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आज का चिंतन

जीवन में निराशा को कभी नजदीक मत आने दो : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

बहुत से लोग संसार में उत्साही और आशावादी होते हैं। कुछ लोग स्वभाव से ही निराशावादी होते हैं। निराश तो कभी भी होना ही नहीं चाहिए। जो लोग निराशावादी हैं, वे अपना स्वभाव बदलने का प्रयास करें।
जो उत्साही और आशावादी लोग हैं, वे भी कभी-कभी निराशा की लपेट में आ जाते हैं। तब वे सोचते हैं, कि ‘मैं अकेला क्या कर सकता हूं?’ “ऐसी निराशा में जीना, तो सदा हानिकारक ही है। इसलिए कभी भी व्यक्ति को निराश नहीं होना चाहिए। जो समस्या हो, उसका समाधान ढूंढना चाहिए।” “ऐसे महापुरुषों का जीवन चरित्र पढ़ना चाहिए, जिन्होंने संसार में बड़े-बड़े काम किए हों। उनका इतिहास जीवन चरित्र पढ़कर आपकी सब निराशा दूर हो जाएगी।”
उदाहरण के लिए, आज से लगभग डेढ़ सौ 200 वर्ष पहले की बात है। उस समय संसार में बहुत अंधकार रूपी अविद्या छाई हुई थी। “अविद्या तो अभी भी छाई हुई है, फिर भी उस समय भी बहुत खराब स्थिति थी। सब अंधेरे में ही भटक रहे थे। किसी को समझ में नहीं आ रहा था, कि व्यक्तिगत, पारिवारिक जीवन को कैसे जिएं? सामाजिक परंपराओं को कैसे निभाएं? आध्यात्मिक जगत में लोग ईश्वर को भूल चुके थे। भ्रांतियों में पड़े थे।”
“ऐसे समय में महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने लोगों को जगाया। उनकी अविद्या दूर की। उन्हें अविद्या अंधकार से बाहर निकाला। वेदों का प्रकाश फैलाया। संसार भर के लोगों को झकझोर दिया। उस समय स्त्रियों को पढ़ने का अधिकार नहीं था, महर्षि दयानंद जी ने दिलवाया।” उस समय लोग ईश्वर को भूल चुके थे, भ्रांतियों में पड़े थे। महर्षि जी ने लोगों को बताया, कि “ईश्वर एक है। वह सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान है। निराकार है। पूर्ण न्यायकारी है, आदि आदि बहुत बातें महर्षि दयानंद जी ने संसार को सिखाई।” “उन्होंने अकेले ही यह सब कार्य आरंभ किया। बाद में कुछ लोग उनके साथ जुड़ गए, और उनका सहयोग किया। परंतु आरंभ में वे अकेले ही थे।” उनके जीवन की बहुत बातें हैं। सब तो यहां नहीं बताई जा सकती। एक-दो उदाहरण मैंने आपको बतलाए हैं।
“जो लोग कभी कभी निराश हो जाते हैं, वे लोग महर्षि दयानंद सरस्वती जी के जीवन चरित्र को पढ़ें। ऐसे ही अन्य महापुरुषों महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, चन्द्र शेखर आजाद आदि के जीवन को भी पढ़ें, तो उनकी निराशा दूर हो जाएगी। उनमें बिजली के करेंट जैसा उत्साह उत्पन्न होगा, और वे अपने लक्ष्य की ओर तूफान की तरह चल पड़ेंगे।”
—- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़ गुजरात।

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