गुरु गोविन्द सिंह और जफरनामा का सच (गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर विशेष रूप से प्रचारित) गुरु गोविन्द सिंह जी एक महान योद्धा होने के साथ साथ महान विद्वान् भी थे. वह ब्रज भाषा, पंजाबी, संस्कृत और फारसी भी जानते थे. और इन सभी भाषाओँ में कविता भी लिख सकते थे. जब औरंगजेब […]
श्रेणी: इतिहास के पन्नों से
श्रीनगर (गढ़वाल), २८ सितम्बर (वार्ता)। कुतुब मीनार का असली नाम ‘विष्णुध्वज’ है। इसका निर्माण सम्राट समुद्र गुप्त ने कराया था न कि कुतुबुद्दीन ए’गक ने, जैसा कि आमतौर पर माना जाता है बिहार विश्वविढ्यालय के प्रां. डी. त्रिषंदी का दाषा है कि यह मीनार समुद्र गुप्त द्ववारा निर्मित बंधशाला की केन्द्रीय मीनार थी । कुतुब […]
लोक कथाओं में नियति प्रधान, व्यक्ति प्रधान, समाज प्रधान एवं जाति प्रदान विशेषणों का आधिक्य देखने को मिलता है। कुछ रचनाएं व्यक्तिविशेष के माध्यम से उत्पन्न होती है तो कुछेक रचनाओं को जनसमुदाय द्वारा यथावत प्रस्तुत करने का चलन रहा है।व्यक्तिप्रधान रचनाओं का जन्म किसी कवि,लेखक की कृतियों-रचनाओं को आधार माना गया है।लोककथायें किसी समाज-जाति […]
उसके घोड़े समुद्र का पानी पीते थे, अर्थात वह समुद्रों का भी स्वामी था, वह पूरी धरती ही नही, समुद्र पर भी राज करता था। क्षत्रप शक विदेशी राजा नेहपान के हाथों उसके पिता की हत्या हुई, वह बालक इतना शिशु था, की राजपाठ भी माता गौतमी ने संभाला… लेकिन उस वीरमाता ने अपने पुत्र […]
पत्र जो बांह फडका दे ! -अरुण लवानिया औरंगजेब छत्रपति शिवाजी महाराज से इतना आतंकित था कि शायस्ता खान और अफजल खान के असफल हो जाने के बाद उसने आगरे के महाराज जय सिंह जिनके नाम पर जयपुर बसा है को बरगलाकर तैयार कर लिया कि वो दक्षिण जाकर शिवाजी को बंदी बनाकर या मारकर […]
आज लाहिड़ी पर्व है। इस पर उसे हमारे इतिहास के एक अमर नायक का विशेष संबंध है। आइए विचार करें इतिहास के उस अभिनंदनीय व्यक्तित्व के जीवन वृत्त पर जिसने अपने सत्कार्यों के अपने काल में यश प्राप्त किया और लोगों ने उसके सत्कृत्यों का वंदन करते हुए उसे अपना पूजनीय चरित्र बना लिया। इसे […]
स्वामी दयानंद जी महाराज के जीवन पर यद्यपि बहुत कुछ लिखा जा चुका है पर उनसे जुड़ी हुई कई ऐसी पहेलियां आज भी इतिहास के लिए कौतूहल का विषय बनी हुई हैं ,जिनका उत्तर खोजा जाना समय की आवश्यकता है। इनमें से सबसे बड़ी पहेली है कि स्वामी दयानंद जी महाराज 1856 से 1860 के […]
दैनिक वीर अर्जुन दिल्ली 9.4.61 में प्रकाशित श्री दीवान अलखधारी जी का लेख, पृ. 9 – -आचार्य सत्यप्रिय शास्त्री, हिसार-द्रष्टव्य कालान्तर में महर्षि के देशभक्ति से भरे हुए विचारों से भारत का बच्चा-बच्चा जग गया। इस कारण वायसराय लॉर्ड नॉर्थ ब्रुक को लन्दन हाउस में सिफारिश करनी पड़ी कि अब हमें भारत को छोड़ देना […]
ईरानी आक्रमण जिस समय मगध के राजा अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे उसी समय ईरान के हखमानी शासक भी अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे। भारत पर आक्रमण करने में प्रथम सफलता दारा प्रथम (दारयबहु) को प्राप्त हुई थी जो साइरस का उत्तराधिकारी था। दारा प्रथम के तीन अभिलेखों बेहिस्सून, पर्सिपोलिस एवं […]
स्वामी दयानंद जी महाराज के जीवन पर यद्यपि बहुत कुछ लिखा जा चुका है पर उनसे जुड़ी हुई कई ऐसी पहेलियां आज भी इतिहास के लिए कौतूहल का विषय बनी हुई हैं ,जिनका उत्तर खोजा जाना समय की आवश्यकता है। इनमें से सबसे बड़ी पहेली है कि स्वामी दयानंद जी महाराज 1856 से 1860 के […]