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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

हिन्दू क्रांति के बन गये थे विभिन्न केन्द्र

1857 ई. की क्रांति की बात तो हमने सुनी है कि उस समय किस प्रकार क्रांति के विभिन्न केन्द्र देश में बन गये थे? इस रोमांचकारी घटना से भी हम लोग परिचित ना होते, यदि उसके विषय में स्वातंत्रय वीर सावरकर जैसे लोग हमें ना बताते कि यह विद्रोह नही, अपितु भारतीयों का स्वातंत्रय समर […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

हिन्दू शक्ति ने बढ़ाई दिल्ली की मुस्लिम राजनीति में रूचि

जब किसी मुस्लिम राजवंश का पतन होता था तो स्वाभाविक रूप से अंतिम समय के सुल्तानों का अपने शासन पर नियंत्रण शिथिल हो जाता था। शासन की इस शिथिलता का लाभ हमारे तत्कालीन हिंदू वीर अवश्य उठाते थे। यह क्रम 1206 ई. से लेकर अब तक (तुगलक वंश के अंतिम दिनों तक) यथावत चला आ […]

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फीरोजशाह तुगलक के काल में भी चले स्वतंत्रता आंदोलन

सिमट गया  साम्राज्य अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में सल्तनत साम्राज्य पर्याप्त विस्तार ले गया था, वह तुगलक काल में सिमटकर छोटा गया। अफगानिस्तान और आज के पाकिस्तान का बहुत बड़ा भाग, जम्मू कश्मीर, राजस्थान का बहुत बड़ा भाग, उत्तराखण्ड, नेपाल, भूटान, सिक्किम, बंगाल और सारा पूर्वाेत्तर भारत, उड़ीसा, तेलंगाना, आंध्र और कर्नाटक महाराष्ट्र से […]

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कराजल ने ली एक लाख शत्रुओं की बलि, और जैसलमेर हुआ स्वतंत्र

इस्लामी लेखकों की विश्वसनीयता?सल्तनत काल में मुस्लिम लेखकों को हर क्षण अपने प्राणों की चिंता रहती थी। सच कहने या लिखने पर उनकी आत्मा भी कांप उठती थी। क्योंकि वह अपने नायकों की क्रूरता से इतने भयभीत रहते थे कि पता नही कब किस बात पर उसका क्रोध उनके प्राण ले ले? वैसे भी मुस्लिम […]

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‘हिन्दू शौर्य’ ने ही तुगलक को राजधानी परिवर्तन के लिए विवश किया था

पिछले लेख में हमने मौहम्मद बिन तुगलक के दोआब में कर वृद्घि की योजना पर प्रकाश डाला था। इसी प्रकार की अपनी कई योजनाओं के कारण मौहम्मद बिन तुगलक को इतिहास में कई लोगों ने महाविद्वान तो कई ने महामूर्ख माना है।तुगलक सदा भयाक्रांत रहामौहम्मद बिन तुगलक ने 1325 ई. में एक गहरे षडयंत्र के […]

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मौहम्मद बिन तुगलक की ‘दोआब कर वृद्घि’ के विरूद्घ जनता का स्वतंत्रता संघर्ष

प्रगतिशील लेखक संघ की पहली बैठक (10 अप्रैल 1936 ई.) को संबोधित करते हुए मुंशी प्रेमचंद ने कहा था :- ‘‘हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिंतन हो, स्वाधीनता का भाव हो, सौंदर्य का सार हो। सृजन की आत्मा को जीवन की सच्चाईयों का प्रकाश हो, जो सबमें गति, संघर्ष और बेचैनी […]

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अलाउद्दीन की सेना को भी परास्त किया था हम्मीर देव चौहान ने

सुल्तान ने किला यूं ही छोड़ दिया सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी के विषय में हमें अधिक जानकारी समकालीन इतिहास लेखक जियाउद्दीन बर्नी की पुस्तक ‘तारीखे फिरोजशाही’ से मिलती है। बरनी ने रणथंभौर पर सुल्तान की चढ़ाई का बड़ा रोचक वर्णन किया है । वह लिखता है कि जब सुल्तान ने रणथंभौर पर चढ़ाई की तो वहाँ […]

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इतिहास के उस कौतूहल से पर्दा उठना ही चाहिए

क्रांतिकारियों को नेहरू कहते थे-विकृत मानसिकता वाला देश के वैभव के लिए अपने वैभव को तिलांजलि देने वाले क्रांतिकारियों को नेहरू जी जैसे लोग ‘विकृत मानसिकता’ वाला कहते रहे, और उन्हें इतिहास में समुचित स्थान नही दिया गया। नेहरू जी की इस मानसिकता पर सावरकर जी ने उन्हें कहा था-”जब हम प्रधानमंत्री श्री नेहरू जी […]

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वीर हरपाल देव का स्वतंत्रता आंदोलन एवं खुसरू खां की ‘हिन्दू क्रान्ति’

एक का उठना एक का गिरनाये खेल निरंतर चलता है।नीति पथ के अनुयायी को जग में मिलती सच्ची सफलता है।।पथ अनीति का अपनाये जो,वह कागज के सम गलता है।कालचक्र जब घूमकर आये,तब चलती नही चपलता है।।अलाउद्दीन खिलजी ने निश्चित रूप से दिल्ली की सल्तनत को विस्तार दिया था। पर उसने दिल्ली सल्तनत को फैलाने में […]

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राणा हमीर ने कराया था चित्तौड़ को पुन: स्वतंत्र

‘‘अंधकार के पश्चात दिन का आता है प्रकाश,सुख के पश्चात दुख भी एक दिन करता है अवकाश। हानि-लाभ यश अपयश का चला हुआ है चक्र, मोक्षाभिलाषी काट फेंकता द्वंद्वों का मोहपाश।।’’ यह सत्य है कि यह संसार द्वंद्वों से भरा हुआ है। दिन के पश्चात रात है, सुख के पश्चात दुख है। साधारण व्यक्ति जीवन […]

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