139 मूर्ख बन इतरा रहा , माने ना मेरी बात। कुछ भी तेरा है नहीं, ना जाएगा साथ।। ना जाएगा साथ , छूटें पत्नी और बेटा। कुटुंब कबीले छूटें, जिनके ऊपर ऐंठा।। अकड़ छूटेगी तेरी, होगी उनसे अनबन। जिनमें झूठा फंसा हुआ है, तू मूर्ख बन।। 140 चिंतन जिसका ऊंच है, होता वही महान। आदर्श […]
श्रेणी: कविता
136 प्राण, अपान और व्यान हैं, संग में समान, उदान। पांच प्राण बतलाए दिए, तू जान सके तो जान।। तू जान सके तो जान , नाग, कूर्म और कृकल । पांच ही उप प्राण हैं , साथ में देवदत्त धनंजय।। प्राण होवें जिसके वश में, हुआ उसका कल्याण। प्राण जाने से पहले, तू भी कर […]
133 स्थावर जंगम जगत का, सूर्य आत्मा होय। वेद यही बतला रहे, ना इसमें संशय कोय।। ना इसमें संशय कोय, जग विज्ञान से चलता। छुपके बैठा संचालक , इसमें चाबी भरता।। बिन सूर्य चल नहीं सकता, काम जगत का। कहा आत्मा वेद ने, स्थावर जंगम जगत का।। 134 प्रजापति यह यज्ञ है, सभी का पालनहार […]
130 बादल बूढ़े क्वार के, गरज रहे बेकार। पास नहीं एक बूंद भी, दिखा रहे अहंकार।। दिखा रहे अहंकार, ना कोई मोल लगावै। खांसे और मठारे बूढ़ा ,सबको आंख दिखावे।। ना आंख उठाके देखे कोई, सब करते घायल। इसी हालत में रहें, बूढ़ा और क्वार का बादल।। 131 भक्ति किये से होत हैं , सभी […]
127 प्रेम गली देखी नहीं, करें प्रेम की बात। जिससे है परिचय नहीं, करते उसकी बात।। करते उसकी बात, और ना तनिक लजाते। जीवन करें बर्बाद , प्रेम को समझ न पाते।। हांसी आती मुझे देख, इन जग वालों का प्रेम। प्रेमदेवता बनके घूमें, पर समझ ना पाए प्रेम।। 128 मैंने पूछा री सड़क ! […]
124 विश्व गुरु भारत बने, सबकी सोच समान । चमक उठे संसार में , भारत मां की शान।। भारत मां की शान, अपने शासक होवें। भारत का विस्तार करें, सारे पापों को धोवें।। फिर से हो भोर हमारी, फिर से हों यज्ञ शुरू। धरा आर्यों की होवे , भारत बने विश्व- गुरु।। 125 सुख – […]
121 चमक दमक फीकी पड़े, बन्द होय बाजार। व्यापारी उठ जाएंगे, समेट लेंय व्यापार।। समेट लेंया व्यापार, रात काली पसरेगी । बंद हो पछवा बयार , बयार बेसुरी बहेगी।। समय पर चेत बावरे, ये बात है मेरी नीकी । सही वक्त आने पर,चमक-दमक हो फीकी।। 122 अहंकार मोह से ऊपजे, अहम से जन्मे काम। काम […]
118 धन रखन और दान से, होता है अभिमान। बोले मुनि सुनो मैत्रेयी ! रखना इतना ध्यान।। रखना इतना ध्यान, धन से ना अमृत मिलता। धन से ना ज्ञान मिलै, ना ही ईश्वर मिलता।। बहुत किए प्रयास जगत में,कितने किए जतन। सत्यानंद के आगे , व्यर्थ लगा ये भौतिक धन।। 119 धान खेत में रोपना, […]
115 जीवन के हर दौर में, अटल धर्म बस एक। एक ही सिरजनहार है, पालनकर्ता एक।। पालनकर्ता एक, भरण पोषण वही करता। वही जगत का संहारक है, वेद्धर्म है कहता।। सत्य सार है जीवन का, समझै ना कोई जन। हर क्षण है बेमोल, अनमोल मिला है जीवन।। 116 चातक पगला हो रहा, बढ़ती जाती प्यास। […]
112 तन उजला मन मैल में, कबहुं ना भक्ति होय। बगुला भक्ति इसको कहें, बेड़ा पार ना होय।। बेड़ा पार ना होय, भंवर में काटे चक्कर। मतिमूढ पाखंडी बनकर,भीत में मारे टक्कर।। भक्ति सफल तब होती, रहिए प्रभु की गैल में। तब तक नहीं जब तक, तन उजला मन मैल में।। 113 चादर भीगी जात […]