लोग संसार में कहने को तो अपना अपना जीवन जी रहे हैं, परंतु वास्तव में उन्हें जीवन जीना आता नहीं है। “केवल सांस लेने का नाम जीवन जीना नहीं है।” तो फिर? जीवन जीने का अर्थ है, “आप स्वयं भी सुख से जिएं, और दूसरों को भी सुख से जीने दें।” यह एक बहुत बड़ी कला है, कि “व्यक्ति स्वयं भी सुख से जी ले, और दूसरों को भी जीने दे।” कैसी है वह कला? लीजिए, नीचे लिखी है, पढ़ लीजिए।
जब आप दूसरों को उन्नति करता हुआ देखें, और यह देखें कि “दूसरे लोग अपने पुरुषार्थ से जो प्रगति कर रहे हैं, उसमें वे बड़े प्रसन्न हैं, सुखी हैं, तो उनको सुखी देखकर आप भी सुख का अनुभव करें।” और ऐसा सोचें, “कितने सौभाग्य की बात है, कि हमारे मित्र संबंधी पड़ोसी आदि सब लोग सुखी हैं।” आप कहेंगे, “वे लोग सुखी हैं, तो इससे हमें क्या लाभ?” “हमारा उत्तर है, कि लाभ है।” यदि आप इस ढंग से सोचें, तो आपको लाभ दिखाई देगा। क्या लाभ दिखाई देगा?
एक मनोविज्ञान का नियम है कि “जो व्यक्ति स्वयं सुखी होता है, वह दूसरों को भी सुख देता है। और जो स्वयं दुखी होता है, वह दूसरों को भी दुख ही देता है।” इस नियम के अनुसार अब ज़रा ‘और गंभीरता’ से सोचिए, “यदि आपके संबंधी मित्र पड़ोसी आदि लोग दुखी होंगे, तो वे आपको क्या देंगे? दुख ही देंगे। क्या आप दुख भोगना चाहते हैं? नहीं। तो इससे क्या समझना चाहिए?” यही समझना चाहिए, कि “यदि आप के मित्र संबंधी पड़ोसी लोग सुखी होंगे, तभी वे आपको सुख देंगे, और आपको शांति से जीने देंगे। यदि वे दुखी और परेशान होंगे, तब न तो वे स्वयं ठीक से जी पाएंगे, और न आपको जीने देंगे।” ईश्वर न्यायकारी है। वह बिना अच्छा कर्म किए किसी को सुख नहीं देता। “इसलिए यदि ‘आप’ सुख से जीना चाहते हों, तो आपको ऐसा सोचना और भगवान से प्रार्थना करनी पड़ेगी”, कि “हे भगवान! सब लोग अच्छे काम करें। वे स्वयं सुख से जीएं और हमें भी सुख से जीने दें।” “अतः दूसरों के सुख को देखकर आप जलें नहीं, बल्कि आप ‘सुख का अनुभव’ करें। ऐसा करने से उनका सुख तो बढ़ेगा ही, साथ ही आप भी सुखी रहेंगे।”
“बस यही सुख से जीवन जीने की असली कला है, जो वेदों के आधार पर ऋषियों ने हमें समझाई है।” “जो व्यक्ति इस कला को जानता है, और इसी कला से अपना जीवन जी रहा है, वही वास्तव में सुख से जी रहा है। बाकी लोग तो केवल साँस लेकर अपना टाइम पास कर रहे हैं। ऊपर बताई इस कला को आप भी अपनाएं, तथा सुख से अपना जीवन जीएं।”
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़ गुजरात।
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