Rastriy Vimrsh Narendra Singh: * शबरी एक आदिवासी भील की पुत्री थी। देखने में बहुत साधारण, पर दिल से बहुत कोमल थी। इनके पिता ने इनका विवाह निश्चित किया, लेकिन आदिवासियों की एक प्रथा थी की किसी भी अच्छे कार्य से पहले निर्दोष जानवरों की बलि दी जाती थी। इसी प्रथा को पूरा करने के […]
श्रेणी: कहानी
विवेक दर्शन पत्रिका जब प्यार किया तो डरना क्या – प्यार ..किस किस से….. प्रतापसिंह इस्लाम की खूबसूरती इसमें है कि पूरा कुनबा एक साथ एक ही “थाली” में खाये और उपयोग करे भारतीय इतिहास में जब भी अमर प्रेम कहानियों का जिक्र होता है तो सलीम और अनारकली का नाम जरूर आता है। इस […]
आशावादी होकर जियें अब गरीबी से रमेश का मन टूट चुका था। वह जीवन संग्राम में एक निराश योद्धा की भांति दिखाई दे रहा था। उसे लगता था कि अब उसका जीवन व्यर्थ है। क्यों नहीं उसे अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेनी चाहिए? कहते हैं मां गरीबी में व्यक्ति की सबसे बड़ी मित्र […]
सोहन के पिता का देहांत उस समय ही हो गया था जब वह माँ के गर्भ में था । माँ ने उसे बड़े लाड प्यार से पाला – पोसा।जल्दी ही वह जवान हो गया था। पिता का साया ना होने के कारण उसके कदम भटक गए और राहजनी करने लगा। एक दिन एक व्यक्ति अपने […]
संजय पंकज चिड़ियों की चहक से नींद खुली तो आंखों को मलते हुए अपने छोटे से बगीचे में आ गया। अभी सूरज निकला नहीं था, पूरब का आसमान लाल भी नहीं हुआ था, कुछ तारे टिमटिमा रहे थे तब भी दिशाओं में धुंध उजाला फैल गया था, सामने का सब कुछ साफ-साफ दिखने लगा […]
बीते समय की बातें हो चुकी हैं. माँ के पल्लू का सिद्धाँत … माँ को गरिमामयी छवि प्रदान करने के लिए था. इसके साथ ही … यह गरम बर्तन को चूल्हा से हटाते समय गरम बर्तन को पकड़ने के काम भी आता था. पल्लू की बात ही निराली थी. पल्लू पर तो बहुत कुछ […]
रवींद्र श्रीवास्तव मेरी उंगली पकड़ के चलते थे अब मुझे रास्ता दिखाते हैं मुझे किस तरह से जीना है मेरे बच्चे मुझे सिखाते हैं… दिल्ली हाईकोर्ट ने जब ब्लैक फंगस की दवा की किल्लत के संदर्भ में कहा कि बुजुर्गों ने अपना जीवन जी लिया। युवा देश के भविष्य हैं, उन्हें प्राथमिकता से बचाया जाना […]
“तिल्ली से सीखे दिल्ली” कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर भारत में अपने चरम पर है। संक्रमण का वक्र इस बार कितना ऊपर उठेगा इसके केवल अनुमान ही लगाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जरूरी दवाइयों ऑक्सीजन की भारी किल्लत है ऐसे में संक्रमित व उनके तीमारदारों की चिंता रोष वाजिब है दिल्ली के […]
(दार्शनिक विचार) #डॉ_विवेक_आर्य मैंने अपने जीवन में 10 वर्ष विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में काम किया है। इस कार्य को करते हुए मुझे अनेक अच्छे-बुरे अनुभव हुए। सबसे अधिक बुरा तब लगता था जब मैं किसी जवान युवक-युवती को नशे के कारण अस्पताल में भर्ती होते हुए देखता था। इनमें से अनेक समृद्ध […]
‘दैनिक ट्रिब्यून’ में मेरी पुस्तक ‘भारत के स्वर्णिम इतिहास के कुछ पृष्ठ’ – की समीक्षा. शक्ति वर्मा ‘भारत के स्वर्णिम इतिहास के कुछ पृष्ठ’ पुस्तक इतिहास के पुनर्लेखन की एक कोशिश के रूप में प्रस्तुत की गई है। भारत में एक वर्ग है जो मानता है कि देश के इतिहास के साथ न्याय नहीं किया […]