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कुंडलियां … 40 धान खेत में रोपना……

118 धन रखन और दान से, होता है अभिमान। बोले मुनि सुनो मैत्रेयी ! रखना इतना ध्यान।। रखना इतना ध्यान, धन से ना अमृत मिलता। धन से ना ज्ञान मिलै, ना ही ईश्वर मिलता।। बहुत किए प्रयास जगत में,कितने किए जतन। सत्यानंद के आगे , व्यर्थ लगा ये भौतिक धन।। 119 धान खेत में रोपना, […]

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कुंडलियां … 39 चातक पगला हो रहा….

115 जीवन के हर दौर में, अटल धर्म बस एक। एक ही सिरजनहार है, पालनकर्ता एक।। पालनकर्ता एक, भरण पोषण वही करता। वही जगत का संहारक है, वेद्धर्म है कहता।। सत्य सार है जीवन का, समझै ना कोई जन। हर क्षण है बेमोल, अनमोल मिला है जीवन।। 116 चातक पगला हो रहा, बढ़ती जाती प्यास। […]

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कुंडलियां … 38 वेद धर्म सबसे बड़ा…..

112 तन उजला मन मैल में, कबहुं ना भक्ति होय। बगुला भक्ति इसको कहें, बेड़ा पार ना होय।। बेड़ा पार ना होय, भंवर में काटे चक्कर। मतिमूढ पाखंडी बनकर,भीत में मारे टक्कर।। भक्ति सफल तब होती, रहिए प्रभु की गैल में। तब तक नहीं जब तक, तन उजला मन मैल में।। 113 चादर भीगी जात […]

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कुंडलियां … 37 यज्ञ रूप भगवान से ……

109 त्याग में आनंद है, राम लियो वनवास। त्याग दियौ संसार को, छाय गयौ मधुमास।। छाय गयौ मधुमास , निरंतर हो अमृत वर्षा। महावीर हनुमंत मिलें, देख-देख दिल हर्षा।। लेकै वानर सेना ,रावण कियौ खत्म मतिमंद। धरती महकी सारी, बताया त्याग में आनंद।। 110 कृष्ण ने संसार को, दियौ अनोखा ज्ञान। निष्काम कर्म करते चलो, […]

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कुंडलियां … 36 यही जगत कौ नीम ….

106 खर्च करो वैसा सुजन, जैसी आमद होय। फैला उतने पांव भी, जितनी चादर हाय।। जितनी चादर होय, मन भी रहता चंगा। मन में है संतोष , तो मिले कठौती गंगा।। संतोषी बन जीवन जियो, हो आदर्श ऐसा। जितना ईश्वर ने दिया, खर्च करो तुम वैसा।। 107 जब तक तन में जान है, भरी ऊर्जा […]

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कुंडलियां … 35 नेता ही करवाते दंगे ,……..

103 वोटों के इस राज में, हो रह्यौ उल्टा खेल। घोड़े गधा सब एक हैं, कियौ अनोखा मेल।। कियौ अनोखा मेल, सब कुछ हुआ बिकाऊ। नोटों से सत्ता मिले, हो गई जमीर बिकाऊ।। नोट वोट का खेल निराला, लोकतंत्र में आज। नहीं देश की चिंता, बन्धु ! वोटों के इस राज ।। 104 धनबल चलता […]

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कुंडलियां … 34 , विद्या कौ कर दान तू,……

100 दानी उसे मत मानिए, करता फिरै बखान। एक हाथ दानी बने, दूजा हो अनजान।। दूजा हो अनजान, दान की विधि यही है। दान समय नीचे नैन, उत्तम सोच यही है।। खूब करे बखान, बकता है मन अभिमानी। मूर्ख ऐसा नर है , मैं ना मानूं उसको दानी।। 101 नेकी कर दरिया बहा, यही सुजन […]

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कुंडलियां … 33 विषधर मजहब होत है…….

97 देश ,न्याय ,सत् धर्म से, करो सत्य सरोकार। शुद्धि करके खोजिए, जीवन का आधार।। जीवन का आधार , मनुष्यता खोज रही। दुर्गुणी मनुज दानव होता, इतना ही सोच रही।। सड़ गया व्यक्तित्व , आती दुर्गंध इनके कर्म से । क्या समझे ऐसा मानव, देश, न्याय ,सत धर्म से ? 98 विषधर मजहब होत है, […]

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कुंडलियां … 32 …..कैसे जननायक हैं ?

94 धोखे और फरेब से, करै जो भ्रष्टाचार। नेता उसको मानिए, करै जो अत्याचार।। करै जो अत्याचार ,तिजोरी धन से भरता। जनता का पीवे खून,दया जरा ना करता।। नेता नाटककार है पूरा ,बात करे रो-रोके। नेता तो उसको कहते,भरे हृदय में धोखे।। 95 देश की चिंता है नहीं, करें देश की बात। मां की खींचें […]

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कुंडलियां … 31 नेता बनता खटमल…….

91 खटमल की जूं चूसते, देश का नेता खून। फितरत खूनी एक सी, एक ही जैसे गून।। एक ही जैसे गून, बड़े दोनों ही निर्मम। पीकर खून मानव का, रहते मस्त हरदम।। खटमल ही होता नेता, उसको हम पूजते। खुजली करते नेता, खटमल की जूं चूसते।। 92 है गाली सबसे बड़ी, जो ‘नेता’ कह जाय। […]

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