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कविता

अध्याय … 80 मेरी भारत माता,…….

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खाया जहां का अन्न है, पुण्य धरा और धाम।
जब तक हम जग में जिएं, करें देश के काम।।
करें देश के काम , अपना देश सुधरता।
भूमंडल में खुशबू फैले, परिदृश्य बदलता।।
पूर्वजों से अपने हमने, यही संदेश है पाया।
ऋण होता उस माटी का,अन्न जहां का खाया।।

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दोहराते संकल्प हम, अखंड बने निज देश।
दुनिया का नेता बने, दे अनुपम संदेश।।
दे अनुपम संदेश , ध्वनि वेदों की गूंजे।
वेदमंत्र के द्वारा , आवाहन हों फिर से ऊंचे।।
‘श्रेष्ठ’ हमारा देश है , हम भी ‘श्रेष्ठ’ माने जाते।
हम आर्यों की संतति, संकल्प यही दोहराते।।

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माता भारत है मेरी, गावे गीत ‘राकेश’।
मां के हम सब हैं ऋणी, है वेदों का संदेश।।
है वेदों का संदेश, ऋषि हमें समझाते आए।
कृतज्ञ रहो उसके प्रति, जिसके हो तुम जाए।।
जिसका खाया अन्न , गीत मैं उसके गाता।
अनुपम और निराली जग में ,मेरी भारत माता।।

दिनांक : 26 जुलाई 2023

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