Categories
संपादकीय

भारत की असफल विदेश नीति और चीन

चीन का नाम आते ही एक ऐसे राष्ट्र की छवि उभरती है जो दीखने में तो अत्यंत सरल है किन्तु वास्तव में बहुत भयावह सोच वाला है। भारत की सरकारें स्वतंत्रता के पश्चात से पाकिस्तान की अपेक्षा चीन को अपने निकट अधिक मानती आयी हैं। भारतीय विदेश नीति का यह असफ ल पहलू है कि […]

Categories
संपादकीय

धर्मांतरण और हिंदूवादी संगठन

धर्मपरिवर्तन इस देश की सदियों पुरानी बीमारी है। सल्तनत काल में या मुगल काल में जब धर्मपरिवर्तन होता था तो उस समय सीधे-सीधे इसका कारण इस्लामिक दबाव होता था। ईसाइयत ने धर्मांतरण के दूसरे पैमाने माने हैं। उसने जहां धर्मांतरण बलात् रूप में किये हैं, वहीं लोगों की अशिक्षा और निर्धनता का लाभ उठाकर उन्हें […]

Categories
संपादकीय

गोधन विकास पर राजनाथ सिंह बोले….

केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने देश में गोधन विकास के लिए गंभीर और ठोस बात कही है। श्री सिंह ने कहा है कि गोधन विकास और गोवध निषेध को मुगल बादशाह भी इस देश पर शासन करने के लिए आवश्यक मानते थे। जबकि अंग्रेजों ने इस ओर पूर्णत: उपेक्षा भाव का प्रदर्शन किया। इस प्रकार […]

Categories
संपादकीय

कांग्रेस का बेअसर नेतृत्व

मोदी सरकार के विरूद्घ कांग्रेस ने मोर्चा खोल रखा है। विरोध लोकतंत्र में आवश्यक होता है पर उसकी अपनी सीमाएं हैं। सकारात्मक विरोध सरकार के लिए नकेल का काम करता है, और उसे स्वेच्छाचारी बनने से रोकता है। स्वेच्छाचारिता लोकतंत्र को प्रतिबंधित और संकीर्ण करती है। लोकतंत्र में यह दुर्गुण प्रविष्ट न होने पाये, इसलिए […]

Categories
संपादकीय

अंग्रेजी काल का ये पुलिस प्रशासन

स्वतंत्र भारत की पहली सरकार जब पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अस्तित्व में आयी थी तो उसके लिए नौकरशाही वही कार्य कर रही थी जो 15 अगस्त 1947 तक अंग्रेजों के लिए कार्य करती रही थी। शासन प्रशासन में से प्रशासन वही था जो अंग्रेजों का था और शासन में वो लोग सत्तासीन हुए […]

Categories
संपादकीय

नकारात्मक सोच का संघर्ष

मनुष्य काम घृणा के और बातें प्रेम की करता है, नफ रत के बीज बोकर प्रेम की फ सल काटने के सपने संजोता है, अपनी चिंतन शक्ति की बड़ी उर्जा को नकारात्मक बातों में व्यय करता है और बातें अपनी उर्जा को सकारात्मक चिंतन के व्यापार-विस्तार में लगाने की करता है। यह द्वन्द्व है। एक […]

Categories
संपादकीय

‘आंधी के आम’ और हमारे सांसद

जब आंधी आती है तो उसमें आम बहुत झड़ जाते हैं। इन ‘आंधी के आमों’ की बाजार में कीमत भी गिर जाती है। लोग उन्हें खरीदते नही हैं, अपितु दुकानदार कम से कम मूल्य करके उन्हें अपने ग्राहकों से खरीदवाता है। ऐसा ही हमारे सांसदों के अथवा जनप्रतिनिधियों के साथ होता है। जब किसी पार्टी […]

Categories
संपादकीय

आंकड़ों में उलझी गरीबी

भारत में आंकड़ों के खेल के जादूगर बहुत हैं। ये जादूगर बड़ी होशियारी से आंकड़ों का ऐसा खेल बनाते दिखाते हैं कि अच्छे से अच्छा विशेषज्ञ या विवेकशील व्यक्ति भी इनमें उलझकर रह जाएगा। उसका सिर भी चकरा जाएगा और वह भी आंकड़ों के जादूगर को उसके बौद्घिक कौशल के लिए बधाई दिये बिना नही […]

Categories
संपादकीय

‘कोऊ नृप होई हमें का हानि’ और राज्यसभा, भाग-दो

जब वहां की संसद के ‘हाउस ऑफ लार्ड्स’ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.एच. एसक्विथ द्वारा प्रस्तुत किये गये बजट पर अपनी ओर से ‘अड़ंगा’ डाल दिया था। तब प्रधानमंत्री ने पहले तो त्यागपत्र दिया और फिर जनता के न्यायालय में जाकर इस बात पर जनता का फैसला अपने पक्ष में कराने में सफलता प्राप्त की कि […]

Categories
संपादकीय

‘कोऊ नृप होई हमें का हानि’ और राज्यसभा

पूर्व राष्ट्रपति कलाम चले गये, ‘मुंबई बम कांड’ के दोषी याकूब मेमन को भी फांसी हो गयी। बहुत सा पानी यमुना के पुल के नीचे से बह गया। पर हमारी संसद में राजनीतिक दलों की राजनीति हठ किये हुए वहीं खड़ी है, जहां सत्रारम्भ में 21 जुलाई को खड़ी थी। सचमुच ऐसी स्थिति पूरे देश […]

Exit mobile version