पूर्व राष्ट्रपति कलाम चले गये, ‘मुंबई बम कांड’ के दोषी याकूब मेमन को भी फांसी हो गयी। बहुत सा पानी यमुना के पुल के नीचे से बह गया। पर हमारी संसद में राजनीतिक दलों की राजनीति हठ किये हुए वहीं खड़ी है, जहां सत्रारम्भ में 21 जुलाई को खड़ी थी। सचमुच ऐसी स्थिति पूरे देश […]
श्रेणी: संपादकीय
हम भारतीय जब किसी दुर्दांत आतंकवादी संगठन की ओर से की गयी किसी दुखद घटना को निकट से देखते हैं तो उस पर हमें इतना दुख होता है कि उस घटना को अंजाम देने वाले व्यक्ति या संगठन को हम तुरंत फांसी दे देना चाहते हैं। पर उसी घटना को करने वाले किसी व्यक्ति को […]
भारत में पाकिस्तान ने पुन: एक बार अस्थिरता फैलाकर पंजाब के गुरदासपुर जिले में एक पीड़ादायक आतंकी घटना को अंजाम दिया है। इस पर हम फिर चुप लगा गये हैं। ‘अहिंसा, चरखा और सत्याग्रह’ के प्रपंच ने भारत के इतिहास को और हमारी वीर परंपरा को इतना विकृत और छलनी कर दिया है कि कुछ […]
कांग्रेस में गांधीजी का आविर्भाव 1914 ई. से हुआ। 1922 ई. में गांधीजी ने पहली बार कहा कि भारत का राजनैतिक भाग्य भारतीय स्वयं बनाएंगे। कांग्रेस के इतिहास लेखकों ने गांधीजी के इस कथन को संविधान निर्माण की दिशा में उनकी और कांग्रेस की पहली अभिव्यक्ति के रूप में निरूपति किया है। जिसका अभिप्राय है […]
संपूर्ण मानवता के लिए दुख और शोक की घड़ी है कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम नही रहे। एक ऐसा महान व्यक्तित्व जिसे किसी प्रकार की संकीर्णताएं बांध नही सकीं, जिसे भाषा ने रोका नही और संप्रदाय ने टोका नही, जिसकी मानवता सदा ऊपर रही और जो आत्मिक प्रेरणा […]
अमितशाह की भाजपा अपने प्रचण्ड बहुमत के नशे में चूर ‘फीलगुड’ की बीमारी से ग्रसित थी इसलिए यह भूल गयी कि सरकार की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाना पार्टी का काम होता है। खरगोश की भांति अपनी गति पर भरोसा कर पार्टी आराम से सोती रही और विपक्ष का कछुआ भूमि विधेयक विरोधी प्रचार में […]
भाजपा को ‘फीलगुड’ की पुरानी बीमारी है। बेचारी इसी बीमारी के कारण 2004 का लोकसभा चुनाव हार गयी थी। उसके पश्चात भी पार्टी में ‘फीलगुड’ के अलम्बरदारों ने सच कहने वालों की एक भी नही सुनी थी। फलस्वरूप पार्टी अपने पुराने ढर्रे पर ही चलती रही। नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह पार्टी के ऐसे नेता […]
पेरिस में एक ‘शार्ली अब्दो पत्रिका के कार्यालय में आतंकियों ने जिस प्रकार प्रैस की स्वतंत्रता पर आक्रमण कर अपनी क्रूरता का नंगा नाच किया है, उससे विश्व समाज पुन: कुछ सोचने पर बाध्य हो गया है। विगत 7 जनवरी को घटी इस घटना पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। भावनात्मक बातें भी हो […]
मनुष्य के भटकाव का अन्त कहाँ है? जन्म लेने से मृत्यु तक कितने चरणों में उसका बाहरी रूप बदलता है? हर वर्ष का पतझड़ उसके हृदय के रेगिस्तान को और भी ‘तपन’ दे जाता है। पर फि र बसन्त आता है और मन का मोर नाचने लगता है।—-लेकिन कितनी देर, कभी गरम लू तो कभी […]
छोटी कमजोरी है राष्ट्रों की अपने देशवासियों को अथवा नागरिकों को उनकी गरिमा की रक्षा की गारण्टी देना और उसमें उनका असफ ल होना। मानवाधिकारवादी तनिक विचार करें कि ऊपरी स्तर पर बैठा व्यक्ति जब अधीनस्थों की सम्प्रभुता का सम्मान नही कर सकता, वहाँ एक दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण हो रहा है तो नीचे […]