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आज का चिंतन

“ब्रह्माण्ड के अगणित सौरमण्डलों में असंख्य पृथिव्यां हैं जहां हमारे समान मनुष्यादि प्राणि सृष्टि का होना सम्भव है”

ओ३म् ========== हमारी पृथिवी हमारे सूर्य का एक ग्रह है। इस पृथिवी ग्रह पर मनुष्यादि अनेक प्राणी विद्यमान है। हमारी यह पृथिवी व समस्त ब्रह्माण्ड वैदिक काल गणना के अनुसार 1.96 अरब वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया है। पृथिवी पर मानव सृष्टि की उत्पत्ति से लगभग 2.6 करोड़ वर्ष पूर्व का काल सृष्टि की रचना […]

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‘सत्यार्थप्रकाश स्वाध्याय शिविर’ “वैश्य बन्धुओं को पशुओं की रक्षा, दान देने सहित विद्या व धर्म को बढ़ाना चाहियेः महेन्द्र मुनि”

ओ३म् ========= वैदिक साधन आश्रम देहरादून में विगत १ अगस्त, २०२२ से सत्यार्थप्रकाश स्वाध्याय शिविर चल रहा है। आज दिनांक ७-८-२०२२ को शिविर का ७वां दिन था। हम भी आज शिविर की कक्षा में सम्मिलित हुए। शिविर में सत्यार्थप्रकाश का स्वाध्याय आर्य वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम, ज्वालापुर-हरिद्वार से पधारे आर्य विद्वान श्री महेन्द्र मुनि जी […]

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भारत के लोकतंत्र की दशा?*

*डाॅ. वेदप्रताप वैदिक* सोनिया गांधी और राहुल गांधी आजकल ‘नेशनल हेराल्ड’ घोटाले में बुरी तरह से फंस गए हैं। मोदी सरकार उन्हें फंसाने में कोई कसर छोड़ नहीं रही है। वे दावा कर रहे हैं कि वे साफ-सुथरे हैं। यदि यह दावा ठीक है तो वे डरे हुए किस बात से हैं? जांच चलने दें। […]

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वेद और संस्कृत भाषा सृष्टिकर्ता ईश्वर से सर्गारम्भ में प्राप्त ज्ञान व भाषा हैं”

ओ३म् ========= संसार में दो प्रकार की रचनायें देखने को मिलती है। एक अपौरूषेय और दूसरी पौरूषेय रचनायें। अपौरूषेय रचनायें वह होती हैं जो मनुष्यों के द्वारा असम्भव होने से नहीं की जा सकती। उदाहरण के लिए सूर्य, चन्द्र व पृथिवी सहित पृथिवी पर वायु, जल, अग्नि आदि की उत्पत्ति मनुष्य कदापि नहीं कर सकते। […]

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‘ईश्वर के सत्यस्वरूप के ज्ञान तथा वेद प्रचार से युक्त जीवन ही सर्वोत्तम एवं श्रेयस्कर है’

ओ३म् ========== हम वर्तमान में मनुष्य हैं। हम इससे पहले क्या थे और परजन्म में क्या होंगे, हममें से किसी को पता नहीं। यह सुनिश्चित है कि इस जन्म से पूर्व भी हमारा अस्तित्व था और मृत्यु के बाद भी हमारी आत्मा का अस्तित्व रहेगा। हमारी विशेषता है कि हमारे पास अन्य पशु-पक्षियों से भिन्न […]

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पाखण्ड खंडिनी, समाज सुधार, हिन्दी अंधविश्वासों का खण्डन समाज की उन्नति के लिए परम आवश्यक’

मनमोहन कुमार आर्य जिस प्रकार से मनुष्य शरीर में कुपथ्य के कारण समय-समय पर रोगादि हो जाया करते हैं, इसी प्रकार समाज में भी ज्ञान प्राप्ति की  समुचित व्यवस्था न होने के कारण सामाजिक रोग मुख्यतः अन्धविश्वास, अपसंस्कृति एवं किंकर्तव्यविमूढ़ता आदि हो जाया करते हैं। अज्ञान, असत्य व अन्धविश्वास का पर्याय है। जहां अज्ञान होगा […]

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आर्य समाज के दीवाने भजनोपदेशक———- [पंडित प्रकाशचन्द्र कविरत्न]

आनंद स्त्रोत बह रहा, पर तू उदास है। अचरज है जल में रहकर भी मछली को प्यास है। फुलों में ज्यों सुवास ईख में मिठास है, भगवन् का त्यों विश्व के कण कण में वास है।। 1।। टुक ज्ञान चक्षु खोल के तू देख तो सही, जिसको तू ढूंढता है, सदा तेरे पास है।। 2।। […]

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मनुष्य के बिगाड़ के एक नहीं होते हैं कई कारण : विवेकानंद परिव्राजक जी

मनुष्य के सुधार एवं बिगाड़ के बहुत से कारण हैं। “जैसे माता पिता आचार्य पड़ोसी मित्र प्रेस मीडिया सरकार के कानून अपने पूर्व जन्मों के संस्कार और वर्तमान जीवन का पुरुषार्थ इत्यादि।” “उनमें से मुख्य कारण हैं, माता-पिता और आचार्य। जिस व्यक्ति को ये तीन शिक्षक उत्तम मिल जाते हैं, उसका कल्याण हो जाता है। […]

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छांदोग्य उपनिषद की एक प्रेरक कथा

*🔥 ओ३म् 🔥* *🌷उपनिषद् की प्रेरक कथा🌷* छान्दोग्य-उपनिषद् में एक कथा आती है। भारत में महाराजा अश्वपति उस समय राज्य कर रहे थे। एक बहुत बड़ा वैश्वानर यज्ञ उनकी राजधानी में होने वाला था। पाँच महानुभाव ब्रह्मज्ञान की खोज में राजा अश्वपति के पास पहुँचे। राजा ने उन्हें कहा कि आपको भी उतना ही धन […]

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वेदों ने विद्या प्राप्त मनुष्यों के लिये द्विज शब्द का प्रयोग किया है”

ओ३म् ========= संसार में दो प्रकार के लोग हैं जिन्हें हम शिक्षित एवं अशिक्षित तथा चरित्रवान एवं चारीत्रिक दृष्टि से दुर्बल कह सकते हैं। सृष्टि के आरम्भ में वेदोत्पत्ति से पूर्व न तो भाषा थी, न ज्ञान और न ही किसी प्रकार का शब्द भण्डार। यह सब वेदों की देन है। वेदों की रचना वा […]

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