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आज का चिंतन

“वैदिक धर्म का समग्रता से प्रचार गुरुकुलीय शिक्षा से ही सम्भव”

ओ३म् =========== गुरुकुल एक लोकप्रिय शब्द है। यह वैदिक शिक्षा पद्धति का द्योतक शब्द है। वैदिक धर्म व संस्कृति का आधार ग्रन्थ वेद है। वेद चार हैं जिनके नाम ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद हैं। यह चार वेद सृष्टि के आरम्भ में सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, अनादि, अनन्त, न्यायकारी, सृष्टिकर्ता और जीवों को उनके […]

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स एष पूर्वेषामपि गुरु: कालेनानवच्छेदात् ।। 26 ।।

स एष पूर्वेषामपि गुरु: कालेनानवच्छेदात् ।। 26 ।।  आज गुरु पूर्णिमा है। इस अवसर पर सत्य सनातन संस्कृति सेवा समिति के सौजन्य से आज का पाक्षिक पौर्णमासिक यज्ञ भी संपन्न किया । इसके साथ ही गुरुओं के भी गुरु परमपिता परमेश्वर का इस बात के धन्यवाद ज्ञापित किया कि उनकी बनाई सृष्टि में हमको मानव […]

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हमारे ऋषियों और महाऋषियों ने वेदों को कैसे सुरक्षित रखा?

जब कोई आर्य बंधू हमारे भाइयों के ये बताने की कोशिश करता हैं की हमारे ज्यादातर ग्रंथों में मिलावट की गई है, तो वो वेदों पर भी ऊँगली उठाते हैं की अगर सभी में मिलावट की गई है तो वेदों में भी किसी ने मिलावट की होगी। मैं उन्हें बताना चाहता हूँ की हमारे ने […]

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वाणी मनुष्य को ईश्वर की बहुत बड़ी देन है : विवेकानंद परिव्राजक जी

“मनुष्य को भगवान ने बहुत सी वस्तुएं विशेष दी हैं, जो अन्य सब प्राणियों को नहीं दी। उनमें से एक विशेष वस्तु है वाणी, अर्थात बोलने के लिए भाषा।” “यदि मनुष्य चाहे, तो इस भाषा अथवा वाणी का सदुपयोग करके सब का मन/हृदय जीत सकता है। और यदि मनुष्य मूर्खता करे, तो इस वाणी का […]

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ओ३म् “महर्षि दयानन्द की प्रमुख देन चार वेद और उनके प्रचार का उपदेश”

======== महर्षि दयानन्द ने वेद प्रचार का मार्ग क्यों चुना? इसका उत्तर है कि उनके समय में देश व संसार के लोग असत्य व अज्ञान के मार्ग पर चल रहे थे। उन्हें यथार्थ सत्य का ज्ञान नहीं था जिससे वह जीवन के सुखों सहित मोक्ष के सुख से भी सर्वथा अपरिचित व वंचति थे। महर्षि […]

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हम एक दूसरे को गिफ्ट क्यों देते हैं ?

“लोग एक दूसरे की प्रसन्नता के लिए, अपने संबंधों को मजबूत तथा प्रेममय बनाए रखने के लिए, एक दूसरे को अच्छी अच्छी वस्तुएं भेंट (गिफ्ट) में देते हैं। अच्छी-अच्छी महंगी महंगी गिफ्ट देते हैं। ताकि दूसरा व्यक्ति उस गिफ्ट को प्राप्त करके प्रसन्न हो जाए, और गिफ्ट देने वाले के प्रति प्रेमभाव बनाए रखे।” लोग […]

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ऐसे हुई ‘रत्ती’ शब्द की उत्पत्ति

वीरेन्द्र त्रिवेदी की फेसबुक वॉल से ‘रत्ती भर’ यह शब्द लगभग हर जगह कहीं न कहीं सुनने को मिलता है। आपने भी इस शब्द को बोला होगा और बहुत लोगों की जुबान से सुना भी होगा। कभी किसी पर गुस्सा आता है तो भी हम कह देते हैं कि ‘तुम्हें रत्ती भर भी शर्म नहीं […]

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“सोम प्रभु की महिमा”

ओ३म् ======= त्वं सोम क्रतुभिः सुक्रतुर्भूस्, त्वं दक्षैः सुदक्षो विश्ववेदाः। त्वं वृषा वृषत्वेभिर्महित्वा, द्युम्नेभिर् द्युम्न्यभवो नृचक्षाः।। ऋग्वेद 1.91.2 ऋषिः गोतमः राहूगणः। देवता सोमः। छन्दः पंक्ति।। (सोम) हे जगदुत्पादक तथा शुभगुणप्रेरक परमात्मन्! (त्वं) तू (क्रतुभिः) प्रज्ञाओं और कर्मों से (सुक्रतुः) सुप्रज्ञ और सुकर्मा (भूः) हुआ है। (विश्ववेदाः) सर्वव्यापक तथा सर्वज्ञ (त्वं) तू (दक्षैः) दक्षताओं एवं बलों […]

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.. क्या पता कि हम खुद ही किसके भाग्य से खा रहे हैँ !

एक रेस्टोरेंट में कई बार देखा गया कि, एक व्यक्ति (भिखारी) आता है और भीड़ का लाभ उठाकर नाश्ता कर चुपके से बिना पैसे, दिए निकल जाता है। एक दिन जब वह खा रहा था तो एक आदमी ने चुपके से दुकान के मालिक को बताया कि यह भाई भीड़ का लाभ उठाएगा और बिना […]

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बिखरे मोती : मन-बुद्धि और चित्त का सौन्दर्य ही आत्मा का सौन्दर्य है:-

मन-बुद्धि और चित्त का, सौन्दर्य मत खोय॥ यह सौन्दर्य अमूल्य है, आत्मा भूषित होथ॥1740॥ भव्यता – सौम्यता और दिव्मता से कौन सुशोभित होते है:- भवन की शोभा भव्यता, सौम्यता साधु की शान । दिव्यता पाने पर लगे , देव तुल्य इन्सान॥174॥ सौम्यता और दिव्यता की जननी कौन ? ऋजुता हृदय में होय तो , सौम्यता […]

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