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संपादकीय

जयराम और जय जय राम

jairam mahesh congress ugta bharatएक समय था जब राजनीतिक लोगों की झलक पाने के लिए लोग आतुर रहा करते थे। बड़ी मुश्किल से लोगों की अपने नेताओं और जनप्रतिनिधियों से नजदीकियां विकसित हो पाती थीं। नेता के लिए सब अपने होते थे और कोई अपना नही होता था। इसलिए नेता सबके प्रति समानता का भाव बरतते थे, वह अपने लिए वोट न देने वाले लोगों को ऐसा अहसास कराते थे कि जैसे वे भी उनके अपने हैं। इसलिए लोग भी नेता का दिल से सम्मान करते थे।

समय बदला तो राजनीतिज्ञों का चरित्र भी बदल गया और लोगों की अपने जनप्रतिनिधियों के प्रति धारणा भी बदल गयी। राजनीतिज्ञों ने राजनीति को सेवा का माध्यम न बनाकर व्यवसाय बना लिया। इसलिए राजनीति में आने वाले जनप्रतिनिधि अपने लिए ‘दलाल’ ढूंढऩे लगे। ये दलाल अपने ‘मालिक’ के लिए ‘मुर्गे’ लाने लगे और मालिक व गुलाम दोनों ही ‘मुर्गों’ की दावत के मजे लेने लगे।

इस स्थिति पर गिरी हुई राजनीति को जब आम आदमी ने देखा तो उसे इसकी चाल और चरित्र दोनों से ही घृणा होने लगी। लोगों ने सोचा :-

‘‘तुझसे उम्मीदे वफा, जिसे होगी उसे होगी,

हमें तो देखना ये है कि तू जालिक कहां तक है?’’

आज राजनीति में आकर व्यक्ति पब्लिक का आदमी बनना पसंद नही करता, बल्कि एक ‘रूतबा’ बनाकर चलने को प्राथमिकता देता है। इसका परिणाम यह निकला है कि जनप्रतिनिधि अपने साथ सुरक्षाकर्मी रखकर चलने में अपना महत्व समझते हैं। जब भी किसी समारोह में किसी गाड़ी से कोई विशिष्टï व्यक्ति कुछ शस्त्रधारी सुरक्षाकर्मियों के साथ उतरता है तो लोग उसे देखकर ही अनुमान लगा लेते हैं कि यह कोई नेता है। आश्चर्य की बात ये है कि लोग इस विशिष्टï व्यक्ति को देखना पसंद नही करते। इसका अभिप्राय ये है कि नेता का सुरक्षा घेरा तो बढ़ा पर उसका ‘रूतबा’ गिर गया। इसे राजनीति का पतित स्वरूप ही कहा जा सकता है। इससे राजनीतिज्ञों के प्रति अविश्वास का भाव विकसित हुआ।

राजनीति के व्यापार में लोगों ने अपने सबसे वाहियात और किसी भी काम के लिए अयोग्य, पूर्णत: बदतमीज और संस्कारहीन बच्चे को देना आरंभ कर दिया। जो घर के काम के नही हो सकते उनको देश के काम के लिए छोड़ दिया गया। कुछ युवाओं ने भी इन अवगुणों को राजनीति का अनिवार्य गुण मानकर इन्हें अपने भीतर विकसित करना आरंभ कर दिया, जिससे कि उसकी राजनीति महत्वाकांक्षा पूरी हो सके। इसलिए राजनीति को सबसे पवित्र धर्म मानकर चलने वाले लोगों के दिन अब लद गये। राजनीति को लोगों ने सबसे पवित्र अधर्म के रूप में ले लिया और इसी रूप में उसकी पूजा अर्चना करने लगे।

राजनीतिज्ञों को सबसे पवित्र अधर्म मानने वालों ने अभी राजस्थान में एक खेल दिखाया है। सारे देश का ध्यान कांग्रेस के जयराम रमेश ने अपनी ओर खींचने का प्रयास करते हुए वहां की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया पर आरोप लगाया था कि उन्होंने सरकारी संपत्ति को निजी होटल में बदल दिया। धौलपुर सिटी पैलेस के मालिकाना हक संबंधी दस्तावेजों पर जयराम रमेश ने सवाल उठाये कि ये सारे दस्तावेज मुख्यमंत्री ने अपने बेटे दुष्यंत के नाम गलत ढंग से तैयार करा दिये हैं।

इस पर भाजपा ने अपनी ओर से 1950 में सरकार के जीएडी डिपार्टमेंट की ओर से जारी दस्तावेज दिखाये जिसमें महाराजा हेमंत सिंह का मालिकाना हक दिखाया गया है। इसके अतिरिक्त 1958 का उपसचिव जीएडी की ओर से कब्जा संभालने का पत्र भी दिखाया गया है। कुल मिलाकर भाजपा ने कांग्रेस को बुरी तरह से धो दिया है। जिससे राबर्ट वाड्रा को जमीन घोटाले में से बचाने के लिए वसुंधरा की घेराबंदी करने चले सुल्तान जयराम रमेश को अपनी सेनाएं पीछे हटानी पड़ गयी हैं। उन्हें मुंह दिखाने लायक जगह नही बची।

वसुंधरा ने कांग्रेस के जयराम को ‘जय जयराम’ कहने पर विवश कर दिया है। इसमें वह जीत गयी हैं पर राजनीति ने जिस प्रकार एक बार फिर अपना स्वरूप दिखाया है, उससे उसका स्तर और भी गिर गया है। सचमुच राजनीतिक शिष्टïाचार राजनीतिज्ञों के लिए और भी अधिक दिखाना आवश्यक हो गया है।

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