Categories
कविता

कुंडलियां … 38 वेद धर्म सबसे बड़ा…..

            112

तन उजला मन मैल में, कबहुं ना भक्ति होय।
बगुला भक्ति इसको कहें, बेड़ा पार ना होय।।
बेड़ा पार ना होय, भंवर में काटे चक्कर।
मतिमूढ पाखंडी बनकर,भीत में मारे टक्कर।।
भक्ति सफल तब होती, रहिए प्रभु की गैल में।
तब तक नहीं जब तक, तन उजला मन मैल में।।

          113

चादर भीगी जात है , कंबली भारी होय।
दिन ढलता हुआ देखकै,दिया कबीरा रोय।।
दिया कबीरा रोय, मन से हूं मैं प्यासा।
सूख रहा है झरना ,बढ़ती जाय हताशा।।
जब से लगा बटोरने, मैं जग वालों की बात।
अपने सच को जानकर ,चादर भीगी जात।।

        114

वेद धर्म सबसे बड़ा, इससे बड़ा न कोय।
इसका चिंतन जी करे, स्वर्ण से कुंदन होय।।
स्वर्ण से कुंदन होय, बढ़ती कीमत भारी।
इसके उल्टा चले, समझो उसकी मत मारी।।
मन को उजला करत है,और धोने का है कर्म।
यही उत्तम जीवन पथ,जिसे कहता वेद धर्म।।

दिनांक : 12 जुलाई 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य

Comment:Cancel reply

Exit mobile version