88 नाश होय उस देश का , राजा माने सीख। मेल जोल योगी करे, छोड़-छाड़ के भीख।। छोड़-छाड़ के भीख , महल में डेरा डाले। नष्ट होता ऐसा योगी, जब चाहे आजमा ले।। ऐसे योगी पर कसते , शिकंजा जग के पाश। गलत सम्मति से राजा का हो जाता है नाश।। 89 लाड प्यार मत […]
श्रेणी: कविता
85 सुख देते संसार के, विषय भोग कछु नाय। जिसको सुख हम मानते, वह कहां से आय ? वह कहां से आय , करते रहे हम माथापच्ची। जिन बातों में सुख बतलाया, हुई नहीं सच्ची।। जितने भोग्य पदारथ हैं, हमें सारे ही दुख देते। व्यर्थ जीवन बिता दिया, विषय हमें सुख देते।। 86 संसार के […]
82 आनन्द बसे संतोष में, मानव भयौ मतिमूढ़। धन माया को जोड़कर , वहां रहयौ है ढूंढ।। वहां रहयौ है ढूंढ, पत्थर बुद्धि पर पड़ गए। गिद्ध के घर मांस ढूंढते, सब मूरख अड़ गए।। इसी को कहते बालकपन, यही होय मतिमंद। विवेकपूर्ण बुद्धि से ही, मिलता सत्य आनंद ।। 83 चिकने पत्थर खोजकै , […]
79 साधु की संगत भली, करती भव से पार। जो कुसंगत में फंसे, पाता कष्ट अपार।। पाता कष्ट अपार ,कभी ना चैन से सोता। हर क्षण रहता व्याकुल मन ही मन रोता।। कर्तव्यपथ दिखावे साधु, नई चढ़ाता रंगत। जन्म सफल हो जाए,मिले साधु की संगत।। 80 साधु की संगत मिले, मन पावै संतोष। धीर,वीर, गंभीर, […]
76 आंधी चढ़ी आकाश में, बोले ऊंचे बोल। पंख मेरे मजबूत हैं, कौन सकेगा तोल ? कौन सकेगा तोल ? करूं मैं मटियामेट। मेरे सामने जो भी आता ,चढ़ता मेरी भेंट।। न जाने कितने नष्ट किए, मैंने गढ़ और गढ़ी। हो गए सारे खाक , जब मेरी आंधी चढ़ी ।। 77 दो दिन की आंधी […]
73 जन्मदिवस कहे कान में जगत के धंधे छोड़। कहां कीच में फंस रहा , दुनिया से मुंह मोड़।। दुनिया से मुंह मोड़, यहां नहीं कुछ भी तेरा। उड़ने पर इस डाल से, फिर होगा कहां बसेरा ? हावी तुझ पर हो रही, स्याह रात की मावस।। रजनी को दूर हटाना, बतलाता जन्मदिवस।। 74 निरोग […]
70 ज्ञान ध्यान में जो रमे, सच्चा मानुष जान। लाख बरस की साधना, उसको हीरा मान।। उसको हीरा मान, जगत में बने कीमती। साधना का मोल बताता कितनी ऊंची भक्ति? ना भरमता जग के अंदर, ना करता अभिमान। सही राह पे चलता, तपा तपाया उसका ज्ञान।। 71 भट्टी में तपता वही, जिसे कुंदन की चाह। […]
67 अहंकार सबसे बुरा, करे मनुज का नाश। बड़े बड़े रावण गए, बुरा कहे इतिहास।। बुरा कहे इतिहास, जगत की खाते गाली। मानवता से रिश्ता होता ज्यों कीड़ा व नाली।। इतने वर्ष बाद भी रावण, मार रहा फुंकार । राम नाम के फूल हैं, रावण को अहंकार ।। 68 राट- विराट – सम्राट सब, चढ़ […]
64 काम कामना हैं बुरे, कह गए संत फकीर। कामना मारे है हमें, काम के मारें तीर।। काम के मारें तीर, करें घायल गहरा। आंखों से कर देते अंधा, कानों से बहरा।। जैसे ही दिखे मेनका, जागृत होता काम। बड़े बड़ों को आसन से पटका करता काम ।। 65 त्रिया की संगत करे, वही काम […]
60 वैरी भारी क्रोध है,करता सारा नाश। मति को करता भंग है, करता सत्यानाश।। करता सत्यानाश, जगत में होती ख्वारी। घटता है व्यक्तित्व ,पतन की हो तैयारी।। क्रोध के कारण नहीं रहे, कहलाते सम्राट। खोजे से नहीं दिखते, जिनके हमको ठाट।। 61 बुद्धि जिसकी भंग है, वही क्रोध का दास। रावण जैसे ना रहे, मिट […]