किसीने पूछा कि ख्वाब क्या है??… बस वही जो रातों को सोने ना दे…! किसी ने पूछा कि आराम क्या है??… बस वही जो माँ के आंचल में सोने से मिले…! किसी ने पूछा कि सुकून क्या है??… बस वही जो नन्हे से बच्चे की आँखों में दिखे…! किसी ने पूछा कि ख्वाइशें क्या है??… […]
श्रेणी: कविता
!! ★★★★★★★★★★ जनाब एक ही तो जिंदगी है मेरी इसे भी दूसरो की शर्तो पर जी लूं क्या? दूसरो के पद चिन्हों पर चल लूं क्या ? दूसरो की बातों तक सिमट जाऊं क्या? खोल के पर अब आसमां में उड़ना है मुझे! अपने चांद से खुद बातें करना है मुझे! मेरे कदमों के निशां […]
गीत कौन है ऐसा जगत में, जो न करता काम अपने! सूर्य अपना अक्ष पकड़े, सर्वदा गतिमान रहता। और ऊर्जा की उदधि को, सर्व हित में दान करता। ग्रीन हाउस हम बनाकर, फिर लगे दिन-रात तपने। कौन है………………..।। चाँद, तारे, व्योम, धरती, सब जुटे निज काम में हैं। साधु, विज्ञानी, गृही जन, कर्मरत अठ याम […]
हे सत्ता के गलियारों में, दुम हिलाने वालों। हे दरबारी सुविधाओं की, जूठन खाने वालों।। तेरे ही पूर्वज दुश्मन को, कलम बेचकर खाए। तेरे ही पूर्वज सदियों से, वतन बेचते आए।। कलम बिकी तब गोरी के साथी, जयचंद कहाए। कलम बिकी तब राणा साँगा, बाबर को बुलवाए।। बिकती कलमों ने पद्मिनियों को, कामातुर देखा। बिकती […]
लेखक – स्वामी भीष्म जी महाराज घरोंडा वाले जो जगाने आए थे वो तो जगा कर चल दिए, लुप्त वेदों का खजाना था बता कर चल दिये । जब चले गुजरात से कितना भंयकर वक्त था । जैनी, बोद्ध, ईसाई, मुस्लिम का सामना सख्त था । था परतन्त्र देश भारत ताज था ना तख्त था। […]
अनुपम छाया है पिता, रहे हमारे साथ । रक्षा करता है सदा सिर पर रखकर हाथ ।।1।। आसमान से उच्च है जो भी मिले आशीष । हम सबका इसमें भला, नित्य झुकावें शीश।।2।। जब तक तन में प्राण है, जिव्हा मुख के बीच। करो पिता का कीर्तन, समझो निज जगदीश ।।3।। बाती में ज्यों तेल […]
238 खाया जहां का अन्न है, पुण्य धरा और धाम। जब तक हम जग में जिएं, करें देश के काम।। करें देश के काम , अपना देश सुधरता। भूमंडल में खुशबू फैले, परिदृश्य बदलता।। पूर्वजों से अपने हमने, यही संदेश है पाया। ऋण होता उस माटी का,अन्न जहां का खाया।। 239 दोहराते संकल्प हम, अखंड […]
235 भारत में भारत बसे, लेय विशाल स्वरूप। चक्रवर्ती सम्राट हों , वही पुराने भूप।। वही पुराने भूप , फिर तक्षशिला नालंदा हों। हमसे लेकर ज्ञान, ना कोई कभी शर्मिंदा हो।। सारे भूमंडल को लोग कहें , फिर से भारत। सब भेदों को, समूल मिटा दे अपना भारत।। 236 ‘नवभारत’ कैसा बना, जान गये सब […]
232 तेज ,क्षमा और धैर्य, वैरभाव का त्याग। अहंकार से दूर हो, उसका दिव्य स्वभाव।। उसका दिव्य स्वभाव, आशीष देव का। मानव वही बना करता , आदर्श देश का।। राष्ट्रवंदना सिखिलाता है, मेरा भारत देश। जिसने समझा ‘भारत’, मिला उसी को तेज।। 233 समझो अपने देश को, दुनिया का सिरमौर। रहा बांटता ज्ञान को, बना […]
229 दूर नहीं वह पास है, क्यों खोजे नादान ? तेरा मालिक घट बसे, तू नाहक है परेशान।।7 तू नाहक है परेशान , देख उसे अंतर्मन में। वह निकट से निकट , बसा हुआ है मन में।। निकट का आभास , मिले भक्ति में भरपूर। ज्ञानी पिता सर्वज्ञ को, कहते- दूर से भी दूर। 230 […]