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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -11 ख हिंदू और मुस्लिम : दो राष्ट्र

आज भी देश में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले कई लोग ऐसे हैं जो बड़ी सहजता से सावरकर जी पर हिंदू सांप्रदायिकता को भड़काने का आरोप लगा देते हैं और यह भी कह देते हैं कि उनकी सरकार की नीतियों के चलते ही देश का विभाजन हुआ था। इस पर हम पूर्व में भी […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -11( क ) सावरकर की सबसे बड़ी कमजोरी

राव साहब कसबे (अनुवाद मनोहर गौर ) अपनी पुस्तक ‘हिंदू राष्ट्रवाद : सावरकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के पृष्ठ संख्या 449 पर लिखते हैं कि जिन्नाह 1919 में जब पार्लियामेंट्री सिलेक्ट कमेटी के समक्ष गवाही दे रहे थे तो उनसे एक प्रश्न किया गया था कि क्या आपको लगता है कि हिंदू और मुसलमानों के […]

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संपादकीय

सनातन की सतत साधना और भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम

भारत ज्ञान – विज्ञान के क्षेत्र में आदिकाल से संपूर्ण भूमंडलवासियो का नेतृत्व करता आया है। भारत के अनेक ऋषि महात्मा ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपने आध्यात्मिक तेज के जागरण के चलते अनेक ऐसे आविष्कार किये जिनके संबंध में आज का कथित सभ्य समाज कल्पना भी नहीं कर सकता। भारत की सतत आध्यात्मिक साधना उसकी […]

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देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय 10 ( ख) देश की आजादी के लिए अपनों को खोने वाले

अफगानिस्तान के अलग होने की घटना को इतिहास में इतना हल्का करके लिया जाता है कि लगभग उसे मिटा ही दिया गया है। देश के भीतर ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो अब अफगानिस्तान के हिंदू वैदिक अतीत की कोई विशेष चर्चा तक करना उचित नहीं मानते। यदि हमारे देश के […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय 10 ( क ) गांधी – नेहरू की आत्महीनता

आजकल हम अक्सर अखंड भारत की बातें सुना करते हैं। इस अखंड भारत में आज के अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, सिक्किम, भूटान, बर्मा, श्रीलंका और मालदीव को सम्मिलित कर लिया जाता है। हम सोच लेते हैं कि यही अखंड भारत है। जहां तक जिसकी सोच और दृष्टि जाती है वहीं तक वह भारत को अखंड […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -9 ( ख ) सिक्खों के लिए सेना बनाने हेतु लिखा पत्र

हिंदुओं का सैनिकीकरण करने के अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित होते हुए उन्होंने तारीख ४ जून, १९४० के दिन सेना खड़ी करो, संगमेंस यूनियन के कार्यवाहों को एक उत्तेजक पत्र भेजा। उसका सारांश ‘सावरकर समग्र’ (खंड – 8 ) में इस प्रकार दिया गया है- ” आपने मुझे परिषद् के लिए निमंत्रित किया इसके लिए […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय -9 ( क ) राष्ट्रवाद के पुरोधा सावरकर

भारत में मुसलमान एक रणनीति के अंतर्गत अपने संख्या बल से अधिक राजकीय सुविधाएं प्राप्त करते रहे हैं। इसके लिए रोने पीटने और अपनी आर्थिक स्थिति की दुहाई देने या अपने समाज में लोगों के अशिक्षित होने को ये लोग अपना आधार बनाते हैं। इसके पश्चात भावनात्मक अपील की जाती हैं कि हम लोग यहां […]

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संपादकीय

देश का विभाजन और सावरकर, अध्याय 8 ( ख ) राष्ट्रीय प्रतीक और देशवासी

प्रत्येक राष्ट्र जीवित रहने के लिए अपने ऐसे प्रतीकों की खोज करता है और उनके प्रति समर्पित होकर रहता है। जिनके भीतर राष्ट्रभक्ति होती है ऐसे लोग भूख प्यास सहन कर सकते हैं, रोग और शोक को सहन कर सकते हैं, गरीबी – फटेहाली और भूखमरी को भी सहन कर सकते हैं पर उन्हें अपने […]

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इतिहास के पन्नों से संपादकीय

देश विभाजन और सावरकर, अध्याय 8 ( क ) वंदेमातरम् और सुरासुर संग्राम

देश के प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान से यह अपेक्षा की जाती है कि वह राष्ट्र के मूल्यों को जीवंत बनाए रखने के लिए उनके प्रति समर्पण का भाव दिखाएं और अपने विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाली बंधुता को बढ़ाने का हर संभव प्रयास करें। ऐसे प्रयासों में किसी भी प्रकार की […]

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संपादकीय

देश विभाजन और सावरकर, अध्याय 7 ( ख ) सावरकर जी और आर्य समाज

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद जी महाराज 1857 की क्रांति के समय मात्र 33 वर्ष की अवस्था के थे। परंतु उन्होंने उस समय बाबा औघड़नाथ के नाम से क्रांति के लिए भूमिका तैयार की और मेरठ में क्रांतिकारियों के बीच रहकर क्रांति को बलवती करने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाई थी। जिस आर्य समाज […]

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