकरी छोडऩे का मन बना रहा था, जबकि मालिक […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र मुद्दा राजनीति विशेष संपादकीय संपादकीय

वाह योगी जी वाह!

उत्तर प्रदेश को ‘उत्तम प्रदेश’ बनाने की बात कहने वाले ‘बीमार प्रदेश’ बनाकर छोडक़र गये हैं। साम्प्रदायिक आतंकवाद से जूझता रहा उत्तर प्रदेश ‘सरकारी आतंकवाद’ से भी जूझता रहा। यह ‘सरकारी आतंकवाद’ जातीय आधार पर अधिकारियों की नियुक्ति या पुलिस में भर्ती के रूप में तो देखा ही गया,  साथ ही अधिकारियों और पार्टी के […]

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संपादकीय

निजी अनुभवों की सांझ-7

उसे हर प्रकार के शोषण से लडऩे और उसे उजागर करने के लिए प्रेरित किया जाता, राष्ट्र के नितांत ईमानदार और राष्ट्रसेवी आचार्य उसके भीतर की छिपी हुई मानवीय शक्तियों और प्रतिभाओं को सही दिशा और दशा प्रदान करते तो यह राष्ट्र अब तक स्वर्ग सम बन गया होता। इसमें दो मत नही हो सकते। […]

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विशेष संपादकीय संपादकीय

पीएम मोदी देश के गृहमंत्री को बदलें

भारत की राजनीति का धर्म बन गया है :- कहां की पूजा नमाज कैसी कहां की गंगा कहां का जमजम। डटा है होटल के दर पै हर एक इमें भी दे दो इक जाम साहब।। भारत के राजनीतिज्ञों की इस मानसिकता के चलते राष्ट्रधर्म पीछे रह गया है। फिर भी हम वर्तमान संदर्भों में अपनी […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

निजी अनुभवों की सांझ-6

उत्तराखण्ड के भूकंप के समय और गुजरात के भूकंप के समय मेरे मित्रों ने (जो या तो वहां गये या किसी भी प्रकार से निकटता से जुड़े रहे) मुझे बताया कि नकद धनराशि बहुत कमी के साथ उन लोगों तक पहुंच पाती है जिनके लिए वह भेजी जाती है। उसका अधिकांश भाग तो अधिकारियों के […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

निजी अनुभवों की सांझ-5

परिस्थिति के निर्माता हम स्वयं वास्तव में सारी परिस्थितियों के हम स्वयं ही निर्माता हैं। परिस्थितियों को हम ही बनाते हैं, परिस्थितियां हमें कदापि नहीं बनाती हैं। लोकतंत्र को ‘लूटतंत्र’ में हमने ही तो परिवर्तित किया है। कैसे? जनता ने ‘वोट’ के बदले नेता से ‘नोट’ पाकर। अधिकारी ने मनचाहे स्थान के लिए ‘स्थानांतरण’ कराने […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

निजी अनुभवों की सांझ-4

भ्रष्टाचारी भी नहीं और आय भी बहुत एक जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्टे्रट कह रहे थे कि जिलाधिकारी महोदय एक माह में 50 लाख रूपये तो तब कमा लेते हैं जब उन्हें किसी से रिश्वत या भ्रष्टाचार के माध्यम से कोई पैसा लेने या मांगने की आवश्यकता ही न पड़े। ऐसा सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

निजी अनुभवों की सांझ-3

जी हां! अपने प्यारे देश में ‘कमीशन’ ने सिद्घांतों का सौदा कर दिया है। इस ‘कमीशन’ के लिए अब तो समय आ गया है कि जब इसे भगवान मानकर इसकी आरती उतारी जाए। जिधर देखता हूं बस! उधर तू ही तू है। कि हर शय में जलवा तेरा हू ब हू है।। ‘कमीशन’ की इस […]

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