Categories
भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

निजी अनुभवों की सांझ-5

परिस्थिति के निर्माता हम स्वयं
वास्तव में सारी परिस्थितियों के हम स्वयं ही निर्माता हैं। परिस्थितियों को हम ही बनाते हैं, परिस्थितियां हमें कदापि नहीं बनाती हैं। लोकतंत्र को ‘लूटतंत्र’ में हमने ही तो परिवर्तित किया है। कैसे?
जनता ने ‘वोट’ के बदले नेता से ‘नोट’ पाकर।
अधिकारी ने मनचाहे स्थान के लिए ‘स्थानांतरण’ कराने के लिए मंत्री जी को अमूल्य भेंट और लाखों रूपये ‘पार्टी फंड’ के नाम पर देकर ‘स्थानांतरण-उद्योग’ को भारतीय राजनीति में कमाई का माध्यम बनवाकर।
जनता ने गलत व्यक्ति को मत दिया। इस प्रकार अपने लिए मृत्यु का जंजाल स्वयं खड़ा किया।
नेता ने ‘स्थानांतरण-उद्योग’ को अधिकारियों से लिया गया नजराना समझा और अधिकारियों ने ‘कच्चा माल’ जनता के रक्त को समझा। इस प्रकार व्यक्ति एक दूसरे को गाली दे रहा है, बिना यह ध्यान किये कि तेरा स्वयं का भी परिस्थितियों को विकृत करने में कितना योगदान है?
जनता नोट लेना छोड़ दे, कर्मचारी व अधिकारी मनचाही जगह के लिए ‘स्थानांतरण’ की जुगाड़बाजी छोड़ दें, नेता पार्टी फंड के नाम पर चंदा वसूली छोड़ दें- तब देखना बिगड़ी हुई परिस्थितियां किस प्रकार सुधरती हैं? परिस्थितियों को दोष देना तो सच से मुंह मोडऩा है एक दूसरे को मूर्ख बनाना है, झूठ के सामने घुटने टेक देना है और बुराई को महिमामंडित करना है।
मानवता मर गयी
पाशविक मानसिकता के लोग उत्तराधिकारी बन गये उस महान थाती के जो संसार की सर्वोत्कृष्ट थाती है। ये उत्तराधिकारी ऐसे लोग थे जिनका मानवता से दूर-दूर का भी कोई संबंध नहीं था। गुजरात में भूकंप आया, उससे पूर्व उत्तराखण्ड में भूकंप आया और अब दक्षिण भारत के समुद्र तटीय क्षेत्रों में पुन: भूकंप के रूप में मृत्यु का तांडव जो सूनामी लहरों के रूप में नृत्य हमें देखने को मिला है। 
बिछुड़े हुए परिजनों के वियोग में शेष रहे परिजनों का करूण-क्रंदन, बच्चों की चीख पुकार, रोना पीटना, भूख से अकुलाते बच्चे, आकाश की नीली छत के नीचे गर्मी, सदी, बरसात को झेलता हुआ बुढ़ापा, शवों का ढेर, मृतकों के शवों से दुर्गंधित वातावरण, भूकंप के रह रहकर आते झटके और उनके बीच मारे भय के लोगों की निकलती हुई चीखें-कुछ ऐसा ही दृश्य होता है-हर प्रकार के भूकंप के पश्चात उस स्थान का जहां पर वह विनाशकारी भूकंप या प्राकृतिक आपदा आती है। इस दृश्य को देखकर संभवत: मानवता की दशा क्या होती है? ऐसी स्थिति पर तो दानवता भी मुंह छिपाती है कि ऐसा व्यवहार तो मेरे वश की बात भी नहीं। फिर भी लोग इस मानवता का गुणगान पता नहीं क्यों करते हैं?
हमारी राज्य सरकारें, केन्द्र सरकार, संयुक्त राष्ट्र संघ सहित कभी-कभी विदेशी सरकारें भी, सामाजिक संगठन, दानी लोग, समाजसेवी संस्थाएं और मानवीय हृदय के धनी और उदार प्रवृत्ति के लोग ऐसे समय में मन खोलकर दान करते हैं, उजड़े लोगों को पुनर्वासित करने के लिए भरपूर प्रयत्न करते हैं। तन, मन, धन से सेवा कार्यों में लग जाते हैं। अपार धनराशि ऐसे स्थानों पर जाती है। लोग कपड़े भेजते हैं, खाने पीने की सामग्री भेजते हैं, जीवनोपयोगी अन्य वस्तुएं भेजी जाती हैं, नकद धनराशि भेजी जाती है, कम्बल रजाई आदि भेजे हैं।
(लेखक की पुस्तक ‘वर्तमान भारत में भयानक राजनीतिक षडय़ंत्र : दोषी कौन?’ से)
पुस्तक प्राप्ति का स्थान-अमर स्वामी प्रकाशन 1058 विवेकानंद नगर गाजियाबाद मो. 9910336715

Comment:Cancel reply

Exit mobile version