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इतिहास के पन्नों से

प्राचीन भारत में विदेशी आक्रमण

ईरानी आक्रमण

जिस समय मगध के राजा अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे उसी समय ईरान के हखमानी शासक भी अपने राज्य का विस्तार कर रहे थे।

भारत पर आक्रमण करने में प्रथम सफलता दारा प्रथम (दारयबहु) को प्राप्त हुई थी जो साइरस का उत्तराधिकारी था।

दारा प्रथम के तीन अभिलेखों बेहिस्सून, पर्सिपोलिस एवं नक्श-ए-रूस्तम से यह सिद्ध होता है कि, उसी ने सर्वप्रथम सिन्धु नदी के तटवर्ती भारतीय भू-भागों को अधिकृत किया था।

उसने पंजाब, सिंधु नदी के पश्चिम के क्षेत्रों और सिंध के कुछ क्षेत्रों को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया। यह क्षेत्र फारस (ईरान) का बीसवाँ प्रान्त या क्षत्रपी बन गया। फारस साम्राज्य में कुल 23 प्रान्त थे।

भारतीय छत्रपी में सिंधु, पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त व पंजाब के सिंधु नदी का पश्विमी भाग सम्मिलित था।

ईरानी लिपिकार (कातिब) भारत में लेखन का एक विशेष रूप ले आए, जो आगे चलकर खरोष्ठी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह लिपि अरबी की तरह दायों से बायीं ओर लिखी जाती थी।

पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त में ईरानी सिक्के भी मिले हैं, जिनसे ईरान के साथ व्यापार होने का संकेत मिलता है।

सिकंदर के आक्रमण के समय भारत के स्वतंत्र राज्य

तक्षशिला,पुरु,आस्पेशियन, गुरेअना,अरसेक्स,अगलसोई
,ग्लौगनिकाय,मोसिकनोस,फेगेला, फैथियंस,आक्सीकनोस,सूद्रक,प्यूकेलाओरिस,सम्बोस,सिबोई,ओरोडिजोई,आथस्टगोई,अद्देस्ततिई,सोफाइटस,पटलेन(पाटल),अस्सकेनोस,सोद्राई,गांदारिस,मलोई,जाधोगी,अभिसार,मसनोई,पंजाब व सिंध के क्षेत्र में 28 स्वतंत्र राज्य थे।

यूनानी आक्रमण

सिकंदर

सिकंदर मेसीडोनिया के क्षत्रप फिलिप-11 का पुत्र था। सिकंदर के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर भारत अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था, जिनमें कुछ राज्य गणतंत्रात्मक एवं राजतंत्रात्मक थे, जिन्हें अलग-अलग जीतना सिकंदर के लिए आसान था।

सिकंदर संक्षिप्त जीवन वृतांत

जन्म 356 ई पू

पिता फिलिप द्वितीय (मकदूनिया का शासक)

सिंहासनारोहण 336 ई. पू. (20 वर्ष की उम्र में)

ईरानी युद्ध में व्यस्तता 334-330 है पू

भारत विजय प्रस्थान 326 ई. पू

भारत से स्वदेश प्रस्थान 325 ई. पू.

भारत में रहने की अवधि 19 महीने

मृत्यु – 323 ई. पू. बेबीलोन (32 वर्ष)

सिकंदर यूनान के राज्य मकदूनिया का शासक था। वह अपने पिता की मृत्यु के बाद 336 ई. पू. में गद्दी पर बैठा। उसने काबुल व सिंध के मध्य सिकंदरिया नामक नगर की स्थापना की।

सिकंदर के गुरु अरस्तू थे। अरस्तू (384 ई.पू-322 ई.पू) यूनानी दार्शनिक थे। जो प्लेटो के शिष्य थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था। अरस्तू ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की थी।

सिकंदर ने सिर्फ एशिया माइनर (तुकों) और इराक को ही नहीं बल्कि ईरान को भी जीत लिया। ईरान से यह भारत की ओर बढ़ा।

इतिहास के पिता कहे जाने वाले हेरोडोटस और अन्य यूनानी लेखकों ने भारत का वर्णन अपार सम्पत्ति वाले देश के रूप में किया था। इसी वर्णन को पढ़कर सिकंदर भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित हुआ था।

ईसा-पूर्व चौथी सदी में विश्व पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए यूनानियों और ईरानियों के मध्य संघर्ष हुए। सिकंदर के नेतृत्व में यूनानियों ने आखिरकार ईरानी साम्राज्य को नष्ट कर दिया। जिसके पश्चात् सिकंदर भारत की ओर बढ़ा।

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