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आज का चिंतन

जीवन में निराशा को कभी नजदीक मत आने दो : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

बहुत से लोग संसार में उत्साही और आशावादी होते हैं। कुछ लोग स्वभाव से ही निराशावादी होते हैं। निराश तो कभी भी होना ही नहीं चाहिए। जो लोग निराशावादी हैं, वे अपना स्वभाव बदलने का प्रयास करें। जो उत्साही और आशावादी लोग हैं, वे भी कभी-कभी निराशा की लपेट में आ जाते हैं। तब वे […]

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कलियुग में है नाम आधारा।सुमरि-सुमरि जन उतरैं पारा ।।

बिना भक्ति के मानव जीवन सफल नहीं हो सकता। अनेक संतों ने भक्ति से मिलने वाली शक्ति का गुणगान किया है। इस संबंध में कलाम हज़रत सुल्तान बाहू का कथन है :- कर इबादत पच्छोतासें उम्र चार दिहाड़े हूँ। थी सौदागर कर लै सौदा , जा तक हटटन तोडे हूँ । परमपिता परमेश्वर के नाम […]

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मनुष्य मांसाहारी या शाकाहारी?

हवा-पानी-भोजन सभी जीवधारियों के जीवन आधार हैं। हवा-पानी साफ हों प्रदूषित न हों, यह भी सर्वमान्य है। मनुष्य को छोड़ कर शेष सभी शरीरधारी अपने भोजन के बारे में भी स्पष्ट हैं उनका भोजन क्या है? यह कितनी बड़ी विड़म्बना है कि सबसे बुद्धिमान् शरीरधारी मनुष्य अपने भोजन के बारे में स्पष्ट नहीं है। मैं […]

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सत्याचरण से अमृतमय मोक्ष की प्राप्ति मनुष्य जीवन का लक्ष्य”

ओ३म् =============== हमारी जीवात्माओं को मनुष्य जीवन ईश्वर की देन है। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान होने के साथ सर्वज्ञ भी है। उससे दान में मिली मानव जीवन रूपी सर्वोत्तम वस्तु का सदुपयोग कर हम उसकी कृपा व सहाय को प्राप्त कर सकते हैं और इसके विपरीत मानव शरीर का सदुपयोग न करने के कारण हमें […]

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“केवल सांस लेने का नाम जीवन जीना नहीं है।”

लोग संसार में कहने को तो अपना अपना जीवन जी रहे हैं, परंतु वास्तव में उन्हें जीवन जीना आता नहीं है। “केवल सांस लेने का नाम जीवन जीना नहीं है।” तो फिर? जीवन जीने का अर्थ है, “आप स्वयं भी सुख से जिएं, और दूसरों को भी सुख से जीने दें।” यह एक बहुत बड़ी […]

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माता पिता की सेवा में ही है सबसे बड़ा आनंद

डॉ. सौरभ मालवीय आज के युग में उन्नति का अर्थ केवल धनोपार्जन से लिया जा रहा है अर्थात जो व्यक्ति जितना अधिक धन अर्जित कर रहा है, वह उतना ही सफल माना जा रहा है। मनुष्य की उन्नति की इस परिभाषा ने पारिवारिक संबंधों से मान-सम्मान ही समाप्त कर दिया है। माता-पिता बड़े लाड़-प्यार से […]

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दूसरों के साथ अपनी तुलना या मूल्यांकन नहीं करना चाहिए

18.7.2022 कुछ लोग कहते हैं कि “दूसरों के साथ अपनी तुलना या मूल्यांकन नहीं करना चाहिए।” यह तो उन विदेशी लोगों का विचार है, जो वैदिक विचारधारा को नहीं जानते। “वास्तव में यह बात बुद्धिमता पूर्ण नहीं है, और सत्य भी नहीं है। क्योंकि जब तक आप दूसरों से तुलना नहीं करेंगे, आपको जीवन में […]

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कित्थे गए सलतान सिकंदर मौत न छोड़े पीर पगंबर

गुरु नानक देव जी कहते हैं :- रैण गवाई सोय के दिवस गंवाया खाय। हीरे जैसा जन्म है , कोड़ी बदले जाए ।। चिड़िया चहकी पहु फटी बगनी बहुत तरंग। अचरज रूप संतन रचे नानक नाम ही रंग।। सोते-सोते रात गंवा दी। दिन खाने पीने में गंवा दिया। हीरे जैसे जन्म को छोटी-छोटी बातों में […]

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श्रेष्ठ व योग्य शिष्य की खोज में रहते हैं श्रेष्ठ गुरु  

“वासुदेव सुतं देवम कंस चाणूर मर्दनम्,  देवकी परमानन्दं कृष्णम वन्दे जगतगुरु”  श्रीकृष्ण को विश्व का श्रेष्ठतम गुरु क्यों कहा जाता है?  शिष्य अर्जुन की खोज के कारण?  अर्जुन को कुरुक्षेत्र में ईश्वर का विराट रूप दिखा देने के कारण?  महाभारत के रणक्षेत्र में श्रीमद्भागवद्गीता रच देने के कारण?  या कथनी और करनी में भेद न […]

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“सृष्टि में ईश्वर का अस्तित्व सत्य व यथार्थ है”

ओ३म् ========= हम जिस संसार को देखते हैं वह अति प्राचीन काल से विद्यमान है। यह कब बना, इसका प्रमाण हमें वेद, वैदिक साहित्य एवं इतिहास आदि परम्पराओं से मिलता है। आर्य लोग जब भी कोई पुण्य व शुभ कार्य करते हैं तो वह संकल्प पाठ का उच्चारण करते हैं। इसमें कर्मकत्र्ता यजमान का नाम, […]

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