ओ३म् =========== संसार में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हैं जो अपने आप को धर्म बताते हैं। क्या वह सब धर्म हैं? यह मत-मतान्तर इसलिये धर्म नहीं हो सकते क्योंकि धर्म श्रेष्ठ गुण, कर्म व स्वभाव को धारण करने को कहते हैं। मनुष्य का कर्तव्य है कि श्रेष्ठ व अनिन्दित गुण, कर्म व स्वभावों को जाने व […]
लेखक: मनमोहन कुमार आर्य
ओ३म् मनुष्य जीवन का उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति कर सत्य व असत्य को जानना, असत्य को छोड़ना, सत्य को स्वीकार करना व उसे अपने आचरण में लाना है। सबसे पहला कार्य जो मनुष्य को करना है वह स्वयं को व इस संसार को अधिक सूक्ष्मता से न सही, सार रूप में जानना तो है ही। […]
ओ३म् ========== संसार में अनेक आश्चर्य हैं। कोई ताजमहल को आश्चर्य कहता है तो कोई लोगों को मरते हुए देख कर भी विचलित न होने और यह समझने कि वह कभी नहीं मरेगा, इस प्रकार के विचारों को आश्चर्य मानते हैं। हमें इनसे भी बड़ा आश्चर्य यह प्रतीत होता है कि मनुष्य स्वयं को यथार्थ […]
ओ३म् =========== गुरुकुल पौंधा-देहरादून देश में बालकों के प्रमुख गुरुकुलों में से एक है। इसकी स्थापना 21 वर्ष पूर्व जून, 2000 में हुई थी। हम इस स्थापना के अवसर पर उपस्थित थे और उसके बाद से गुरुकुल के सभी उत्सवों एवं अन्य कार्यक्रमों में सम्मिलित होते रहे हैं। बीच में भी जब मन करता है […]
ओ३म् =========== आर्यसमाज एक वैश्विक धार्मिक एवं सामाजिक संगठन है। धर्म का तात्पर्य सत्याचरण एवं आत्मा की उन्नति से लिया जाता है। आत्मा की उन्नति ज्ञान व सत्य सिद्धान्तों का अध्ययन कर उनका आचरण करने से होती है। सत्य ज्ञान के मुख्य स्रोत ईश्वर प्रदत्त वेदज्ञान की संहितायें व उन पर वैदिक ऋषियों की टीकायें, […]
ओ३म् ============ ऋषि भक्त आर्य विद्वान श्री इन्द्रजित् देव जी आर्यसमाज की लेखों एवं उपदेशों के द्वारा सेवा करने वाले योग्य विद्वान हैं। हम विगत लगभग तीन दशकों से पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख पढ़ते आ रहे हैं। गुरुकुल पौंधा, देहरादून एवं अजमेर के ऋषि मेले में उनके व्याख्यान सुनने का अवसर हमें मिला है। विगत […]
ओ३म् ============ समस्त वैदिक साहित्य में मनुस्मृति का गौरवपूर्ण स्थान है। मनुस्मृति के विषय में महर्षि दयानन्द जी ने अपने सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ में कहा है कि यह मनुस्मृति सृष्टि की आदि मे उत्पन्न हुई है। मनुस्मृति से अधिकांश वैदिक मान्यताओं का प्रकाश होता है। प्राचीन काल में विद्यमान मनुस्मृति वेदानुकूल ग्रन्थ था जो समाज के […]
ओ३म् ========= संसार में ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखने वाले और न रखने वाले दोनों प्रकार के मनुष्य निवास करते हैं। किसी कवि ने तो यहां तक कह दिया है कि ‘खुदा के बन्दों को देखकर खुदा से मुनकिर हुई है दुनिया, कि जिसके बन्दे ऐसे हैं वह कोई अच्छा खुदा नहीं।’ आज के […]
ओ३म् “विश्व के लिए वेदज्ञान की उपेक्षा अहितकर एवं हानिकारक” मनुष्य जीवन को संसार के वेदेतर सभी मत अद्यावधि प्रायः समझ नहीं सके हैं। यही कारण है कि यह जानते हुए कि सत्य एक है, संसार में आज के आधुनिक व उन्नत युग में भी एक नहीं अपितु सैकड़ो व सहस्राधिक मत-मतान्तर प्रचलित हैं जिनकी […]
ओ३म् “मनुस्मृति में किये गये प्रक्षेपों से सनातन वैदिक धर्म को होने वाली हानियां” आर्यजगत् की प्रसिद्ध वैदिक साहित्य के शोध एवं प्रकाशन की संस्था ‘आर्ष साहित्य प्रचार ट्रस्ट, दिल्ली’ द्वारा इतिहास में प्रथमवार दिनांक 26 दिसम्बर, 1981 को प्रक्षेपों से रहित ‘‘विशुद्ध-मनुस्मृति” का भव्य प्रकाशन किया गया था। इस अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ के व्याख्याता, […]