श्रीकृष्णजी कहते हैं कि अर्जुन ! जब देहधारी आत्मा सतोगुण की प्रधानता के काल में देह का त्याग करे तब वह उत्तम ज्ञानियों के निर्मल लोकों को प्राप्त होता है, अर्थात ऐसी स्थिति में आत्मा की सदगति हो जाती है। इसका अभिप्राय है कि किसी के लिए मरणोपरांत हमारा यह कहना कि उसकी आत्मा को […]
लेखक: देवेंद्र सिंह आर्य
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।
गीता के 11 अध्याय में अध्याय में श्रीकृष्णजी ने अर्जुन को स्पष्ट किया कि ये जो हमारे चर्मचक्षु हैं ना-ये हमें इस भौतिक संसार को ही दिखाते हैं और हम ये मान बैठते हैं कि वह दिव्य शक्ति परमात्मा कोई और है, और यह संसार कुछ और है। जबकि इस संसार के रूप में ही […]
एक मनुष्य को नैतिकता और गुण नहीं छोड़ना चाहिए , क्योंकि नैतिकता तथा गुण हीरे तथा रत्नों से भी अधिक मूल्यवान होते हैं । यह मनुष्य को प्रभु प्रिय और लोकप्रिय बनाते हैं और उसके मन को संतुष्टि प्रदान करते हैं। नैतिकता और गुणों के कारण ही एक मनुष्य के अंदर ही प्रभु का अस्तित्व […]
आर्य जगत के सुप्रसिद्ध विद्वान और भजनोपदेशक रहे नत्था सिंह जी ने बहुत सुंदर भजन बनाया है , जिसे वे अक्सर गाया करते थे । उसे मैं यहां पर यथावत प्रस्तुत कर रहा हूं :- गर जन्म लिया है तो तुझे मरना ही पड़ेगा। वह काम किया है तो यह करना ही पड़ेगा। इच्छाओं […]
संसार में जो आया है उसे जाना अवश्य है इसलिए मनुष्य को अपना अंतिम काल अवश्य याद रखना चाहिए । यह ध्यान रखना चाहिए कि समय बहुत तेजी से बीत रहा है , इसलिए समय का मूल्य समझो और कल के ऊपर कोई कार्य न छोड़ना चाहिए। समय रहते समय का मूल्य समझना चाहिए । […]
जो व्यक्ति परमात्मा की भक्ति में लीन हो जाता है , केवल उसी से प्रेम करता है , ऐसी अनन्य भक्ति भावना से उसके अंदर की प्रज्ञा चक्षु खुल जाती है। तब वह प्रत्येक के अंदर एक ही दिव्य ज्योति के दर्शन करता है ।वह अंदर से तृप्त हो जाता है। उसकी कोई इच्छा […]
हम तनिक कल्पना करें कि एक माता की गोद में उसका एक अबोध बच्चा है । मां ने अपने बच्चे को अपने अंक में आलिंगनबद्घ किया हुआ है। मां बहुत ही ममत्व से बच्चे के सिर को सहलाते हुए अपने आंचल से स्तनपान करा रही है। मां अभी दाहिने स्तन से स्तनपान करा रही […]
“जैसे कछुआ अपने अंगों को सब ओर से सिकोड़कर अपने खोल के अंदर खींच लेता है ,उसी प्रकार जब कोई पुरुष इंद्रियों के विषयों में से अपनी इंद्रियों को खींच लेता है, तब समझो कि उसकी प्रज्ञा बुद्धि स्थिर हुई । ” ( ५८ ) इस श्लोक में कछुए का दृष्टांत देकर संसार के […]
श्रीमदभगवत गीता के पहले अध्याय में कर्म योगी श्री कृष्ण जी महाराज ने निम्न प्रकार उपदेश दिया है ;- कुल के क्षय हो जाने पर उनके जो सनातन धर्म है, उनकी जो सनातन परंपराएं हैं ,सदियों के अनुभव के आधार पर कुल की जो मर्यादा बन चुकी हैं ,वे नष्ट हो जाती हैं ,जब […]
एक असत्य को सुनते – सुनते परेशान हो चुके हैं कि प्रयागराज में तीन नदियों का संगम है , इसलिए उसको त्रिवेणी कहते हैं। क्या यह सत्य है ? – बिल्कुल नहीं। इस किंवदंती के अनुसार गंगा , जमुना और सरस्वती का संगम प्रयागराज में बताया जाता है । यद्यपि ऐतिहासिक प्रमाण कुछ इस प्रकार […]