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संपादकीय

व्यापमं का व्यापक होता दायरा

vyapam-truthराजनीति का घिनौना स्वरूप हमें एक बार फिर ‘व्यापमं घोटाले’ के माध्यम से देखने को मिल रहा है। अपनी गौरवमयी ऐतिहासिक धरोहर और परंपरा के लिए प्रसिद्घ मध्य प्रदेश का नेतृत्व इस समय शिवराज सिंह नामक एक ‘चौहान’ के हाथों में है। पर यह अत्यंत दु:खद तथ्य है कि इस मुख्यमंत्री के रहते ‘व्यापमं घोटाले’ में अब तक 47 लोग ‘हादसों’ का शिकार हो चुके हैं। लोग आशंकित हैं और बड़े आश्चर्य से अपनी आंखों से षडयंत्रों की ‘क्रूर जयचंदी परंपरा’ को जीवित होते देख रहे हैं। कोई समझ नही पा रहा है कि आखिर ‘सीरियल किलर’ की यह लंबी श्रंखला कहां जाकर रूकेगी?
शिवराज मध्य प्रदेश में शिव (कल्याणकारी) ‘राज’ स्थापित करने में असफल रहे हैं। भारत के हृदय मध्य प्रदेश में लोगों की जबान अब बड़ी तेजी से खुलती जा रही है, और वह अपने मुख्यमंत्री से बड़े बड़े प्रश्न पूछ रही है।
मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले में संदिग्ध या संलिप्त लोगों में से 500 लोग फरार हैं, दो हजार के लगभग अभियुक्त हैं। इस घोटाले में संदिग्ध लोगों की मृत्यु का क्रम निरंतर जारी है। इसी क्रम में अब जबलपुर के सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय के डीन डा. अरूण शर्मा का नाम भी जुड़ गया है, जो कि दिल्ली के द्वारका क्षेत्र के एक होटल में मृत पाये गये हैं। इससे एक दिन पहले ‘आज तक’ के एक पत्रकार अक्षय सिंह की भी मौत हो गयी थी, जो कि एक खोजी पत्रकार थे।
सचमुच राजनीति लहू से नहाकर ‘ब्रेकफास्ट’ इंसानी कलेजों का करती है। यदि राजनीति का लोकतंत्र में इतना गिरा हुआ और घिनौना स्वरूप है तो हमें ऐसी राजनीति और ऐसा लोकतंत्र नही चाहिए। राजनीति व्यक्ति के संपूर्ण विकास की बात करती है, और संपूर्ण विकास का तात्पर्य है व्यक्ति की प्रतिभा को पूर्णत: मुखरित होने का अवसर उपलब्ध कराना। यदि विकास का अभिप्राय घात-प्रतिघात और छल प्रपंचों से है तो फिर विनाश क्या होगा? हम विनाश की गतिविधियों को विकास का नाम देकर जनता को और अधिक देर तक मूर्ख नही बना सकते। जनकल्याण के नाम पर राजनीति राजतंत्र से लोकतंत्र तक बढ़ती चली आयी और अपने एक नही कई रूप दिखाती रही-पर उसका ‘भेडिय़ा स्वरूप’ आज भी वही है जो सदियों पूर्व था। यह सब आखिर कब तक चलेगा?
शिवराज सिंह चौहान जिस प्रकार अपनी रियासत में लोगों की मौत होते देख रहे हैं उससे उनकी ‘सियासत’ खूनी होती जा रही है और लोगों को उन पर अब भरोसा नही रहा है। जब रियासत की सियासत लोगों को सिसकियां दिलाने लगे तो उस समय ‘सियासत का बादशाह’ जीते जी ही मर जाता है। उसके यश रूपी शरीर की मृत्यु हो जाती है। माना कि सियासत खूनी होती है पर इतनी ‘बेहया’ भी नही होती कि उसकी आंखें का पानी ही मर जाए। संवेदना उसे दिखानी भी पड़ती है और रखनी भी पड़ती है। शिवराज सिंह चौहान यदि संवेदना शून्य राजनीति का खेल खेलना चाहते हैं तो सुन लें-
कह रहा है आसमां कि ये शमां कुछ भी नही।
पीस दूंगा एक गर्दिश में जहां कुछ भी नही।
सबको समय का चक्र पीस देता है और जब पीसने लगता है तो पलक झपकते ही सारा काम पूरा हो जाता है। 47 परिवारों के लेागों की सिसकियों का समुद्र बहुत है-शिवराज को डुबाने के लिए। क्योंकि
गूंजते थे जिनके डंके से जमीं और आसमां।
चुप पड़े हैं कब्र में हूं न हां कुछ भी नही।।
आज आवश्यकता राजनीतिक आचार संहिता की है ‘और बड़े सुल्तानों’ पर नकेल डालने के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकपाल की। इसके लिए सारे राजनीतिक दल एक स्वच्छ राजनीतिक परिवेश बनाने की दिशा में अपना-अपना सहयोग देने के लिए अपनी वचनबद्घता प्रकट करें, और दलीय हितों से ऊपर उठकर कार्य करें, तो ‘व्यापमं’ में लोगों की मृत्युओं के व्यापक होने की प्रक्रिया से मुक्ति मिल सकती है। लोग राजनीतिज्ञों से किसी प्रकार की राजनीतिक छींटाकशी की नही अपितु एक स्वस्थ पहल की अपेक्षा कर रहे हैं। बेसुरे रागों को सुनते-सुनते लोग ऊब चुके हैं अब तो कोई ऐसी तान सुनना चाहते हैं जो उन्हें आत्मिक आनंदानुभूति करा सके। देखते हैं इस दिशा में राजनीतिक दल कितनी शीघ्रता से कितनी गंभीर पहल कर पाते हैं? समय निकल रहा है और 47 लोगों के परिजनों की सिसकियां परिवेश को बोझिल बनाती जा रही हैं। ईश्वर ना करे कि इस संख्या में अब एक की भी वृद्घि हो, अच्छा हो कि हम तुरंत जहां से खून रिस रहा है, वहीं पट्टी का लेपन कर दें।

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