Categories
कविता

कुंडलियां … 39 चातक पगला हो रहा….

       115

जीवन के हर दौर में, अटल धर्म बस एक।
एक ही सिरजनहार है, पालनकर्ता एक।।
पालनकर्ता एक, भरण पोषण वही करता।
वही जगत का संहारक है, वेद्धर्म है कहता।।
सत्य सार है जीवन का, समझै ना कोई जन।
हर क्षण है बेमोल, अनमोल मिला है जीवन।।

       116

चातक पगला हो रहा, बढ़ती जाती प्यास।
योग नहीं नक्षत्र का, करे बदरि से आस।।
करे बदरि से आस , नाहक इज्जत खोता।
दिखा दीनता अपनी,बिरथा ही वह रोता।।
मत बनो दीन जगती में,जन्म सुधारो अगला।
दीनहीन मत बनो, जग कहेगा ‘चातक पगला’?

            117

खुद्दारी को बेचकै , बन जाता जो दीन।
पावे नहीं सम्मान वो , और हो जाता बेदीन।।
और हो जाता बेदीन,भ्रष्ट पथ से हो जाता।
लोग करें उपहास, सबका बन जाय तमाशा।।
नहीं सार्थक जीवन ऐसा, करे खुद से गद्दारी।
जिसकी मृत्यु हरपल होवे, मिले नहीं खुद्दारी।।

दिनांक : 12 जुलाई 2023

Comment:Cancel reply

Exit mobile version