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संपादकीय

ग्रामीण भारत : बड़ी चुनौती

1932 के बाद देश में पहली बार सामाजिक, आर्थिक और जातिगत आधार पर जनगणना संपन्न हुई है। जिससे प्राप्त आंकड़ों ने हमारे ग्रामीण विकास की सारी कलई खोलकर रख दी है। जो तस्वीर उभर कर सामने आयी है, उससे पता चलता है कि देश में गरीबी और फटेहाली आजादी से पूर्व की स्थिति से भी […]

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संपादकीय

लाल बहादुर शास्त्री की हत्या का प्रश्न

पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को ताशकंद में जाकर हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रद्घांजलि अर्पित की है। जब वह यह कार्य कर रहे थे तो टी.वी. चैनलों के माध्यम से उन्हें देखने वाले करोड़ों भारतीयों को गौरवानुभूति हो रही थी। बहुत ही अच्छा लग रहा था। अब पूर्व प्रधानमंत्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने उनकी […]

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संपादकीय

भारतीय संस्कृति में मानवाधिकार

अपने राष्ट्र की महान संस्कृति और उसकी मानवाधिकारवादी प्रकृति के प्रति कृतघ्नता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि लोग अपने देश को जंगलियों का देश मानकर ‘मैग्नाकार्टा’ और यू.एन.ओ. के घोषणापत्रों में मानवाधिकारों का अस्तित्व खोजते हैं। ऐसे लोगों की बुद्घि पर तरस आता है और क्षोभ भी होता है? तरस […]

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भारत देश का विभाजन और महात्मा गाँधी

अनिल गुप्ता स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री इन्द्रेश जी, जो पिछले अनेक वर्षों से मुस्लिम समाज के साथ संवाद कायम करने में लगे हैं, के विभाजन और गांधीजी सम्बन्धी बयान पर उबलने वाले कांग्रेसी क्या विभाजन की घोषणा के बाद विभाजन विरोधी गांधीजी का कोई बयान दिखाएंगे? कुछ सवालों के जवाब देश जानना चाहता है […]

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संपादकीय

व्यापमं का व्यापक होता दायरा

राजनीति का घिनौना स्वरूप हमें एक बार फिर ‘व्यापमं घोटाले’ के माध्यम से देखने को मिल रहा है। अपनी गौरवमयी ऐतिहासिक धरोहर और परंपरा के लिए प्रसिद्घ मध्य प्रदेश का नेतृत्व इस समय शिवराज सिंह नामक एक ‘चौहान’ के हाथों में है। पर यह अत्यंत दु:खद तथ्य है कि इस मुख्यमंत्री के रहते ‘व्यापमं घोटाले’ […]

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संपादकीय

कैसे कहूं -‘मेरा भारत महान’

देश की वास्तविकता को बयान करती तस्वीर हमारे सामने आई है। मोदी सरकार ने सामाजिक आर्थिक जनगणना के आंकड़े पेश किये हैं, इससे स्पष्ट हुआ है कि भारत की जनसंख्या का 75 प्रतिशत भाग अभी तक ऐसा है जो पांच हजार रूपये तक की मासिक आय से ही गुजारा कर रहा है। ऐसे लोगों की […]

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संपादकीय

संघ की अवधारणा

भारतीय संविधान भारत को संघ मानता और घोषित करता है। भारतीय संविधान की इस मान्यता और घोषणा का आधार ‘क्रिप्स-मिशन’ बना। क्रिप्स मिशन वेफ प्रस्तावों में भारत को संघ बनाने और उसका विभाजन करने के बीच समझौता कराने का प्रयत्न किया गया। ऊपरी तौर पर क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों में मुसलमानों की अलग संविधान सभा […]

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संपादकीय

मोदी जी! बचके रहना रे बाबा….

जो लोग सुनने से पहले अपना निर्णय सुनाने के अभ्यासी होते हैं, वे अच्छे न्यायाधीश और अच्छे वात्र्ताकार नही हो सकते। अच्छा न्यायाधीश और वात्र्ताकार बनने के लिए आपके भीतर दूसरे को सुनने का असीम धैर्य होना चाहिए। सुनवाई का अवसर न्यायालयों में हर पक्षकार को इसीलिए दिया जाता है कि किसी भी पक्षकार को […]

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संपादकीय

जयराम और जय जय राम

एक समय था जब राजनीतिक लोगों की झलक पाने के लिए लोग आतुर रहा करते थे। बड़ी मुश्किल से लोगों की अपने नेताओं और जनप्रतिनिधियों से नजदीकियां विकसित हो पाती थीं। नेता के लिए सब अपने होते थे और कोई अपना नही होता था। इसलिए नेता सबके प्रति समानता का भाव बरतते थे, वह अपने […]

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संपादकीय

बापू ने कहा -‘करो या मरो’

महात्मा गांधी की अहिंसा को लेकर आरंभ से ही वाद विवाद रहा है। इसमें कोई संदेह नही कि अहिंसा भारतीय संस्कृति का प्राणातत्व है। पर यह प्राणतत्व दूसरे प्राणियों की जीवन रक्षा के लिए हमारी ओर से दी गयी एक ऐसी गारंटी का नाम है, जिससे सब एक दूसरे के जीवन की रक्षा के संकल्प […]

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